सामना में शिवसेना ने कहा- समूचे विपक्ष को ट्विटर से उतरकर मैदान में आने की जरूरत, कांग्रेस का भी लिया पक्ष
शिवसेना ने अपने संपादकीय में कहा, देशभर की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों को ट्विटर की शाखाओं पर से उतरकर मैदान में आने की आवश्यकता है. मैदान में उतरना मतलब कोरोना काल में भीड़ जुटाना नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछकर अव्यवस्था से छुटकारा पाना है.
मुंबई: शिवसेना ने आज अपने संपादकीय 'सामना' में कांग्रेस नेतृत्व का पक्ष लेते हुए प्रमुख विपक्षी पार्टियों को केंद्र के खिलाफ एकजुट होने का अनुरोध किया है. संपादकीय में ये भी कहा गया है कि हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है लेकिन बंगाल, असम और पुडुचेरी में मुख्यमंत्री पद पर विराजमान होने वाले तीनों पूर्व कांग्रेसी हैं.
शिवसेना ने कहा, "पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, असम में हेमंत बिस्व सरमा, पुडुचेरी में एन रंगास्वामी मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए परंतु ये तीनों पूर्व कांग्रेसी हैं. उन्हें कांग्रेस पार्टी से बाहर जाना पड़ा परंतु जहां गए वहां उन्होंने अपना अस्तित्व अधिक दीप्तिमान किया. ममता बनर्जी ने मोदी-शाह जैसी बलाढ्य सत्ता से संघर्ष करके विजय हासिल की. उनकी जड़ कांग्रेस की ही है. ममता बनर्जी द्वारा कांग्रेस का त्याग करते ही पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का ढांचा ढह गया."
'पार्टी में आवश्यक सुधार की आवश्यकता'
सामना में लिखा गया है कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली पराजय को गंभीरता से लेना होगा और उससे उचित सबक सीखते हुए पार्टी को गत वैभव फिर से दिलाने के लिए वास्तविकता का सामना करना होगा, ऐसा उन्होंने कहा. सोनिया गांधी ने आगे जो कहा वह महत्वपूर्ण है. 'पार्टी में आवश्यक सुधार करने होंगे.'
सामना में आगे कहा गया है कि श्रीमती गांधी आज भी कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं इसलिए उनकी बात को गंभीरता से लेना होगा. देश में कोरोना का संकट है. इस वजह से कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लगातार तीसरी बार टाल दिया गया. इसलिए सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्षा के रूप में जिम्मेदारी निभाती रहेंगी. राहुल गांधी द्वारा अध्यक्ष पद छोड़े जाने के बाद से वह खाली ही है. पार्टी को पूर्णकालिक अध्यक्ष की आवश्यकता है, ऐसा मत कांग्रेस के 'जी-23' समूह ने बार-बार व्यक्त किया. पार्टी अध्यक्ष न होने के कारण लोगों के समक्ष कैसे जाएं? ऐसा सवाल इस बागी समूह ने उठाया. परंतु अध्यक्ष हो या न हो, पार्टी तो चलती ही रहती है. जमीनी कार्यकर्ता पार्टी के परचम को आगे बढ़ाते रहते हैं. एक दौर ऐसा था कि चुनाव में कांग्रेस पत्थर भी खड़ा कर देती थी तो लोग उस पत्थर को विजयी बना देते थे. आज हालात वैसे नहीं हैं. सोनिया गांधी ने कार्यसमिति की बैठक में वही मुद्दा उठाया. विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन पर उन्होंने चिंता व्यक्त की.
"आज राहुल गांधी ही कांग्रेस के सेनापति हैं"
सामना में कहा गया, 'कांग्रेस किसी दौर में स्वतंत्रता और संघर्ष थी. आज राहुल गांधी का संघर्ष एकाकी है. राहुल गांधी अपना काम स्वयं से करते हैं. उन पर ओछे शब्दों में काफी फब्तियां कसी जाती हैं, परंतु वह अपने मुद्दों पर दृढ रहकर लड़ते रहते हैं. कोरोना काल में राहुल गांधी द्वारा उठाए गए कई मुद्दों की सरकारी पक्ष द्वारा घोर आलोचना की गई, परंतु टीकाकरण से लेकर आगे अन्य कई मुद्दों पर सरकार ने अंततः राहुल गांधी की ही भूमिका को स्वीकार किया. आज राहुल गांधी ही कांग्रेस के सेनापति हैं. सरकार पर उनके द्वारा किए गए हमले अचूक हैं.'
आगे कहा, 'बेरोजगारी, आर्थिक संकट, महंगाई, कोरोना से लगे शवों के अंबार के कारण केंद्र सरकार की लोकप्रियता घटने लगी है. ऐसे समय में देशभर की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों को ट्विटर की शाखाओं पर से उतरकर मैदान में आने की आवश्यकता है. मैदान में उतरना मतलब कोरोना काल में भीड़ जुटाना नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछकर अव्यवस्था से छुटकारा पाना है, ये एक महत्वपूर्ण कार्य सभी विपक्षी पार्टियों को रोज करना होगा. कांग्रेस को इस कार्य के लिए आगे आना होगा. सोनिया बहुधा यही संदेश देना चाहती होंगी.'