नई दिल्लीः देश में शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव का एलान हुआ है. केंद्र सरकार ने बुधवार 29 जुलाई को देश में नई शिक्षा नीति की घोषणा की, जिसके तहत प्राइमरी से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर तक की शिक्षा में व्यापक बदलाव किए गए हैं. इसे लेकर शिवसेना ने केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति का स्वागत किया है. शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में नई शिक्षा नीति को राफेल फाइटर जेट की खरीद से ज्यादा जरूरी बताया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश में शिक्षा का जिम्मेदारी संभाल रहे मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर भी शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है. नई शिक्षा नीति को व्यावहारिकता और कौशल विकास पर जोर दिया गया है. जिस पर सामना के संपादकीय में लिखा गया है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 34 साल बाद देश की शिक्षा नीति को पूरी तरह बदल दिया है.
सामना में शिवसेना के ओर से कहा गया है कि नया शिक्षा मंत्रालय मिलने के साथ ही इसकी जिम्मेदारी किसी जानकार व्यक्ति को देनी चाहिए. शिवसेना ने तंज करते हुए कहा है कि सरकार के अंतर्गत कुछ ऐसे लोग हैं, जिन्हें फाइनेंस की जानकारी नहीं फिर भी उन्हें मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली हुई है. इसके साथ ही सामना में शिवसेना का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी भी ऐसे लोगों के हाथों में है, जिन्हें हेल्थ सेक्टर की जानकारी तक नहीं है.
नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि कम से कम पांचवी कक्षा तक और संभव हो तो आठवीं और उसके आगे भी स्थानीय भाषा या मातृभाषा में पढ़ाई कराई जाएगी. यानी हिंदी, अंग्रेजी जैसे विषय भाषा के पाठ्यक्रम के तौर पर तो होंगे, लेकिन बाकी पाठ्यक्रम स्थानीय भाषा या मातृभाषा में होंगे. जिसका शिवसेना ने स्वागत किया है.
इसके साथ ही सामना में सिवसेना ने सवाल किया है कि यह नियम बस सरकारी स्कूलों तक ही सीमित रह जाएगा. वहीं प्राइवेट या फिर मिशनरी स्कूलों तक नहीं पहुंच पाएगा? सामना के संपादकीय में शिवसेना का कहना है कि अंग्रेजी भाषा पर ज्यादा जोर दिए जाने से बहुत सी भाषाएं और बोलियां प्रचललन से बाहर हो गई हैं.
सामना में शिवसेना ने केद्र सरकार से सवाल किया है कि नई शिक्षा नीति पर नया करिकुलम कौन बनाएगा और इसके लिए किन यूनिवर्सिटी से विशेषज्ञ काम करेंगे? इसके साथ ही शिवसेना ने नई शिक्षा नीति के तहत नैतिक शिक्षा पर किसी भी तरह का को कोई जोर न देने पर निराशा जताई है.
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