नई दिल्ली: शरद यादव देश की समाजवादी राजनीति के बड़े स्तम्भ माने जाते हैं. लगभग 45 सालों से वो समाजवादी राजनीति की हर करवट के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष गवाह रहे हैं. किसी भी समाजवादी नेता की तरह उन्होंने लगातार कांग्रेस की संस्कृति और नीतियों के खिलाफ अपनी आवा बुलंद की है.
आपातकाल में इंदिरा गांधी ने जेल में डाला
25 जून 1975 को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया और जयप्रकाश नारायण समेत देश के सभी दिग्गज नेताओं को जेल में डाल दिया. इन नेताओं में युवा शरद यादव भी शामिल थे जिनकी उम्र उस वक़्त केवल 28 साल थी और वो उनकी सियासी ज़िन्दगी के बिल्कुल शुरुआती साल थे.
यादव खुद ये बात बताते आए हैं कि किस तरह उस दौरान उन्हें पैरों में चोट लगी जिसका असर आजतक उनके पैरों में है. ऐसे में अगर ये कहा जाए कि शरद यादव को अब वही इंदिरा गांधी ज़्यादा पसंद आने लगी हैं तो आप चौंक सकते हैं लेकिन यादव खुद ये बात कह रहे हैं.
क्यों अच्छी लगने लगीं इंदिरा गांधी ?
शरद यादव के शब्दों में इसकी सबसे बड़ी वजह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियां. यादव नरेन्द्र मोदी की ज़्यादातर नीतियों के खिलाफ हैं लेकिन पीएम की एक नीति जिसके चलते उन्हें अब इंदिरा गांधी बेहतर लगने लगी हैं वो है लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं पर उनका हमला.
शरद यादव मानते हैं कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लगातार संसद, चुनाव आयोग और सीबीआई जैसी लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग होता आ रहा है. उनका दावा है कि ऐसा दुरुपयोग तो इंदिरा गांधी के समय में भी नहीं हुआ था. बकौल शरद यादव - " एक आपातकाल को छोड़ दिया जाए तो इंदिरा गांधी से बेहतर प्रधानमंत्री आज तक नहीं हुआ ".
" अब मोदी बड़ी चुनौती "
शरद यादव ये भी मानते हैं कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोगों की धार्मिक, बोलने और जीने की आज़ादी पर हमले तेज़ हो गए हैं जो इन्दिरा के समय नहीं था. मसलन लव जिहाद और घर वापसी. इसलिए मोदी अब ज़्यादा बड़ी चुनौती बन गए हैं. उन्हीं के शब्दों में - "पहले कांग्रेस पहाड़ थी लेकिन अब ऊंट हो गयी है, अब नया पहाड़ बीजेपी और नरेंद्र मोदी के रूप में हमारे सामने है."
शरद यादव और कांग्रेस हुए करीब
केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के बाद से ही शरद यादव कांग्रेस के करीब आने लगे थे लेकिन नोटबन्दी के बाद से दोनों और क़रीब आ गए. यहां तक कि शरद यादव की तब की पार्टी जेडीयू के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा नोटबन्दी का समर्थन किये जाने के बावजूद शरद यादव लगातार उसका विरोध करते रहे और पार्टी के रुख़ के उलट नोटबन्दी पर विपक्ष के विरोध प्रदर्शनों में शामिल होते रहे.
बात तब ज़्यादा बिगड़ गई जब नीतीश कुमार ने बिहार में लालू यादव से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार बना ली. जेडीयू नीतीश कुमार और शरद यादव की अगुवाई वाले दो खेमों में बंट गयी और जेडीयू पर स्वामित्व का मामला चुनाव आयोग जा पहुंचा. अभी दो दिनों पहले ही चुनाव आयोग ने नीतीश कुमार की अगुवाई वाले गुट को असली जेडीयू करार दिया है. शरद यादव के गुट और कांग्रेस के बीच गुजरात चुनाव में गठबंधन होने की संभावना है.