करगिल शिखर सम्मेलन: 21 साल की उम्र में शहीद हुए थे सुमित रॉय, मां ने कहा- स्कूलों में दी जाए सेना की ट्रेनिंग
18 गढ़वाल राइफल्स के जवान सुमित रॉय करगिल युद्ध के समय द्रास में थे और विस्फोटक की चपेट में आकर 21 साल की उम्र में 3 जुलाई 1999 को शहीद हुए थे. मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
नई दिल्ली: करगिल युद्ध के 20 साल पूरे हो चुके हैं. इस युद्ध में किसी ने बेटा खोया, किसी ने पत्नी तो किसी ने भाई. लेकिन देश भक्ति कम नहीं हुई. एबीपी न्यूज़ के खास कार्यक्रम 'करगिल शिखर सम्मेलन' में शहीद कैप्टन सुमित रॉय की मां स्वपना रॉय ने बेटे को खोने का दर्द साझा किए. साथ ही उन्होंने सरकार से मांग की कि स्कूल में बच्चों को सेना की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए.
स्वपना ने कहा कि आज बहुत मुश्किल दिन है. कामकाज की वजह साल तो निकल जाते हैं. लेकिन ये दिन नहीं निकलता है. इस दिन को लोग घर आते हैं. मीडिया वाले भी आते हैं. पुरानी बातें याद आ जाती है. मन भारी हो जाता है. लेकिन जनता को मॉटिवेट करना जरूरी है.
उन्होंने बताया कि आखिरी बार जब बात हुई तो उसने नहीं बताया कि मैं द्रास में हूं. स्वपन्ना ने कहा- ''26 जून को फोन पर सुमित से बात हुई थी. उसने बताया कि मैं अभी द्रास में हूं. 9 मई को घर से वापस गया था, उस समय कुपवाड़ा में था. द्रास जाने की बात पहले उसने नहीं बताई. उसने वहां की स्थिति नहीं बताई. वहां हमारे कई परिवार के लोग भी तैनात थे. उसने उस दिन घरेलू बात की. 26 जून के बाद बात नहीं हुई. मैं जाफरपुर कलां में नवोदय स्कूल में थी. उसी समय घर में कॉल आया था और उसने पापा से बात की. मैं घर पहुंची लेकिन बात नहीं हुई. उसके अगले दिन फोन आया कि सुमित शहीद हो चुके हैं.''
उन्होंने कहा, ''मेरे दोनों बेटे फौज में हैं. दोनों ने इंफेंट्री डिविजन को चुना. बच्चे जब फौज में चले गए हैं तो हम कैसे सोच सकते हैं कि वो पीछे देखेंगे. मैं भी जॉब में थी. करगिल के पांच साल बाद मेरे पति की मौत हो गई थी. डिप्रेशन में चले गए थे. सुमित बहुत छोटा था. कई बार कहते थे कि बहुत छोटा है, एनडीए के माध्यम से गया है. मैं तसल्ली देती थी. लेकिन उसकी मौत के बाद पति इस दर्द को नहीं सहन कर पाए. डिप्रेशन में चले गए. खोने का बहुत दर्द है. हम भूल नहीं सकते हैं. मैंने अपने आप को व्यस्त कर लिया. मैं एनजीओ के साथ काम कर रही हूं. मैं समाज के लिए काम करती हूं, बच्चों के लिए काम करती हूं. अपने लिए सोचने का वक्त नहीं मिलता है. सोच के सिर्फ सेहत खराब होता है, किसी की अच्छाई के लिए काम करेंगे तो खुशी मिलती है.''
स्वपना ने कहा कि हर एक बच्चे को स्कूल में सेना की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. एजुकेशन में इसे शामिल किया जाना चाहिए. एक बच्चे को जरूर ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. सभी से पांच साल की ड्यूटी कराया जाना चाहिए. सेना में जवानों की काफी कमी है, यह आसानी से पूरा होगा.
18 गढ़वाल राइफल्स के जवान सुमित रॉय हिमाचल प्रदेश के सोलन के रहने वाले थे. उन्होंने द्रास के प्वाइंट 4700 पर कब्जा किया. उसके बाद विस्फोटक की चपेट में आकर 21 साल की उम्र में 3 जुलाई 1999 को शहीद हुए. मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.