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अब क्या करेंगे शरद पवार? पार्टी के लिए नया नाम और सिंबल ढूंढना बना चुनौती

शरद पवार को शाम 4 बजे पार्टी के लिए नया नाम और सिंबल चुनाव आयोग के सामने रखने के लिए कहा गया है. पार्टी ने कुछ नामों को लेकर चर्चा की है और फैसला किया है कि नए नाम में राष्ट्रवादी और कांग्रेस भी रहे.

शरद पवार के सामने अपनी पार्टी के लिए नए नाम और चिन्ह की चुनौती है. 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव है उससे पहले-पहले उन्हें यह काम करना होगा. चुनाव आयोग ने उन्हें ऐसा आदेश दिया है. मंगलवार (6 फरवरी, 2024) को चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि नेशनलस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) का नाम और सिंबल अजित पवार गुट के पास रहेगा. 24 साल पहले शरद पवार ने जिस पार्टी की स्थापना की थी, उसके नाम और चिन्ह पर अब उनका हक नहीं है.

2023 में अजित पवार की बगावत के बाद पार्टी दो गुटों- अजित पवार गुट और शरद पवार गुट में बंट गई. अजित पवार गुट के साथ कई विधायक शिंदे की शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी (BJP) गठबंधन की सरकार में शामिल हो गए. गठबंधन की सरकार में अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया गया.

क्या हो सकता है शरद पवार की पार्टी का नया नाम और चिन्ह
24 साल बाद अब शरद पवार के सामने फिर से नए नाम और चुनाव चिन्ह के साथ अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने की चुनौती है. शरद पवार गुट से आज शाम 4 बजे पार्टी का नया नाम और सिंबल चुनाव आयोग के सामने रखने के लिए कहा गया है. सूत्रों ने बताया कि नए नाम में नेशनलिस्ट और कांग्रेस शब्द को भी रखा जा सकता है. जिन नामों को लेकर चर्चा हो रही है वो- शरद पवार कांग्रेस, मैं राष्ट्रवादी (मराठी में- मी राष्ट्रवादी), शरद पवार स्वाभिमानी पक्ष हैं. शरद गुट चुनाव आयोग के सामने इन नामों को रख सकता है और मांग कर सकता है कि इन्हीं में से कोई नाम पार्टी को दिया जाए. साथ ही चशमा, उगता सूरज, चक्र और ट्रैक्टर जैसे सिंबल की भी चर्चा है. पार्टी चुनाव आयोग के सामने इनमें से कोई चिन्ह उनकी पार्टी को देने की मांग कर सकती है.

चुनाव आयोग ने क्या कहा?
चुनाव आयोग ने मंगलवार को कहा कि एनसीपी का नाम राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और चुनाव चिन्ह- घड़ी, अजित पावर गुट के पास रहेंगे और वह पार्टी का असली हकदार है. चुनाव आयोग ने कहा कि 6 महीने में हुई 10 सुनवाई के दौरान सभी पहलुओं का ध्यान में रखते हुए फैसला किया गया है कि अजित पवार गुट ही असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी है. पार्टी के चुनाव चिन्ह और नाम पर अजित गुट का अधिकार है. साथ ही शरद पवार गुट को पार्टी के लिए तीन नए नाम और चुनाव चिन्ह देने का आदेश दिया गया था. शरद पवार गुट आज चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दे सकता है. 

कैसे तय होता है पार्टी का असली बॉस
ऐसे ही मामले में पहले चुनाव आयोग ने शिवसेना का असली हकदार एकनाथ शिंदे गुट को बताया था. आयोग ने शिवसेना का नाम और चिन्ह इस्तेमाल करने का अधिकार भी एकनाथ शिंदे गुट को दिया था. वहीं, उद्धव ठाकरे की पार्टी को शिवसेना UBT और ज्वलंत मशाल चुनाव चिन्ह दिया गया. पार्टी का असली हकदार कौन होगा, इसका फैसला इस तरह तय होता है कि किस गुट के पास ज्यादा प्रतिनिधि हैं, ऑफिस के पदाधिकारी किसके पास ज्यादा हैं और पार्टी की संपत्ति किस गुट के पास ज्यादा है. 

एनसीपी की बात करें तो देशभर में उसके विधायकों और सांसदों की कुल संख्या 81 है, जिनमें से 57 अजित पवार गुट के साथ हैं. वहीं, शरद पवार के पास 28 हैं, जबकि 6 सदस्यों ने दोनों गुटों के समर्थन में एफिडेविट दिया था. अजित पवार ने चुनाव आयोग में याचिका दायर कर एनसीपी के नाम और चिन्ह पर दावा किया था, जबकि शरद पवार ने उन 9 मंत्री और 31 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी, जो शिवसेना-बीजेपी गठबंधन सरकार में चले गए.

कब और कैसे बनी थी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापनी 10 जून, 1999 को हुई थी. पार्टी के संस्थापक शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा थे. पार्टी बनने के बाद शरद पवार अध्यक्ष बने और तारिक अवनर एवं पीएम संगमा को महासचिव बनाया गया. एनसीपी की स्थापना के पीछे एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है. ये तीनों नेता पहले कांग्रेस का हिस्सा थे, लेकिन जब उन्होंने सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध किया तो पार्टी ने इन्हें 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया. तब तीनों ने मिलकर एनसीपी की नींव रखी. 

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