शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी: जानिए इतिहास, विवाद, चुनाव और राजनीति
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की स्थापना का मकसद गुरुद्वारों की व्यवस्था में सुधार करना और गुरुद्वारों को महंतों से मुक्ति दिलाना था.
पंजाब के अमृतसर में आज यानी 9 नवंबर को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष का चुनाव हुआ. इस चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने जीत हासिल की और एसजीपीसी के नये अध्यक्ष बने. उनका मुकाबला एसएडी से बर्खास्त पूर्व एसजीपीसी अध्यक्ष बीबी जगीर कौर से था. इस पद के लिए वोटिंग आज ही 1 बजे एसजीपीसी के ऑफिस में शुरू हुई और आज ही परिणाम भी घोषित कर दिया गया.
हरजिंदर सिंह धामी ने 104 वोट हासिल किए और बीबी जागीर कौर को 62 वोटों से हराया. बलदेव सिंह कैमपुरी को वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अवतार सिंह फतेहगढ़ को कनिष्ठ उपाध्यक्ष और गुरचरण सिंह गरेवाल को महासचिव चुना गया, यह सभी सर्वसम्मति से चुने गए.
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भारत में मौजूद संस्था है जो गुरुद्वारों के रख-रखाव के लिये उत्तरदायी है. इसका अधिकार क्षेत्र तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश तक है. यह कमेटी गुरुद्वारों की सुरक्षा, वित्तीय, सुविधा रखरखाव और धार्मिक पहलुओं का प्रबंधन करता है. साथ ही सिख गुरुओं के हथियार, कपड़े, किताबें और लेखन सहित पुरातात्विक रूप से दुर्लभ और पवित्र कलाकृतियों को सुरक्षित रखती है.
क्यों पड़ी इस कमेटी की जरूरत
इस कमेटी की स्थापना का मकसद गुरुद्वारों की व्यवस्था में सुधार करना और गुरुद्वारों को महंतों से मुक्ति दिलाना था. दरअसल ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा कर लिया. उस दौरान स्वर्ण मंदिर और गुरुद्वारों का नियंत्रण 'महंतों' (पुजारियों) के हाथों में था. इन महंतो को ब्रिटिश सरकार का मौन समर्थन प्राप्त था. ये 'महंत' अक्सर गुरुद्वारों को अपनी व्यक्तिगत जागीर मानते थे और मूर्ति पूजा जैसी प्रथाओं को प्रोत्साहित करते थे.
बहुत कम लोगों को यह पता है कि एसजीपीसी ने जातिवाद और छुआछूत के विरुद्ध भी लंबा संघर्ष किया है. आजादी से पहले जाति प्रथा चरम पर थी और गुरुद्वारों में भी दलितों के साथ भेदभाव किया जाता था. इसके अलावा महंत सिख धर्म के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए दलितों के साथ भेदभाव भी किया करते थे.
उस दौरान दलित सिखों को मंदिर में प्रसाद नहीं चढ़ाने दिया जाता था. इस भेदभाव से कई सिख नेता नाराज थे. जिसके बाद कुछ विचारशील नेताओं ने दलित सिखों के स्वर्ण मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के अधिकारों को बहाल करने के लिए 12 अक्टूबर, 1920 को जलियांवाला बाग में एक बड़ी सभा बुलाई गई थी. इस सभा में इकट्ठा हुए लोग स्वर्ण मंदिर में चले गए और उन महंतों को हटा दिया जिनके पास कम जनसमर्थन था.
उसी दिन दलित सिखों के वर्चस्व वाली 25 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था. इस समिति ने समुदाय के सदस्यों को संगठित होने के लिए प्रोत्साहित किया और अंत में 15 नवंबर, 1920 को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) नामक 175 सदस्यीय निकाय का गठन किया गया.
दिलचस्प बात यह है कि दो दिन पहले ब्रिटिश सरकार ने स्वर्ण मंदिर के प्रबंधन के लिए 36 सिखों की अपनी समिति गठित की थी. SGPC में ब्रिटिश कमेटी के सदस्य भी शामिल थे. एसजीपीसी की पहली बैठक 12 दिसंबर 1920 को अकाल तख्त में हुई थी.
जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ SGPC
एसपीजीसी के गठन के 2 साल बाद 14 मार्च 1927 को जनरल हाउस में एक बड़ा प्रस्ताव पास करते हुए दलित और दूसरे सिखों के बीच के फासले को कम करने का प्रयास किया गया. इस प्रस्ताव के तहत जिन दलित समुदाय के लोग ने सिख धर्म को अपना लिया है. उसे भी दूसरी बराबरी का दर्जा दिया जाएगा. अगर कोई सिख के साथ जाति को लेकर भेदभाव करता है तो पूरा सिख समुदाय उसके लिए लड़ेगा.
इसके अलावा साल 1953 में गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन किया गया और एसजीपीसी की 20 सीटों को दलित सिखों के लिए आरक्षित कर दिया गया. वहीं साल 2016 में भारतीय संसद में गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन करके सहजधारी सिखों को एसजीपीसी चुनावों से बाहर कर दिया गया. यानी उनको SGPC चुनाव में वोट देने का अधिकार नहीं है.
महात्मा गांधी ने कहा गुरुद्वारा एक्ट पारित होना आजादी की पहली जीत
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की स्थापना के 5 साल बाद यानी साल 1925 में गुरुद्वारा एक्ट पारित किया गया था. इस एक्ट को पास करवाने में सिख समुदाय को काफी जद्दोजहद करना पड़ा था. दरअसल उस वक्त स्वर्ण मंदिर परिसर से लेकर प्रमुख गुरुद्वारों पर महंतों का नियंत्रण था जो आसानी से हार नहीं मानने वाले थे. यही कारण है कि गुरुद्वारा एक्ट आने के बाद महात्मा गांधी ने इस जीत को आजादी की लड़ाई की पहली जीत बताया था.
दो हिस्सों में बंटी एसजीपीसी
भारत के आजाद होने के बाद एसजीपीसी के दो भागों में बांट दिया गया. एक भारत की एसजीपीसी और एक पाकिस्तान की पीएसजीपीसी. इसके अलावा साल 2014 में हरियाणा सरकार ने भी एक विधेयक पास कर हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बना दी. हालांकि इस कमेटी को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में चुनौती दे दी.
एसपीजीसी और पंजाब राजनीति
102 साल पुरानी SGPC संस्था की शुरुआत भले ही गुरुद्वारों की देखभाल प्रबंधन और रखरखाव के लिए की गई हो, लेकिन आज ये कमेटी कई शैक्षणिक संस्थाओं जिसमें स्कूल, मेडिकल कॉलेज, विद्यालय अस्पताल और कई चैरिटेबल ट्रस्ट भी संचालित करती है. शुरुआत में इस कमेटी की भूमिका सिर्फ पंजाब के गुरुद्वारों तक सीमित थी. लेकिन इन 102 सालों में इसका दायरा काफी बढ़ा है. अब यह केवल पंजाब तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश, यहां तक कि विश्व के कई देशों तक फैल गया है.
इसके अलावा एसजीपीसी के ज्यादातर सदस्य ऐसे है जो राजनीति में सक्रिय हैं और अकाली दल से ताल्लुक रखते हैं. ऐसा कहा जा सकता है कि अकाली दल का एसजीपीसी पर प्रभुत्व है.
विवादों से रहा गहरा नाता
समय के साथ साथ जैसे एसजीपीसी का दायरा बढ़ता गया वैसे ही इस कमेटी का विवादों से भी नाता जुड़ता गया. इसमें सबसे नानकशाही कैलेंडर का विवाद सबसे पुराना है. इसके अलावा जत्थेदारों के अधिकार और उनकी नियुक्ति करना भी विवादों से घिरा हुआ है. स्वर्ण मंदिर परिसर से 328 गुरु ग्रंथ साहिब की पुस्तकें (स्वरूप) गायब होने से भी एसजीपीसी विवादों में घिरी.
कैसे होती है वोटिंग
इस कमेटी के लिए वोटिंग केवल निर्वाचित सदस्य ही कर सकते हैं. यहां सबसे पहली बार साल 1999 में किसी महिला को एसजीपीसी का अध्यक्ष चुना गया था. कमेटी की पहली महिला अध्यक्ष का नाम बीबी जागीर कौर था. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का इतिहास शानदार और कुर्बानियों से भरा रहा है. इन 100 सालों में एसजीपीसी ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं.
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