Shraddha Murder Case: आफताब का ‘कबूलनामा’ उसे फांसी के तख्ते तक पहुंचाने के लिए काफी नहीं- विशेषज्ञ
Aftab Poonawala: दिल्ली पुलिस का कहना है कि आफताब ने पॉलीग्राफ टेस्ट में अपना जुर्म स्वीकार कर लिया है, जबकि आफताब के वकील का कहना है कि उसने ऐसा कुछ भी कबूल नहीं किया है.
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Aftab Poonawala Confession: दिल्ली का श्रद्धा हत्याकांड इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. आरोपी आफताब ने कोर्ट में भी श्रद्धा की हत्या की बात करके लाश को 35 टुकड़ों में काटकर फेंकने की बात स्वीकार कर ली है. पूरे देश से आफताब को फांसी देने की आवाज उठ रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कोर्ट के सामने भी उसका कबूलनामा उसे फांसी के तख्ते तक पहुंचाने के लिए काफी नहीं है.
पुलिस का कहना है कि आफताब ने श्रद्धा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली है. आफताब ने पॉलीग्राफ टेस्ट में भी अपराध को स्वीकार कर लिया है. आफताब के वकील अविनाश कुमार ने कहा, उसके मुवक्किल ने मजिस्ट्रेट के सामने कभी भी इस तरह की बात को स्वीकार नहीं किया है.
'आफताब का कबूलनामा कानूनी वैध नहीं'
विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट में जज के सामने आफताब के कबूलनामे के दौरान कई प्रमुख शर्तों को पूरा नहीं किया गया था. यही कारण है कि इस कबूलनामे में निर्णायक कानूनी वैधता नहीं है. कानूनी विशेषज्ञों ने मजिस्ट्रेट के सामने आफताब के कबूलनामे पर भी सवाल उठाया और इसे आपत्तिजनक बताया. बताया जा रहा है कि आफताब ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए हुई पेशी के दौरान अपने जुर्म को कबूल कर लिया है. हालांकि इसे कानूनी विशेषज्ञों ने गलत करार दिया है.
दिल्ली पुलिस अपना समय बेकार कर रही- पूर्व जज
दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस सोंढ़ी ने कहा कि यह उपस्थिति का आपत्तिजनक तरीका है. आप नहीं जानते कि वह किस दबाव में था. उसे मजिस्ट्रेट के सामने शारीरिक रूप से उपस्थित होना चाहिए था. इस तरह का कथित कबूलनामा अर्थहीन है. दिल्ली पुलिस अपना समय बर्बाद कर रही है और मीडिया को ऐसी जानकारी लीक करके प्रचार का आनंद ले रही है.
पुलिस हिरासत कबूलनामा मान्य नहीं होता
विशेषज्ञों का कहना है कि कानून के मुताबिक, मजिस्ट्रेट के सामने कबूलनामा एक स्वीकार्य सबूत है और इससे अपराध को सुलझाने में पुलिस को फायदा होता है, लेकिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से और मीडिया के सामने कबूल करने से पुलिस को कोई फायदा नहीं हो सकता है, क्योंकि इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती है. वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कबूलनामे का कोई कानूनी मूल्य नहीं है, क्योंकि उस समय वह पुलिस हिरासत में था.
क्राइम केसों के वकीलों ने भी गलत माना
क्रिमिनल वकील आरवी किनी ने भी मजिस्ट्रेट के सामने शारीरिक उपस्थिति पर जोर दिया, न कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए. उन्होंने कहा कि कानून में अभियुक्त को अपने कबूलनामे के परिणामों के बारे में पता होने का अधिकार है. उसे अपराध स्वीकार करने के लिए और उसके परिणाम के बारे में सोचने के लिए समय भी दिया जाता है. क्रिमिनल वकील निशांत श्रीवास्तव ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कबूलनामे पर हैरानी जताई. उन्होंने कहा कि यदि अभियुक्त कल अपने बयान से पलट जाए और कहे कि कैमरे के दूसरी तरफ पुलिस उस पर बंदूक ताने खड़ी थी, तो उस वक्त पुलिस क्या करेगी.
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