Sharad Yadav Passes Away: पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने गुरुवार को गुरुग्राम के अस्पताल में अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर मिलते ही राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर दौड़ गई. पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर अन्य बड़े नेताओं ने शरद यादव के निधन पर शोक जताया. उनके समर्थक हों या कभी उनके विरोधी रहे नेता भी उनकी राजनीतिक कौशल की तारीफ करते नहीं थकते.


यह शरद यादव का राजनीतिक कौशल ही था कि मध्य प्रदेश से निकलकर उन्होंने अपनी राजनीतिक पहचान सही से बिहार में बनाई. वह बिहार से कई बार सांसद भी चुने गए, जबकि जनता दल से लेकर जेडीयू तक की बात करें तो वह लंबे समय तक पार्टी के अध्यक्ष बन रहे. हालांकि आखिरी दिनों में उनका राजनीतिक अंत ठीक नहीं रहा और बिहार के सीएम नीतीश कुमार से टकराहट की वजह से उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था.


1997 से ही पार्टी में रहा था दबदबा


शरद यादव को 1997 में जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था. 1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर इन्होंने जनता दल यूनाइटेड की स्थापना की थी. हालांकि जेडीयू मुख्य रूप से 30 अक्टूबर 2003 में वजूद आई थी. तब नीतीश कुमार ने अपनी समता पार्टी का विलय जनता दल यूनाइटेड में किया था. उनके अलावा रामकृष्ण हेगड़े की लोक शक्ति का भी विलय जेडीयू में हुआ था. 2003 से लेकर 2016 तक शरद यादव जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे. 


इस तरह अपनी ही पार्टी से हुए दूर


बेशक शरद यादव ने जेडीयू की स्थापना की और वह इस पार्टी में 13 साल तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे, लेकिन पार्टी में धीरे-धीरे नीतीश कुमार का कद बढ़ता जा रहा था. 2016 में नीतीश कुमार शरद यादव को हटाकर खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. यहीं से दोनों के बीच मनमुटाव होने लगा. इसके बाद रही सही कसर 2017 में निकल गई. बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी की गठबंधन सरकार चल रही थी. इस बीच अचानक 26 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार ने बिहार के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. उस दौरान भ्रष्टाचार के आरोप में डिप्टी सीएम तेजस्वी से इस्तीफे की मांग बढ़ने लगी थी. बाद में नीतीश कुमार ने कहा था कि ऐसे माहौल में काम करना मुश्किल हो गया था. नीतीश कुमार ने फिर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों की मदद से सरकार बनाई और 27 जुलाई को एक बार फिर बिहार के सीएम बने.


शरद यादव को नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ जाना हजम नहीं हुआ. इसके बाद उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इसका विरोध का नुकसान उन्हें उठाना पड़ा और शरद यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसके बाद शरद यादव ने अपनी अलग पार्टी बनाई, जिसका नाम उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल रखा. हालांकि 1 साल बाद ही उन्होंने अपनी इस पार्टी का विलय लालू यादव की आरजेडी में कर दिया. 


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