शिवसेना ने गुरुवार को एक बार फिर से केन्द्र सरकार पर हमला बोला. पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में केन्द्र पर निशाना साधते हुए कहा कि  ‘देशद्रोह’ का चलन में आनेवाला शब्द और ‘देशद्रोह की धारा’, ये राजनीतिक हथियार साबित हुए हैं. एक तरफ लोकतंत्र की ‘आवाज’ और दूसरी तरफ तानाशाही ‘दबाव तंत्र’ का खेल शुरू है. शिवसेना ने आगे कहा- अच्छा हुआ, सर्वोच्च न्यायालय ने भी कान छेद दिए! सरकार अब तो ‘देशद्रोह धारा’ का ठेका और मनमानी छोड़ेगी क्या? विरोधियों की टीका-टिप्पणी के संवैधानिक अधिकार को स्वीकार करेगी क्या?


‘सुप्रीम कोर्ट ने छेद दिए सरकार के कान’


शिवसेना ने अपने मुखपत्र में आगे कहा- हमारे देश में पिछले 4-5 सालों से ‘देशभक्ति’ और ‘देशद्रोह’ की नई व्याख्या स्थापित कर दी गई है. मोदी सरकार का समर्थन करना देशभक्ति और विरोध व्यक्त करना देशद्रोह! यह ‘नवदेशद्रोह’ का स्टैंप अब तक कई लोगों पर लग चुका है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला भी उन्हीं में से एक हैं. उन्हें भी इसी प्रकार से ‘देशद्रोही’ साबित करने का प्रयास हुआ. हालांकि, अब सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के कान छेद दिए हैं.


‘देशद्रोह के ठेकेदारों को फटकार’


सामना में आगे कहा गया- फारुख अब्दुल्ला के विरोध में दाखिल एक याचिका को रद्द करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में देशद्रोह के ठेकेदारों को फटकार लगाई है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है, ‘सरकार का जो मत है, उससे भिन्न मत व्यक्त करना देशद्रोह नहीं है.’ जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने के बाद फारुख अब्दुल्ला ने टिप्पणी की थी. उनके वक्तव्य के पश्चात विवाद भी हुआ था. इसी संदर्भ में एक याचिका न्यायालय में दाखिल की गई थी, जिसमें उल्लेख था कि हिन्दुस्तान के विरोध में अब्दुल्ला ने पाकिस्तान और चीन की मदद ली है.


‘देशद्रोही साबित करने की बेलगाम प्रवृत्ति’


शिवसेना के मुखपत्र में आगे कहा गया- इस याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द तो किया ही, साथ ही सरकार के विरोध में मत व्यक्त करना देशद्रोह नहीं है, ऐसा भी स्पष्ट किया. 15 दिन पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी कहा था कि असंतुष्टों को चुप कराने के लिए सरकार उनके विरोध में देशद्रोह की धाराएं नहीं लगा सकती. अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार को ‘देशद्रोही’ साबित करने की बेलगाम वृत्ति पर उंगली उठाई है.


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