तीन तलाक बिल लोकसभा में पेश, थरूर और ओवैसी बोले- विधेयक किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं रहना चाहिए
तीन तलाक: एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि आपको मुस्लिम महिलाओं से इतनी मोहब्बत है तो केरल की महिलाओं के प्रति मोहब्बत क्यों नहीं है? आखिर सबरीमाला पर आपका रूख क्या है?
नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज लोकसभा में तीन तलाक बिल पेश किया. इस दौरान विपक्षी दलों के विरोध का सामना करना पड़ा इसे देखते हुए मत विभाजन कराया गया. बिल पेश करने के समर्थन में 186 जबकि विरोध में 74 वोट पड़े.
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019’ पेश करते हुए कहा कि विधेयक पिछली लोकसभा में पारित हो चुका है लेकिन 16वीं लोकसभा लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के कारण और राज्यसभा में लंबित रहने के कारण यह निष्प्रभावी हो गया. इसलिए सरकार इसे दोबारा इस सदन में लेकर आई है.
सरकार का बयान- रविशंकर प्रसाद ने विधेयक को लेकर विपक्ष के कुछ सदस्यों की आपत्ति को सिरे से दरकिनार करते हुए कहा, ''जनता ने हमें कानून बनाने भेजा है. कानून पर बहस और व्याख्या का काम अदालत में होता है. संसद को अदालत नहीं बनने देना चाहिए.''
प्रसाद ने कहा कि यह ‘‘नारी के सम्मान और नारी-न्याय का सवाल है , धर्म का नहीं. ’’ प्रसाद ने सवाल किया, ''जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के चलन से पीड़ित हैं तो क्या संसद को इस पर विचार नहीं करना चाहिए? 2017 से तीन तलाक के 543 मामले विभिन्न स्रोतों से सामने आये हैं जिनमें 229 से अधिक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आये. इसलिए कानून बनाना जरूरी है.'' प्रसाद ने कहा कि हमें लगता था कि चुनाव के बाद विपक्ष इस विधेयक की जरूरत को समझेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
इससे पहले विपक्ष ने विधेयक पेश किये जाने का विरोध किया, जिसके बाद अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि अभी मंत्री केवल विधेयक पेश करने की अनुमति मांग रहे हैं. आपत्तियां उसके बाद दर्ज कराई जा सकती हैं.
शशि थरूर ने की ये मांग- तीन तलाक से संबंधित विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि हम तीन तलाक के खिलाफ हैं लेकिन इस विधेयक क प्रस्ताव से इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने कहा कि यह विधेयक किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं रहना चाहिए.
कांग्रेस नेता ने कहा, ''अगर सरकार की नजर में तलाक देकर पत्नी को छोड़ देना गुनाह है, तो ये सिर्फ मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित क्यों है. क्यों ना इस कानून को सभी समुदाय के लिए लागू किया जाना चाहिए.''
शशि थरूर, आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन बताते हुए सरकार से सभी समुदायों के लिए समान कानून बनाने की जरूरत बताई.
रविशंकर प्रसाद ने इस पर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के खंड 3 में कहा गया है कि सरकार को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोका जा सकता. ओवैसी समेत कुछ सदस्यों ने विधेयक पेश किये जाने से पहले मत-विभाजन की मांग की. इसमें विधेयक के पक्ष में 186 और विरोध में 74 मत मिले.
ओवैसी का बीजेपी पर तंज लोकसभा सांसद ओवैसी ने कहा कि यह बिल अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी खत्म नहीं होती है और हमने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं.
उन्होंने कहा, ''अगर किसी गैर मुस्लिम पति को जेल में डाला जाएगा तो उसको एक साल की सजा होगी और मुस्लिम को तीन साल की सजा मिलेगी. यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है. यह संविधान के खिलाफ बिल है. आप महिला के साथ नहीं हैं. जो पति तीन साल जेल में रहेगा तो महिला का भत्ता कौन देगा. आप देंगे भत्ता?''
ओवैसी ने आगे कहा, ''आपको (बीजेपी) मुस्लिम महिलाओं से इतनी मोहब्बत है तो केरल की महिलाओं के प्रति मोहब्बत क्यों नहीं है? आखिर सबरीमाला पर आपका रूख क्या है?
कानून में क्या है प्रावधान? पिछले साल दिसंबर में तीन तलाक विधेयक को लोकसभा ने मंजूरी दी थी. लेकिन यह राज्यसभा में पारित नहीं हो सका. संसद के दोनों सदनों से मंजूरी नहीं मिलने पर सरकार ने इस संबंध में अध्यादेश लेकर आई थी जो अभी प्रभावी है. मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिल गयी तो यह इस संबंध में लाये गये अध्यादेश की जगह ले लेगा.
इस विधेयक के तहत मुस्लिम महिलाओं को एक बार में तीन तलाक कहकर वैवाहिक संबंध समाप्त करना गैरकानूनी होगा. विधेयक में ऐसा करने वाले पति के लिए तीन साल के कारावास की सजा का प्रावधान प्रस्तावित है.