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बीएमसी चुनाव के लिए नहीं बैठा उद्धव-राज ठाकरे का 'सियासी समीकरण'!
नई दिल्ली: बीएमसी चुनाव को लेकर उद्धव ठाकरे-राज ठाकरे की पार्टी में दिन भर गठबंधन की सुगबुगाहट चली. रात में शिवसेना के सूत्रों ने कहा कि कोई गठबंधन नहीं होने जा रहा है. सुबह से खबर थी कि बीएमसी चुनाव में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आ सकते हैं. सूत्र बता रहे हैं कि शिवसेना राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस को 227 में से 50 सीटें लड़ने के लिए दे सकती है. अभी बीएमसी पर शिवसेना का कब्जा है. लेकिन अब शिवसेना के सूत्र कह रहे हैं कि कोई गठबंधन नहीं होने जा रहा है.
आपको बता दें कि शिवसेना-बीजेपी का बीएमसी में गठबंधन टूट गया है. बीएमसी चुनाव में गठबंधन टूटने के बाद क्या अब राज्य सरकार पर किसी तरह का संकट आ सकता है? शिवसेना ने फिलहाल इस बात से इनकार कर दिया है. लेकिन बीएमसी चुनाव के नतीजों के बाद क्या होता है इस पर सबकी निगाहें लगी हैं. कल ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बेहद सख्त लहजे में ये कहते हुए बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया था कि वो अब किसी के आगे कटोरा लेकर नहीं खड़े रहेंगे. इसके साथ ही ये साफ हो गया है कि अब बीएमसी चुनाव में बीजेपी और शिवसैनिकों के बीच मुंबई की सड़कों पर घमासान होगा. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या शिवसेना राज्य और केंद्र में भी बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ेगी?
गठबंधन टूटने के बाद मोदी सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बीजेपी शिवसेना के गठबंधन टूटने को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है. गठकरी ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में कहा ‘गठबंधन करना है ये दोनों पक्षों का अधिकार है. लेकिन गठबंधन टूटने की वजह जो शब्द हैं, जो शिवसेना की तरफ़ से बोले जाते हैं सामना में लिखे जाते हैं उससे अंतर बढ़ता है. शिवसेना के पच्चीस साल सड़ गए ऐसा कहना गलत है.
शिवसेना नेता संजय राउत की मानें तो राज्य की सत्ता में शिवसेना की भागीदारी भी बस कुछ ही दिनों की है. जानकारों की मानें तो शिवसेना का सारा ध्यान इस वक्त सिर्फ बीएमसी चुनाव पर है. बीएमसी में बीजेपी शिवसेना से छोटा दल है. ऐसे में चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना अगले कदम का एलान कर सकती है. वहीं बीजेपी ने भी फिलहाल दोस्ती को पूरी तरह खत्म नहीं माना है लेकिन केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी उद्धव ठाकरे की भाषा से आहत दिखे.
नितिन गडकरी ने कहा कि अगर 25 साल शिवसेना के सड़ गए ये कहना गलत है. अगर गठबंधन नहीं होता तो 1995 मे बीजेपी सेना की सरकार नहीं होती. शिवसेना की मुख्यमंत्री नहीं होता. . इस तरह के शब्दों का प्रयोग सहीं नहीं. गठबंधन टूटने की वजह जो शब्द है जो शिवसेना की तरफ़ से बोले जाते है सा सामना में लिखे जाते है उससे अंतर बढ़ता है.
बीएमसी चुनाव के लिए प्रचार के दौरान शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी से ताना सुनना पड़ेगा कि आखिर वो राज्य और केंद्र में सत्ता में हिस्सेदार हैं. वहीं जैसे शब्द उद्धव ने कहे हैं उससे साफ है कि पालिका चुनाव के बाद कुछ न कुछ फैसला करना होगा.
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