मोदी कैबिनेट ने नागरिकता संशोधन बिल को दी मंजूरी, थरूर बोले- इससे संविधान का मूल सिद्धान्त कमतर होता है
नागरिकता संशोधन बिल 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजरी दे दी है. इसका वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने विरोध किया है. उन्होंने कहा कि यह संविधान के मूल सिद्धांत को कम करने वाला है.
नई दिल्ली: नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर विरोध जताते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने बुधवार को कहा कि इससे संविधान का मूलभूत सिद्धान्त कमतर होता है. इससे पहले केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने उस विधेयक को मंजूरी दी जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेलने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.
शशि थरूर ने संसद परिसर में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि विधेयक असंवैधानिक है क्योंकि विधेयक में भारत के मूलभूत विचार का उल्लंघन किया गया है. वो लोग जो यह मानते हैं कि धर्म के आधार पर राष्ट्र का निर्धारण होना चाहिए. इसी विचार के आधार पर पाकिस्तान का गठन हुआ. हमने सदैव यह तर्क दिया है कि राष्ट्र का हमारा वह विचार है जो महात्मा गांधी, नेहरूजी, मौलाना आजाद, डा. आंबेडकर ने कहा कि धर्म से राष्ट्र का निर्धारण नहीं हो सकता.’’
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वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘हमारा वह देश है जहां धर्म पर विचार किए बिना प्रत्येक को इस देश में समान अधिकार है और संविधान में इसका जिक्र किया गया है. आज यह विधेयक संविधान के इस मूलभूत सिद्धान्त को कमतर करता है.’’
नागरिकता संशोधन बिल 2016 क्या है?
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है. संशोधन के बाद ये बिल देश में छह साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का रास्ता तैयार करेगा. लेकिन 'नागरिकता अधिनियम 1955' के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.
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