पांच गोलियां लगी थीं, फिर भी हिम्मत नहीं हारी, यूक्रेन से लौटे हरजोत आर्मी अस्पताल से घर पहुंचे, सुनाई आपबीती
अस्पताल में उन्हें यह भी बताया गया कि इस अस्पताल में लाने से पहले उन्हें दो अन्य अस्पतालों में ले जाया गया था, लेकिन उन्हें 5 गोलियां लगी हुई थी, इसलिए उनको बड़े अस्पताल में लाया गया
यूक्रेन में गोली लगने से घायल हुए हरजोत अब भारत आने के बाद अपने घर भी लौट चुके हैं. हरजोत 7 मार्च को यूक्रेन से भारत लौटे थे, जिसके बाद उन्हें आर्मी के अस्पताल में भर्ती किया गया था. आज वह अपने परिवार के बीच पहुंच चुके हैं. उन्हें आर्मी अस्पताल से लगभग 21 दिन के बाद छुट्टी मिली है. हरजोत आज भी 27 फरवरी की घटना को याद करते सिहर उठते हैं और इस पूरी घटना को याद करते हुए उनकी आंखों में पानी आ जाता है.
वह ईश्वर का शुक्र मनाते हैं कि उन्हें दूसरी जिंदगी मिली और साथ ही साथ वह भारत सरकार का भी शुक्रिया अदा कर रहे हैं, जिसकी वजह से वह अपने परिवार के बीच अपने देश वापस लौट आये हैं. हरजोत ने अपनी आपबीती एबीपी न्यूज़ के साथ साझा की है. हरजोत ने सुनाई आपबीती कहा पहली गोली लगी तो लगा मौत हो जाएगी. लेकिन दूसरी गोली लगने पर हिम्मत बढ़ी और मन में ठान लिया कि अब बाहर निकलना है चाहे जो हो जाये
हरजोत 7 मार्च को भारत आ गए थे, लेकिन वह अपने घर न आके आर्मी के धौलाकुआं स्थित अस्पताल पहुंचे थे. यहां पर उन्हें 21 दिन तक रखा गया और 28 मार्च को उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया. आज वह अपने घर पहुंचे तो घर वालों के बीच पहुंचकर बेहद खुश नजर आए. हरजोत ने 27 फरवरी की रात की घटना को याद करते हुए अपनी आपबीती सुनाई. हरजोत ने बताया कि वह कीव में थे और वहां पर युद्ध शुरू हो गया था. एक-दो दिन पहले ही वहां पर मॉल समेत अन्य सभी चीजें बंद हो गई थीं.
हरजोत ने यूक्रेन से बाहर निकलना ज्यादा उचित समझा. हरजोत अन्य लोगों की तरह ही मेट्रो स्टेशन पहुंचे तो उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया. इसके बाद उन्होंने किसी तरह से एक कैब का इंतजाम किया, जो 1000 डॉलर में बुक हुई. हरजोत के साथ दो अन्य लोग भी इस कैब को शेयर कर रहे थे, जो अलग-अलग देशों के थे. वे भी युद्ध से बचते हुए यूक्रेन से बाहर निकलना चाह रहे थे.
हरजोत बताते हैं कि सूरज ढल चुका था और अंधेरा हो गया था. उनकी कैब दो चेकपोस्ट पार कर चुकी थी, लेकिन तीसरी वाली चेकपोस्ट से उन्हें आगे नहीं जाने दिया गया. उनको वापस जाने के लिए कहा गया. उन्हें बताया गया कि कि जंग शुरू हो चुकी है. अंधेरे में जाना सही नहीं होगा. इसलिए जब सुबह हो जाए तब आगे का सफर तय करना. हरजोत कैब के अंदर ही थे कि अचानक से दोनों तरफ से गोलियां चलनी शुरु हो गई.
हरजोत और कैब के अंदर मौजूद अन्य लोग नीचे झुक गए, लेकिन गोलियां दोनों तरफ से कार पर चल रही थी. हरजोत के अनुसार पहली गोली उनके दाहिने हाथ पर लगी, जो अंदर छाती में प्रवेश कर गई. हरजोत का कहना है कि गोली लगते ही उन्हें इतना दर्द हुआ जो असहनीय था. वह खुद को छुपाते रहे, लेकिन गोलियां लगातार बरसती रहीं. उनके शरीर से खून बहा जा रहा था और दर्द बढ़ता जा रहा था. हरजोत ने लगभग आधे घंटे तक दर्द को सहन किया और खुद को एक मुर्दे की तरह रखा.
इस उम्मीद में कि शायद हमलावर वहां से चले जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. गोलियां अब भी लगातार बरस रही थी. अब हरजोत ने सोचा कि ऐसे मरने से अच्छा है कि बाहर निकला जाए और फिर जो होगा देखा जाएगा. हरजोत कार और दीवार के बीच में थे. वह जैसे ही बाहर की तरफ आए तो उनके बाएं पैर में गोली लगी. गोली लगते हैं उनकी पीड़ा और ज्यादा असहनीय हो गई. इसके बाद उनके शरीर में 3 गोली और लगीं. हरजोत बेहोश हो चुके थे, उन्हें कुछ याद नहीं था. बेहोश होने से पहले उन्होंने बस यह देखा था कि उनके आसपास की जमीन पर उनका खून फैला हुआ था.
हरजोत को करीब 3 दिन बाद होश आया और उन्होंने खुद को एक कमरे में पाया. चारों तरफ रोशनी रोशनी थी, उनके आस-पास मशीनें लगी थीं. वह समझ नहीं पाए. फिर उन्हें बताया गया कि वह कीव के ही अस्पताल में हैं, उन्हें 5 गोली लगी हैं. उन्हें यह भी बताया गया कि इस अस्पताल में लाने से पहले उन्हें दो अन्य अस्पतालों में ले जाया गया था, लेकिन उन्हें 5 गोलियां लगी हुई थी, इसलिए उनको बड़े अस्पताल में लाया गया वहां पर उनकी सर्जरी की गई.
हरजोत का मोबाइल उनके पास ही था और फिर उन्होंने अपने परिवार से बात की. हरजोत बताते हैं कि जब उन्हें होश आया तो सबसे पहला ख्याल भी अपने परिवार का ही आया. वह शुक्र मनाते हैं कि वह बच गए. हरजोत यह भी बताते हैं कि उन्होंने जब यूक्रेन में स्थित इंडियन एंबेसी में कॉल की तो उन्हें ठीक से कोई रिस्पांस नहीं मिला. उन्होंने 170 से ज्यादा कॉल की थी, लेकिन जब भारत में मीडिया के माध्यम से उनकी जानकारी पहुंची तो यूक्रेन के भारतीय दूतावास ने भी उनकी सुध ली.
ऐसे हुई थी भारत वापसी
हरजोत बताते हैं कि उन्हें एंबुलेंस से यूक्रेन और पोलैंड के बॉर्डर तक लाया गया. वहां से फिर दूसरी एंबुलेंस के माध्यम से प्लेन तक लाया गया और फिर प्लेन से भारत. इस दौरान जनरल वीके सिंह उनसे कई बार मिले. उन्हें परिवार जैसा माहौल दिया. उनका हौसला बढ़ाया और जब प्लेन भारत पहुंच गया तब भी जनरल वीके सिंह ने उनसे मुलाकात की. हरजोत भारत सरकार का शुक्रिया अदा करते हैं और कहते हैं कि भारत सरकार ने उनकी बहुत मदद की है.
इलाज के लिए मांगी मदद
हरजोत का कहना है कि अब तक जो उनका इलाज हुआ उसमें भारत सरकार से पूरी मदद मिली है. डॉक्टरों का कहना है कि अभी उन्हें पूरी तरह से फिट होने में कम से कम एक से डेढ़ साल का समय लगेगा. अभी उनका दाया हाथ सुन्न है, क्योंकि गोली लगने से कुछ नसें कट चुकी हैं. इसके अलावा एक पैर भी सुन्न है. इसके लिए उन्हें थेरेपी करानी होगी और दवाई भी खानी होगी.
हरजोत को अब इस बात की चिंता
हरजोत के मन में अब यही चिंता है कि इतने लंबे समय तक चलने वाले उपचार के लिए पैसा कहां से आएगा. क्योंकि उनके पिता की उम्र 75 साल है और वह रिटायर है. बड़े भाई का अपना परिवार है. हरजोत यूक्रेन में पढ़ाई करने के लिए गए थे, जिससे एक अच्छा रोजगार कर सकें. एक अच्छी नौकरी या व्यवसाय कर सकें. अब उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं है. उनका कहना है कि इसलिए मैं भारत सरकार से मदद की उम्मीद रखता हूं. हरजोत भारत सरकार से ये अपील भी करते हैं कि उन्हें मदद उपलब्ध कराई जाए, ताकि वह फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकें. पूरी तरह से स्वस्थ हो सके.
हरजोत की आंखों में पानी भर आया
हरजोत अब अपने माता-पिता व परिवार के बीच मौजूद है. हरजोत की आंखों में पानी आ गया तो साथ ही बैठी उनकी मां के आंसू भी छलकने लगे. हरजोत के माता-पिता ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हैं कि उनका बच्चा जीवित है और उनके बीच मौजूद हैं. साथ-साथ वह भारत सरकार का भी शुक्रिया अदा करते हैं, जिसकी वजह से हरजोत आज भारत में अपने घर में मौजूद हैं. हरजोत के माता-पिता भी भारत सरकार से मदद की गुहार लगाते हैं और कहते हैं कि हरजोत के इलाज में सरकार मदद करे. हरजोत बताते हैं कि बीते 21 दिन से वह आर्मी के अस्पताल में थे और अस्पताल में आर्मी के तमाम डॉक्टर और स्टाफ ने हर रोज उनका हौसला बढ़ाया. उन्हें यह कहा कि तुम बहुत हिम्मत वाले हो. वरना अधिकतर लोग तो ऐसे होते हैं, जो एक गोली लगने के बाद ही ऊपर पहुंच जाते हैं.
ये भी पढ़ें- संसद में पेश हुआ बिल: 75 सालों तक सुरक्षित रह सकेंगे अपराधियों की पहचान से जुड़े आंकड़े और नमूने