Shiv Sena Saamana: सरकार की असंसदीय शब्दों (Unparliamentary Words) की नई सूची पर नई बहस छिड़ गई है. विपक्षी पार्टियों (Opposition Parties) ने शब्दों की सूची को लेकर सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया है. इसी क्रम में शिवसेना (Shiv Sena) के मुखपत्र सामना (Saamana) में भी सरकार पर हमला किया गया है. शिवसेना ने कहा है कि नई ‘असंसदीय’ शब्दों की सूची को लेकर तनाव निर्माण हो गया है. शिवसेना ने कहा है कि जिन शब्दों को लोकसभा सचिवालय ने ‘असंसदीय’ आदि ठहराया है, वो शब्द हमारे संसदीय संघर्ष का वैभव हैं.
शिवसेना ने सवाल करते हुए कहा कि उनमें असंसदीय ऐसा क्या है? भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार नहीं कहना. फिर वैकल्पिक शब्द क्या है? तानाशाह को दूसरी उपमा क्या दी जाए? महाराष्ट्र में गद्दारी का प्रयोग करके दिल्ली ने लोकतंत्र का गला ही घोंट दिया. इस तानाशाही पर संसद में आवाज उठाने के दौरान सदस्यों को क्या और किस तरह से मत व्यक्त करना चाहिए. विरोधियों की जुबान ही काटकर उन्हें संविधान और स्वतंत्रता की चिता पर रख दिया है. यह तो आपातकाल से भी भयंकर है.
जो पार्टी ‘हम आपातकाल और तानाशाही के खिलाफ लड़े हैं’ ऐसा उठते-बैठते बोलती रहती है, उसी के द्वारा लोकतंत्र, स्वतंत्रता और संसदीय कार्य पर इस तरह से प्रहार किया जाना चाहिए?
‘जंगल में बागी होते हैं, पार्लियामेंट में डकैत’
सामना में कहा गया कि ‘जंगल में बागी मतलब विद्रोही होते हैं, पार्लियामेंट में डकैत मिलते हैं’, ऐसे आशय का एक संवाद ‘पानसिंह तोमर’ फिल्म में इरफान की जुबान पर रहता है. वर्तमान पार्लियामेंट की कुल मिलाकर तस्वीर पहले ही निराशाजनक है, उस पर एक तरफ तथाकथित ‘असंसदीय’ शब्दों की पट्टी संसद सदस्यों पर लगा दी गई है और दूसरी तरफ संसद भवन परिसर में प्रदर्शन, धरना, अनशन, आंदोलन करने पर केंद्र सरकार ने पाबंदी लगाई है. आप संसद में भी हम जो कहें वही बोलें और संसद के बाहर भी हमारे कहे अनुसार बर्ताव करें, ऐसी तानाशाही से सब रौंदा जा रहा है. लोकतंत्र अशोक स्तंभ पर गुर्रानेवाले सिंह जैसा ही होना चाहिए लेकिन वर्तमान शासक गुर्राते हैं और संसद को डरपोक खरहा बनाकर रख दिया है.
‘नए भारत का नया शब्दकोष’
सामना में कहा गया है कि ‘नया भारत नया शब्दकोष’ ऐसा वर्णन राहुल गांधी ने किया है, जो कि उचित ही है. तृणमूल कांग्रेस के नेता सांसद डेरेक ओब्रायन ने तो स्पष्ट कहा है, ‘मेरे खिलाफ कार्रवाई करो, मुझे निलंबित करो मैं इस शब्द का इस्तेमाल करता रहूंगा, मैं लोकतंत्र के लिए लड़ता रहूंगा.’ देश की राजनीति में, समाज में आज भी जयचंद और शकुनि हैं. इसकी जिम्मेदार हमारी समाज व्यवस्था ही है. बीजेपी को जयचंद, शकुनि ऐसे ऐतिहासिक शब्दों का भाला क्यों चुभता है? कदम-कदम पर शकुनि का कपट-साजिश दिखने के दौरान देशहित के लिए ऐसे शकुनियों पर हमला न करना भी देश से घात ही सिद्ध होगा.
देश को मूक-बुधिर बनाकर रख दिया
शासक सांसदों को देशद्रोह करने के लिए मजबूर कर रहे हैं. देश को जिस तरह से मूक-बधिर, दिव्यांग बनाकर रख दिया है, वही मूक-बधिर अवस्था संसद की हो जाए, ऐसा किसी को लगता होगा तो वे भ्रम में हैं. सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में आज भी न्याय का थोड़ा-बहुत अंश जीवित है और संसद पर गुर्रानेवाले नए सिंह की हिम्मत जनता की कलाई में है. संसद देश की सबसे बड़ी न्यायपालिका है.
लोकतंत्र अशोक स्तंभ पर गुर्रानेवाले सिंह जैसा ही होना चाहिए लेकिन वर्तमान शासक गुर्राते हैं और संसद (Parliament) को डरपोक खरहा बनाकर रख दिया है. हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) ने कहा है, ‘तानाशाह एक डरपोक व्यक्ति होता है. चार गधे एक साथ चर रहे होंगे तो भी उसे डर लगता है. हमारे खिलाफ साजिश चल रही है’ आज की तस्वीर इससे कुछ अलग नजर नहीं आती है!
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