Maharashtra: 'मैं 4 बार मुख्यमंत्री रहा लेकिन राज्यपाल ने एक बार भी पेड़ा नहीं खिलाया', शिवसेना की ‘पेड़ा पॉलिटिक्स’
Peda Politics: महाराष्ट्र में अब पेड़ा पॉलिटिक्स का मुद्दा उठ गया है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक बयान को कोट किया गया है जिसमें कहा गया है कि इतनी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद भी पेड़ा नहीं खिलाया
Shiv Sena Saamana: महाराष्ट्र (Maharashtra) में सत्ता परिवर्तन के साथ बहुत सी चीजें बदल गई हैं. इसीलिए शिवसेना (Shiv Sena) के मुखपत्र सामना (Saamana) के जरिए बार-बार एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde), देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadanvis) तो कभी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर हमला किया जा रहा है. इस बार सामना में महाराष्ट्र के राज्यपाल (Governor) पर निशाना साधा है. सामना में राज्यपाल पर शरद पवार (Sharad Pawar) के बयान को लेकर कहा, 'मैं इतनी बार मुख्यमंत्री (Chief Minister) बना लेकिन उन्हें किसी ने पेड़ा नहीं खिलाया.'
सामना में कहा गया कि महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार के जाने या सरकार बदलने से हमारे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी सबसे ज्यादा खुश हैं. उनके चेहरे की खुशी ऐसी है मानो क्रांतिकारी भगत सिंह को लाहौर की सेंट्रल जेल में जब अंग्रेजों ने फांसी दी, उस समय अंग्रेजों को जो खुशी मिली होगी वैसी. नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री श्री शिंदे को राज्यपाल ने उसी खुशी के उत्साह के साथ बधाई दी. जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने, तब उन्हें ये खुशी नहीं मिली थी.
शिवसेना की 'पेड़ा पॉलिटिक्स'
सामना में पेड़ा पॉलिटिक्स को लेकर कहा गया है कि राजभवन परिसर स्थित पेड़े की दुकान बंद हो गई होगी. शरद पवार जो कहते हैं, वो बातें मजेदार होने के साथ-साथ सही भी हैं. शरद पवार का कहना है कि मैं अब तक चार बार मुख्यमंत्री रह चुका हूं, लेकिन राज्यपाल ने एक बार भी पेड़ा नहीं खिलाया. शरद पवार का ऐसा कहना सही ही है क्योंकि राज्यपाल तटस्थ और संविधान के संरक्षक होते हैं. मुख्यमंत्री कौन है या वह किस पार्टी से आए या गए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन पिछले दो-चार सालों में महाराष्ट्र के राजभवन में एक अलग ही तस्वीर नजर आ रही है.
राज्यपाल का दोहरा रवैया
‘ठाकरे सरकार’ के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान जब कुछ मंत्रियों ने शपथ की शुरुआत ‘शाहू, फुले और आंबेडकर का नाम लेकर की तो राज्यपाल भगत सिंह नाराज हो गए और उन्होंने 'ये शपथ संविधान के अनुरूप नहीं है', ऐसा कहते हुए वह मंच पर ही मंत्रियों को फटकारने लगे थे. संविधान और शपथ की वो रक्षा इस खेप के मामले में नजर नहीं आई. संविधान के तथाकथित संरक्षक ही ऐसे दोयम दर्जे का व्यवहार कर रहे हैं, तो लोग अयोग्य विधानसभा सदस्य ही क्या, बाहरी किसी भी ऐरे-गैरों को अंदर लाकर ये लोग विधानमंडल में कोई भी प्रस्ताव और चुनाव जीत सकते हैं. सिर्फ मुंह दबाए गए सिरों को ही तो गिनना है. ऐसा व्यवहार और राजनीति महाराष्ट्र में कभी नहीं हुई.
फिर दोहराया जाएगा पेड़े खाने का कार्यक्रम
अब सवाल उन 12 मनोनीत विधान परिषद सदस्यों का है, जो पिछले ढाई साल से राज्यपाल की मेज पर विचाराधीन है. अब नई सरकार (Government) आई है इसलिए उस फाइल के बदले नई फाइल लाई जाएगी और चौबीस घंटे के भीतर राज्यपाल (Governor) के हस्ताक्षर से इसे मंजूरी मिल जाएगी और पेड़े खिलाने का कार्यक्रम बार-बार दोहराया जाएगा. समय बहुत ही मुश्किलों भरा आया है, यह सत्य है लेकिन यह अंधकार का समय भी बीत जाएगा!
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