नई दिल्ली: नोटबंदी पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की रिपोर्ट के बाद केंद्र की मोदी सरकार चौतरफा घिरी है. विपक्ष तो विपक्ष सरकार में शामिल शिवसेना भी सवाल उठाने से नहीं चूक रही है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में नोटबंदी पर 'मतवाले बंदर' की कहानी नाम से लेख छापा है.


महाराष्ट्र और केंद्र में बीजेपी के साथ सरकार में शामिल शिवसेना ने कहा, ''नोटबंदी ने देश को आर्थिक अराजकता में ढकेल दिया इसलिए देश को दिए गए वचनों के प्रति निष्ठा रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी अब कौन सा प्रायश्चित करने वाले हैं? नोटबंदी का फैसला चटपटी लोकप्रियता वाला था. यह फैसला देशप्रेम नहीं था बल्कि देश के लिए खतरा था.''


शिवसेना ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि कालेधन का कोई अंबार नहीं लगाता और नोटबंदी हुई इसलिए ये पैसा खत्म नहीं होता, ये बहुत आसान सा अर्थव्यवस्था है. जिनकी समझ में नहीं आया उन्होंने मनमोहन सिंह को मूर्ख ठहराया मगर आज सच सामने आ चुका है.


शिवसेना ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा के दौरान किये गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावों पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहा कि यह खोखला साबित हुआ, वे गलत बोल रहे थे. पार्टी ने कहा कि नोटबंदी देश की अर्थव्यवस्था को चौपट करने वाली कसाईगीरी थी, जिसपर रिजर्व बैंक ने भी मुहर लगाई.


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सामना में शिवसेना ने कहा, ''रिजर्व बैंक ने दावा किया कि सिर्फ 10 हजार करोड़ के नोट रद्द हुए, ऐसा रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है. मतलब पहाड़ खोदकर चूहा भी नहीं निकाल सके और इस न मिले हुए चूहे को मारने के लिए सरकार ने तिजोरी और जनता का नुकसान किया. देश में उद्योग-धंधे चौपट हो गए. किसानों को नुकसान हुआ. लोग बैंकों की कतार में महीनों खड़े रहे. 200 से अधिक लोगों की मौत हुई. डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ.''


उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना ने आगे कहा कि देश का इतना बड़ा नुकसान करने के बावजूद सत्ताधारी विकास की तुतारी फूंक रहे होंगे तो रोम जलते समय फीडल बजानेवाले नीरो जैसी ही उनकी मानसिकता दिखाई देती है. नोटबंदी से सवा दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. यह भ्रष्टाचार है. पार्टी ने कहा, ''रिजर्व बैंक के गवर्नर इस लूट को नहीं रोक पाए इसलिए उन्हें अदालत के सामने पेश किया जाना चाहिए. मौजूदा शासन में बैंक मतवाला बंदर हो गया है.''


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आपको बता दें कि पिछले दिनों आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया था कि नोटबंदी के बाद प्रचलन में रहे कुल नोटों का 99.3 फीसदी फिर से बैंकिंग प्रणाली में लौट आया। इस रिपोर्ट के बाद अर्थशास्त्री, विपक्ष मोदी सरकार से पूछ रहे हैं कि जब सारा पैसा बैंकिंग सिस्टम में लौट आया तो कालाधन कहां है?


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