नई दिल्ली: ‘सेहत का मेरी मिजाज थोड़ा कभी कमजोर था, पर मेरा हौसला हिमालय की चट्टानों से भी ज्यादा कड़ा था.’ ये आखिरी शब्द थे पैरा-एसएफ के पूर्व कमांडिंग अफसर, कर्नल नवजोत सिंह बल के. कोरोना वायरस के कहर के बीच गुरूवार को बेंगलुरू में भारतीय सेना की एलीट पैरा-एसएफ रेजीमेंट के पूर्व सीओ की कैंसर लड़ते हुए मौत हो गई.


शौर्य-चक्र विजेता कर्नल नवजोत सिंह बल ने अस्पताल से अपनी आखिरी सेल्फी ली जिसमें वे मुस्कराते हुए दिख रहे हैं. एक हाथ कटने के बावजूद वे युद्ध के मैदान में रहते थे और कैंसर होने के बावजूद 21 किलोमीटर मैराथन में हिस्सा लिया था. आखिरी समय में लिखी उनकी कविता दिखाती है कि वे वाकई में एक सच्चे योद्धा थे.



पैतृक तौर से अमृतसर के रहने वाले कर्नल नवजोत सिंह सेना की पैरा-एसएफ (स्पेशल फोर्सेज़) रेजीमेंट की टू-पैरा के सीओ (कमांडिंग ऑफिसर) थे. साल 2003 में कश्मीर में एक मुश्किल ऑपरेशन के लिए शांतिकाल में देश के तीसरे सबसे बड़े बहादुरी पदक, शौर्य चक्र से नवाजा गया था.


लेकिन 2018 में उन्हें कैंसर की बीमारी हो गई थी. इसके लिए उनके दाएं हाथ को काटना भी पड़ा था. इसके बावजूद वे अपनी यूनिट को कमांड करते रहे और राजस्थान के थार रेगिस्तान में एक युद्धभ्यास में हिस्सा लिया था. यहां तक की मैराथन में भी हिस्सा लिया था. लेकिन पिछले साल मार्च में कर्नल नवजोत को अपनी बीमारी के चलते यूनिट छोड़नी पड़ी और उन्हें बेंगलुरू स्थित पैरा-एसएफ रेजीमेंट के ट्रेनिंग सेंटर भेज दिया गया. बेंगलुरू में ही उनका‌ इलाज भी चल रहा था.


अस्पताल में अपने आखिरी वक्त में उन्होनें एक कविता लिखी. इसमें उन्होनें लिखा, "मैं इस जंग में अपने पूरे सामर्थ्य से लड़ा था, होकर निडर, अडिग और अविचल खड़ा था. सेहत का मेरी मिजाज थोड़ा कभी कमजोर था, पर मेरा हौसला हिमालय की चट्टानों से भी ज्यादा कड़ा था."


यहां तक की अपनी आखिरी सेल्फी में भी वे मुस्कुरारे रहे थे. उनके परिवार में उनकी पत्नी आरती और दो बेटे जोरावर और सहवाज़ हैं. उनके पिता भी सेना में अफसर थे. अपनी कविता में उन्होनें अपने पूरे परिवार का जिक्र किया है. अपनी रेजीमेंट के आदर्श-वाक्य, 'बलिदान परम धर्म:' का भी उल्लेख कर्नल ने अपनी कविता में किया.