नई दिल्लीः आंध्र प्रदेश में सरकारी इमारतों का रंग सत्ताधारी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के झंडे जैसा करने के मामले में राज्य सरकार को आज सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा. सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के उस आदेश में कोई दखल देने से मना कर दिया, जिसमें यह रंग सरकारी इमारतों से हटाने को कहा गया था. इस मामले में राज्य सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट में शुरू हुई अवमानना की कार्रवाई को रोकने से भी सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया.


आंध्र प्रदेश में राज्य सरकार ने सरकारी इमारतों को नीले, हरे और सफेद रंग से रंगने का आदेश जारी किया था. खास तौर पर ग्राम पंचायत की इमारतों को इन रंगों से रंगा गया था. यह तीनों रंग सत्ताधारी वाईएसआर कांग्रेस के झंडे के रंग हैं.


इस बारे में हाई कोर्ट की तरफ से पूछताछ किए जाने पर राज्य सरकार ने दलील दी थी कि नीला रंग समानता का,हर रंग कृषि का और सफेद रंग दुग्ध उत्पादन का सूचक है. इसलिए, ग्रामीण इलाकों में इन रंगों का इस्तेमाल सरकारी इमारतों को रंगने के लिए किया जा रहा है. लेकिन इस दलील से हाई कोर्ट सहमत नहीं हुआ और 10 दिनों में सरकारी इमारतों को नए सिरे से रंगने का आदेश दिया, जिससे से राजनीतिक पार्टी से जुड़े रंग को हट जाएं.


मई महीने की शुरुआत में हाई कोर्ट की तरफ से आए आदेश का राज्य सरकार ने सही ढंग से पालन नहीं किया. औपचारिकता निभाते हुए सरकारी इमारतों में भूरे रंग की भी पट्टी पेंट करवा दी. हाई कोर्ट ने इसे अवमानना की तरह देखा और नोटिस जारी कर दिया. राज्य के मुख्य सचिव समेत तीन वरिष्ठ अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर मामले में जवाब देने के लिए कहा.


हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची, आंध्र प्रदेश सरकार का मामला जस्टिस नागेश्वर राव, जस्टिस कृष्ण मुरारी और एस रविंद्र भट के सामने लगा. राज्य सरकार की तरफ से पेश वकील ने हाई कोर्ट के आदेश को गलत बताया. उन्होंने यह दलील दी कि नए सिरे से सभी इमारतों को रंगने में बहुत भारी खर्च आएगा. इसलिए,  हाई कोर्ट के आदेश के पालन में इमारतों पर एक और रंग की पट्टी लगा दी गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश में कोई दखल देने से मना कर दिया.


राज्य सरकार के वकील ने अवमानना की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की. तीन वरिष्ठ अधिकारियों की व्यक्तिगत पेशी के आदेश पर भी रोक की मांग की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इनमें से कोई भी मांग मानने से मना कर दिया.


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