नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी. साथ ही गतिरोध दूर करने के लिए चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई. इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिन्दर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट, दक्षिण एशिया के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ प्रमोद जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं.


शेतकारी संगठन के प्रमुख अनिल घनवट ने मंगलवार को कहा कि ये आंदोलन कहीं रूकना चाहिए और किसानों के हित में एक क़ानून बनना चाहिए. क़ानूनों को रद्द करने की बजाए उनमें संशोधन होना चाहिए. आंदोलनकारी किसान नेताओं को ​कमेटी के साथ कार्य करके अपनी बात रखनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पहले किसानों का कहना सुनना पड़ेगा, अगर उनकी कोई गलतफहमी है तो वो दूर करेंगे. किसानों को विश्वास दिलाना पड़ेगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और एपीएमसी मंडी जारी रहेगी. जो कुछ भी होगा वो पूरे देश के किसानों के हित में होगा. जब तक सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस हमारे पास नहीं आ जाती हैं तब तक हम काम शुरू नहीं कर सकते हैं. गाइडलाइंस आने के बाद हम सब किसान नेताओं से मिलकर उनकी राय जानेंगे कि उनको क्या चाहिए और वो कैसे किया जा सकता है.


अनिल घनवट ने कहा, 'हम केन्द्र के इन तीन कृषि कानूनों की सराहना नहीं कर रहे हैं, जिन्हें किसानों को आजादी देने वाला बताया गया है. दिवंगत शरद जोशी के नेतृत्व में शेतकारी संगठन ने ही सबसे पहले इन सुधारों के लिये दबाव बनाया था.' उनके संगठन पर किसानों का प्रतिनिधित्व करने के बाजवूद इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार का समर्थन करने के आरोप लग रहे हैं.


किसान संगठनों की प्रतिक्रिया


आंदोलनकारी किसान संगठनों ने कोर्ट के कानून के अमल पर रोक लगाने के फैसले का स्वागत किया लेकिन कमेटी के सामने पेश होने से इनकार कर दिया. किसान संगठनों का कहना है कि जो सरकार की नीयत है वही कमेटी की भी नीयत है. किसान नेताओं ने साफ कर दिया कि जब तक तीनों कानूनों को रद्द नहीं किया जाता है तब तक उनका आंदोलन जारी हेगा.


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