Sharad Pawar Resigns: बीजेपी के साथ अचानक क्यों चले गए थे अजित पवार? शरद पवार ने किया खुलासा, इस पार्टी को ठहराया जिम्मेदार
Sharad Pawar Autobiography: एनसीपी नेता शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में अजित पवार के 2019 में बीजेपी के साथ जाने के पीछे की वजह का खुलासा किया है.
Sharad Pawar Autobiography Lok Manjhe Sangati: एनसीपी के दिग्गज शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे का एलान किया है. उनकी पार्टी के कई नेताओं की ओर से उन्हें मनाने की कोशिशें हो रही हैं. इस बीच शरद पवार की मराठी भाषा में आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ प्रकाशित हुई है. इसमें उन्होंने महाराष्ट्र की सियासत से संबंधित कई चौंकाने वाली बातें लिखी हैं.
2019 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद महाराष्ट्र की सियासी उथल-पुथल और अजित पवार के बीजेपी के साथ जाने के फैसले से संबंधित कई बातें भी उन्होंने किताब में लिखी हैं. अजित पवार बीजेपी के साथ अचानक क्यों चले गए थे, इस बारे में शरद पवार ने खुलासा करते कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है.
'अजित के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था...'
किताब में शरद पवार ने लिखा, ''जब मैंने सोचना शुरू किया कि अजित ने ऐसा फैसला क्यों लिया, तब मुझे एहसास हुआ कि सरकार गठन में कांग्रेस के साथ चर्चा इतनी सुखद नहीं थी. उनके व्यवहार के कारण हमें हर रोज सरकार गठन पर चर्चा में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था.''
उन्होंने लिखा, ''हमने चर्चा में बहुत नरम रुख अपनाया था लेकिन उनकी प्रतिक्रिया स्वागत योग्य नहीं थी. ऐसी ही एक मुलाकात में मैं भी आपा खो बैठा और मेरा मानना था कि यहां आगे कुछ भी चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है. जिससे मेरी ही पार्टी के कई नेताओं को झटका लगा था.
अजित के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था कि वह भी कांग्रेस के इस रवैये से खफा हैं. मैं बैठक से चला गया लेकिन अपनी पार्टी के अन्य सहयोगियों से बैठक जारी रखने के लिए कहा. कुछ समय बाद मैंने जयंत पाटिल को फोन किया और बैठक की प्रगति के बारे में पूछा, उन्होंने मुझे बताया कि अजित पवार मेरे (शरद पवार) तुरंत बाद चले गए.''
पवार ने लिखा, ''मैंने नहीं सोचा था कि उस समय से कुछ गलत होगा. इस तरह के विद्रोह को तोड़ने के लिए और सभी विधायकों को वापस लाने के लिए तत्काल पहला कदम उठाया. वाईबी चव्हाण केंद्र में मैंने बैठक बुलाई. उस बैठक में 50 विधायक मौजूद रहे, इसलिए हमें विश्वास हो गया कि इस बागी में कोई ताकत नहीं है.''
एमवीए गिर गया क्योंकि उद्धव ठाकरे ने बिना लड़े इस्तीफा दे दिया- पवार
एनसीपी नेता ने किताब में लिखा, ''एमवीए का गठन सिर्फ सत्ता के लिए नहीं हुआ था, यह छोटे दलों को कुचलकर सत्ता में आने की बीजेपी की रणनीति का करारा जवाब था. एमवीए पूरे देश में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी और हमें पहले से ही अंदाजा था कि वे हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करेंगे, लेकिन हमें अंदाजा नहीं था कि उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही शिवसेना में बगावत शुरू हो जाएगी, लेकिन शिवसेना का नेतृत्व करने वाले संकट को संभाल नहीं सके और बिना संघर्ष किए उद्धव ने इस्तीफा दे दिया जिसके कारण एमवीए सरकार का गिर गई.''
'उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे'
पवार ने लिखा, ''स्वास्थ्य कारणों से उद्धव की कुछ मर्यादाएं थीं. कोविड के दौरान उद्धव के मंत्रालय के 2-3 दौरे हमें रास नहीं आ रहे थे. बालासाहेब ठाकरे से बातचीत में जो सहजता हमें मिलती थी, उसमें उद्धव की कमी थी. उनके स्वास्थ्य और डॉक्टर की नियुक्ति को देखते हुए मैं उनसे मिलता था. मुख्यमंत्री के रूप में राज्य से संबंधित सभी समाचार होने चाहिए.
सभी राजनीतिक घटनाओं पर मुख्यमंत्री की कड़ी नजर होनी चाहिए और भविष्य की स्थिति को देखते हुए कदम उठाए जाने चाहिए. हम सभी ने महसूस किया कि यह कमी थी और इसका मुख्य कारण अनुभव की कमी थी, लेकिन एमवीए सरकार गिरने से पहले जो स्थिति बनी थी, उद्धव ने कदम पीछे खींच लिए और मुझे लगता है कि उनका स्वास्थ्य इसका मुख्य कारण था.''
'बीजेपी शिवसेना को खत्म करने की कोशिश में थी'
पवार ने लिखा, ''2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी अपने 30 वर्षीय सहयोगी शिवसेना को खत्म करने की कोशिश में थी क्योंकि बीजेपी को यकीन था कि वह महाराष्ट्र में तब तक प्रमुखता हासिल नहीं कर सकती जब तक कि राज्य में शिवसेना के अस्तित्व को कम नहीं किया जाता. 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद से बीजेपी के खिलाफ शिवसेना में गुस्सा था.
राजनीतिक उथल-पुथल की अफवाहों के बीच शिवसेना ने बीजेपी से अलग होकर महा विकास अघाड़ी का गठन क्यों किया, इस खुलासे से राजनीतिक गलियारों में खलबली मच गई. बीजेपी ने नारायण राणे की स्वाभिमान पार्टी का विलय करके शिवसेना के जख्मों पर नमक छिड़का. शिवसेना राणे को देशद्रोही के रूप में देखती है. बीजेपी ने शिवसेना के खिलाफ लगभग 50 निर्वाचन क्षेत्रों में बागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और समर्थन दिया.
यह सत्ता पर निर्विवाद दावा करने के लिए उनकी संख्या कम करके सेना को नुकसान पहुंचाने का प्रयास था. शिवसेना और बीजेपी के बीच दरार बढ़ती गई और यह हमारे (MVA) लिए एक सकारात्मक संकेत था.''
'बीजेपी के कुछ नेताओं ने मेरी पार्टी के कुछ नेताओं से बातचीत की थी'
शरद पवार ने लिखा, ''2019 में जब शिवसेना-बीजेपी की बातचीत चल रही थी लेकिन शिवसेना को यकीन नहीं था कि उन्हें सत्ता में 50 फीसदी हिस्सा मिलेगा या नहीं. संजय राउत मुझसे मिले और उनकी बातों से बीजेपी के साथ सत्ता के बंटवारे को लेकर यह अनिश्चितता बहुत स्पष्ट थी और बीजेपी को लेकर गुस्सा भी दिख रहा था. यह भी सोचा गया था कि सेना को अलग रखकर सरकार बनाई जाए.''
पवार ने लिखा, ''बीजेपी के कुछ नेताओं ने मेरी पार्टी के कुछ नेताओं से अनौपचारिक बातचीत भी की. मैं इसका हिस्सा नहीं था लेकिन बातचीत बहुत ही अनौपचारिक स्तर पर हुई. एनसीपी ने इस विचार में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि हमने बीजेपी के साथ आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया था, जिसे हमने उन्हें बताया.
मैंने दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात की और उन्हें इस बात से अवगत कराया, लेकिन मुझे एक बात कहनी चाहिए कि एनसीपी में कुछ ऐसे नेता थे जो इस राय के थे कि हमें बीजेपी के साथ गठबंधन करना चाहिए.
2014 में बीजेपी ने एनसीपी को अपने करीब लाने के कुछ प्रयास किए थे, लेकिन बाद में उन्होंने शिवसेना को सत्ता में हिस्सा दिया और इसलिए मेरी हमेशा से राय थी कि बीजेपी पर भरोसा नहीं करना चाहिए.''
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