सरकार गठन में देरी पर शिवसेना ने बीजेपी से कहा, 'रथ फंसा है, संकटमोचक कृष्ण अमित शाह अब तक आगे नहीं आए'
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में पांच राजनीतिक परिस्थितियों का भी जिक्र किया. जिसमें पार्टी ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ भी गठबंधन की संभावनाओं का जिक्र किया है.
मुंबई: महाराष्ट्र में किसकी सरकार बनेगी और कैसे बनेगी? इस सवाल के जवाब का सभी को इंतजार है. इस बीच एक बार फिर से शिवसेना ने बीजेपी पर हमला बोला है और झूठ बोलने का आरोप लगाया है. साथ ही शिवसेना ने पांच राजनीतिक परिस्थितियों का जिक्र किया है.
पार्टी मुखपत्र 'संडे सामना' में लिखे लेख में शिवसेना नेता और सामना के कार्यकारी संपादक संजय राउत ने कहा है कि शिवसेना वो जल्दबाजी नहीं दिखाएगी और घुटने टेकने नहीं जाएगी, ऐसी नीति उद्धव ठाकरे ने अपनाई है और व्यर्थ चर्चा का दरवाजा बंद कर दिया है.
'अहंकार के कीचड़ में रथचक्र! एक सरकार बनेगी क्या?' शीर्षक से लेख लिखा गया है. शिवसेना ने कहा, ''कलियुग ही झूठा है. सपने में दिया गया वचन पूरा करने के लिए राजा हरिश्चंद्र ने राजपाट छोड़ दिया. पिता द्वारा सौतेली मां को दिए गए वचन के कारण श्रीराम ने राज छोड़कर वनवास स्वीकार कर लिया. उसी हिंदुस्थान में दिए गए वचन से विमुख होने का ‘कार्य’ भारतीय जनता पार्टी ने पूरा कर दिया. ये सब एक मुख्यमंत्री पद के कारण हो रहा है और राज्य में सरकार बनाने की प्रक्रिया अधर में लटकी है.''
शिवसेना ने कहा, ''मैं ही दोबारा मुख्यमंत्री बनूंगा, ऐसा देवेंद्र फडणवीस कहते हैं. देवेंद्र दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे, ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा. फिर भी रथ के पहिए फंस गए हैं और बीजेपी के संकटमोचक कृष्ण अमित शाह रथ के उद्धार के लिए अब तक आगे नहीं आए हैं, यह रहस्य है.''
सामना में लिखा गया है, ''पदों का समान बंटवारा ऐसा रिकॉर्ड पर बोले जाने का सबूत होने के बावजूद बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस पलटी मारते हैं और पुलिस, सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग की मदद से सरकार बनाने के लिए हाथ की सफाई दिखा रहे हैं. ये लोकतंत्र का कौन-सा उदाहरण है? इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया उस दिन को काला दिन कहकर संबोधित करनेवाले ऐसे क्यों बन गए हैं. इस पर हैरानी होती है. 24 तारीख को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद उसी दिन मुख्यमंत्री फडणवीस को बड़े अभिमान से ‘मातोश्री’ में जाकर पहले चर्चा शुरू करनी चाहिए थी. वातावरण तनावपूर्ण नहीं हुआ होता लेकिन 105 कमलों का हार मतलब अमरपट्टा कौन इसे छीनेगा?''
पार्टी ने कहा, ''शिवसेना के बगैर बहुमत होगा तो सरकार बना लो, मुख्यमंत्री बन जाओ! यह सीधा संदेश श्री उद्धव ठाकरे ने दिया. श्री देवेंद्र फडणवीस के लिए आज पार्टी में कोई विरोधी अथवा मुख्यमंत्री पद का दावेदार शेष नहीं है. यह एक अजीबोगरीब संयोग है.''
शिवसेना ने पांच तरह की राजनीतिक परिस्थितियों का भी जिक्र किया है और कहा है कि इस तरह महाराष्ट्र में सरकार बन सकती है. शिवसेना ने लिखा है-
दांव-1 : शिवसेना को छोड़कर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने की हैसियत से सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर सकती है. बीजेपी के पास 105 विधायक हैं. 40 और की जरूरत पड़ेगी. यह संभव नहीं हुआ तो विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान सरकार धाराशायी हो जाएगी और 40 हासिल करना असंभव ही दिखता है.''
दांव-2 : वर्ष 2014 की तरह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देगी. राष्ट्रवादी कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन में शामिल होगी, इसके बदले सुप्रिया सुले को केंद्र में और अजीत पवार को राज्य में पद दिया जाएगा परंतु वर्ष 2014 में की गई भयंकर भूल वार एक बार फिर करेंगे इसकी लेशमात्र भी संभावना नहीं है. पवार को बीजेपी के विरोध में सफलता मिली है और महाराष्ट्र ने उन्हें सिर पर उठाया. आज वे शिखर पर हैं. उनका यश मिट्टी में मिल जाएगा.
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दांव-3 : बीजेपी विश्वासमत प्रस्ताव में बहुमत सिद्ध करने में नाकाम होगी तब दूसरी बड़ी पार्टी होने के नाते शिवसेना सरकार बनाने का दावा पेश करेगी. राष्ट्रवादी 54, कांग्रेस 44 तथा अन्य की मदद से बहुमत का आंकड़ा 170 तक पहुंच जाएगा. शिवसेना अपना खुद का मुख्यमंत्री बना सकेगी और सरकार चलाने का साहस उन्हें करना होगा. इसके लिए तीन स्वतंत्र विचारों वाली पार्टियों को समान अथवा सामंजस्य से योजना बनाकर आगे बढ़ना होगा. अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस तरह दिल्ली में सरकार चलाई थी, उसी तरह सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा. इसी में महाराष्ट्र का हित है.
दांव-4 : भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना को मजबूर होकर साथ आना होगा और सरकार बनानी होगी. इसके लिए दोनों को ही चार कदम पीछे लेने पड़ेंगे. शिवसेना की मांगों पर विचार करना होगा. मुख्यमंत्री पद का विभाजन करना होगा और यही एक बेहतरीन पर्याय है परंतु अहंकार के चलते ये संभव नहीं है.
दांव-5 : ईडी, पुलिस, पैसा, धाक आदि के दम पर अन्य पार्टियों के विधायक तोड़कर बीजेपी को सरकार बनानी पड़ेगी. इसके लिए ईडी के एक प्रतिनिधि को मंत्रिमंडल में शामिल करना होगा परंतु दल बदलनेवालों की क्या दशा हुई, इसे मतदाताओं ने दिखा दिया. फूट डालकर बहुमत हासिल करना, मुख्यमंत्री पद पाना आसान नहीं है. इन सबसे मोदी की छवि धूमिल होगी.
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