पुणे: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना ने जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस पार्टी की तारीफ की है. पार्टी नेता संजय राउत ने संसदीय लोकतंत्र का सम्मान करने के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस की सराहना की है. शिवसेना नेता ने साथ ही मौजूदा समय में ‘विपक्षी पार्टी’ के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़ा किया. उन्होंने कहा कि विपक्ष की अनुपस्थिति किसी देश की राजनीति को मनमाना और एकतरफा बना देती है.
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के एक लेख में पार्टी सांसद ने अगले महीने प्रस्तावित महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ बीजेपी और शिवसेना में शामिल होने के लिए कतार में खड़े अवसरवादियों पर कटाक्ष किया. शिवसेना नेता ने दलबदलू नेताओं पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कोई भी नेता विकास की मूल समस्या को लेकर पार्टी नहीं छोड़ रहे. संजय राउत ने कहा कि राजनीति एक कठिन कला है लेकिन कुछ लोगों ने इसे सरल बना दिया है.
नेहरू ने संसदीय लोकतंत्र में शिष्टाचार बनाए रखा
संजय राउत ने कहा, ‘‘जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस के बारे में मतभेद हो सकते हैं लेकिन उन्होंने संसदीय लोकतंत्र में शिष्टाचार को बनाये रखा है. वह कांग्रेस ही थी जो आजादी के बाद संसद में शिष्टाचार और परंपराओं से संबंधित कुछ नियम लेकर आयी.’’ राउत ने कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) के गठन के लिए कांग्रेस को श्रेय भी दिया.
शिवसेना नेता ने कहा, ‘‘वह जवाहरलाल नेहरू थे जिन्होंने देश में विपक्षी दल के महत्व को पहचाना. जब शुरू में विपक्षी दल कमजोर था, तो वह कहते थे कि उन्हें प्रधानमंत्री की भूमिका निभाने के साथ-साथ विपक्ष के नेता की भूमिका भी निभानी होगी.’’ राउत ने कहा कि यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी नेहरू के नक्शेकदम पर चलते थे. उन्होंने कहा, ‘‘यदि कोई विपक्षी दल नहीं है तो देश का लोकतंत्र कमजोर हो जाता है और राजनीति मनमानी और एकतरफा हो जाती है.’’
सामना में शिवसेना नेता ने लिखा
संजय राउत ने लिखा, ‘‘मराठवाडा में पानी की कमी अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के समान ही महत्वपूर्ण है लेकिन कोई भी इस विशेष मुद्दे का हवाला देते हुए पार्टी नहीं छोड़ रहा है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘भले ही हर जगह सूखा हो, लेकिन बीजेपी और शिवसेना में अन्य दलों के नेताओं का तांता लगा हुआ है. राजनीति एक कठिन कला है लेकिन अब कुछ लोगों ने इसे सरल बना दिया है.’’ शिवसेना नेता संजय रावत के बयान से साफ जाहिर है कि दल-बदल करने वाले नेताओं में अनेक सिर्फ अपने हित के लिए एक पार्टी छोड़ दूसरे में शामिल हो रहे हैं.
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