नई दिल्लीः सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जो महाराष्ट्र में शिवसेना की गुंडागर्दी की गवाही दे रहा है. इस वीडियो से पता लगता है कि आरोप भी शिवसैनिकों ने तय किए, सजा भी शिवसैनिकों ने तय की और सजा की जगह और तारीख भी शिवसैनिकों ने ही तय कर ली. ऐसे में सवाल उठता है कि महाराष्ट्र के नए सीएम उद्धव ठाकरे के ऊपर तो कानून के हिसाब से पूरे राज्य को चलाने की जिम्मेदारी है. संविधान के हिसाब से उनके लिए राज्य का हर नागरिक एक समान है तो फिर ऐसा कैसा हुआ कि उनके शिवसैनिकों ने महाराष्ट्र के एक नागरिक के साथ गुंडागर्दी और बदसलूकी की. इसके बावजूद वो चुप रहे और महाराष्ट्र की पुलिस भी कुछ नहीं कर पाई.
महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था का मजाक उड़ाने वाला वीडियो शुरू होता है तो कुछ लोग एक शख्स का कॉलर पकड़कर उसे ले जाते हुए दिखाई देते हैं. इसके बाद नीली शर्ट और चश्मा लगाए एक शख्स भीड़ के बीच खड़ा दिखता है. दूर से कोई वीडियो बना रहा है. सफेद शर्ट पहने कुछ लोग इस शख्स को घेरे खड़े हैं लेकिन अचानक वहां थप्पड़ बरसने शुरू हो जाते हैं. हद तो तब हो जाती है जब जेब से ट्रिमर निकालकर इस शख्स के सिर पर चला दिया जाता है. और आधा गंजा करने के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना के ये बहादुर सैनिक धमकी भी देते हैं.
धमकी देते हुए शिवसैनिकों ने कहा कि अगली बार उद्धव साहब, बाला साहेब को कुछ कहेगा ना, हमारा भगवान है वो. वहीं इस शख्स को सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट ना करने की हिदायत दी जाती है जिसके तहत उसे धमकी दी गई कि अगली बार सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट किया तो याद रखना, शिवसैनिक हैं हम और वो हमारा भगवान है.
कौन है शिवसैनिकों की गुंडागर्दी का शिकार हुए शख्स
शिवसैनिकों की गुंडागर्दी का शिकार हुए शख्स का नाम हीरामणि तिवारी है और हीरामणि का कसूर ये है कि उन्होंने उद्धव ठाकरे के एक बयान पर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दी थी. फिर जो हुआ उसका आपबीती बताते हुए उन्होंने कहा कि एक आदमी घर आया और मुझे बुलाया गया, वो मुझे नीचे लेकर गया, फिर सारे लोगों ने मुझे घेर लिया, घेरने के बाद मुझे वो लोग कुछ दूर ले गए, घर से बाहर एक मंदिर के पास लेकर गए, पहुंचने के बाद मुझे मारना शुरु कर दिया, मैं अकेला था तो मुझे समझदारी इसमें लगी कि अगर मैंने मारपीट की तो ज्यादा नुकसान होगा लिहाजा मैंने कुछ जवाब नहीं दिया. उन्होंने मेरा आगे के बाल पूरे निकाल दिए. बाल निकाले जाने के बाद वहां पुलिस पहुंची.
विवाद शुरू कहां से हुआ
सारा विवाद 15 दिसंबर को दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर हुए प्रदर्शन से जुड़ा है. जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ नागरिकता बिल के विरोध में जुटी हुई थी. भीड़ हिंसक होने लगी तो भीड़ ने पुलिस पर ट्यूबलाइट और बोतलों से हमले किए. भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. पुलिस की इस कार्रवाई के बाद उद्धव ठाकरे का बयान आया जिसमें उन्होंने जामिया की घटना को जालियांवाला बाग बता दिया था. उद्धव ठाकरे के इस बयान पर 19 दिसंबर को हीरामणि तिवारी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखा. उन्होंने उद्धव ठाकरे की जामिया से जालियांवाला बाग से तुलना करने को गलत कहा और अपनी प्रतिक्रिया में कुछ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल भी किया.
हीरामणि का आरोप-पुलिस ने कुछ नहीं किया
हीरामणि फेसबुक पोस्ट को डिलीट करने के लिए भी तैयार थे लेकिन शिवसैनिकों को बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने कानून अपने हाथ में लेने का फैसला किया. लेकिन इससे भी ज्यादा हीरामणि का ये आरोप चौंकाता है कि उनके साथ ये अपराध पुलिस की रजामंदी से हुआ है. उन्होंने कहा कि शिवसैनिकों की ज्यादती के बाद पुलिस वहां से मुझे संगम नगर पुलिस चौकी में ले गई. पुलिस के सामने ही मुझे कई लोगों ने मारा था. जब मुझे मारा जा रहा था तो पुलिस वहां पहुंच चुकी थी लेकिन उसने मारपीट रोकने के लिए कुछ नहीं किया.
हीरामणि तिवारी ने वडाला पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी लेकिन पुलिस ने कार्रवाई करने के बजाय सुलह करवा दी और सुलह के कागज दोनों पार्टियों को पकड़ा दिए. जब सोशल मीडिया पर हीरामणि तिवारी के बाल काटने की तस्वीरें वायरल हुई तब जाकर पुलिस ने आनन-फानन में आपराधिक मामला दर्ज किया. इस घटना पर बीजेपी नेता वडाला पुलिस स्टेशन पहुंचे और पीड़ित युवक से भी मुलाकात करके उसे न्याय दिलाने की बात की.
बीजेपी पूछ रही है कि अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने वाले तमाम लोग एक युवक के साथ हुई इस गुंडागर्दी पर मौन क्यों साधे हुए हैं? वहीं आदित्य ठाकरे ने फेसबुक पोस्ट लिखकर कानून हाथ में ना लेने की सलाह दी है. पूरी घटना पर शिवसेना अब बैकफुट पर है. बैकफुट पर पहले ही आना चाहिए था और गलती पहले ही स्वीकार करनी चाहिए थी लेकिन शिवसेना गलती भी धमकी की भाषा में स्वीकार करती है.
अगर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अपने शिवसैनिकों के खिलाफ एक्शन लेकर मिसाल पेश करते तो जनता का अपने सीएम और सिस्टम दोनों पर भरोसा मजबूत होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दबाव में पुलिस ने एफआईआर तो दर्ज कर ली है लेकिन आरोपियों के वीडियो सबूत सामने होने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. सवाल ये है कि पुलिस के ऐसे रवैये से क्या गुंडागर्दी का लाइसेंस नहीं मिलेगा? क्या महाराष्ट्र में राजनीति का ये चेहरा आम लोगों के लिए परेशानी का सबब नहीं बनेगा?