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'इसमें बहुत पेच', श्री कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में मुस्लिम पक्ष की अर्जी पर हिंदू पक्ष को नोटिस भेजने से क्यों रुक गया SC?

हिंदू पक्ष की तरफ से पेश एडवोकेट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी और ईदगाह के सर्वेक्षण के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था और अब इसे खाली कर दिया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (17 सितंबर, 2024) को मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष से यह बताने को कहा कि क्या वह एक अगस्त के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दे सकता है. हिंदू पक्ष के एक वकील की आपत्ति पर कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से यह सवाल किया. मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के 1 अगस्त के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इस पर वकील ने आपत्ति जताई और कहा कि हाईकोर्ट की खंडपीठ के समझ आपत्ति जताई जा सकती है.

एक अगस्त को हाईकोर्ट के जज ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से संबंधित हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं को सुनवाई योग्य बताते हुए मुस्लिम पक्ष की अर्जी खारिज कर दी थी. मुस्लिम पक्ष ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच शुरू में हाईकोर्ट के एक अगस्त के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दायर याचिका पर हिंदू पक्षकारों को नोटिस जारी करने की इच्छुक थी. हालांकि, बाद में उसने मामले को चार नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

हिंदू पक्ष की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान और विष्णु शंकर जैन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी और ईदगाह परिसर के सर्वेक्षण के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था और अब इसे खाली कर दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कई कानूनी पेच हैं, जिन पर गहन विचार किए जाने की जरूरत है. उसने निर्देश दिया कि विवाद से जुड़े सभी लंबित मामलों पर एक साथ सुनवाई की जाएगी.

हिंदू पक्ष के एक वकील ने सुप्रीम के समक्ष याचिका दायर करने पर आपत्ति जताते हुए दलील दी कि एक अगस्त के आदेश को हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी जा सकती है. दलील से सहमति जताते हुए बेंच ने शाही मस्जिद ईदगाह की कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट तस्नीम अहमदी से कोर्ट को यह बताने को कहा कि क्या वे हाईकोर्ट की एकल पीठ के एक अगस्त के आदेश के खिलाफ उसकी खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर कर सकते हैं.

पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि आप (मुस्लिम पक्ष) ऐसा कर सकते हैं. इस अदालत के कुछ आदेश हैं, जो आपको ऐसा करने की अनुमति देते हैं. अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो इस याचिका को वापस लिए जाने की जरूरत है.' एक अगस्त को हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मथुरा में मंदिर-मस्जिद विवाद से संबंधित 18 मामलों की स्वीकार्यता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी. पीठ ने फैसला सुनाया था कि शाही ईदगाह के धार्मिक चरित्र को निर्धारित करने की जरूरत है.

हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की इस दलील को ठुकरा दिया था कि श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद परिसर से जुड़े विवाद को लेकर हिंदू पक्षकारों की ओर से दायर मुकदमे पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उल्लंघन करते हैं, इसलिए ये सुनवाई योग्य नहीं हैं. वर्ष 1991 में लागू यह अधिनियम देश की आजादी के दिन मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है. केवल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था.

हिंदू पक्ष की ओर से दायर मुकदमों में औरंगजेब समय की मस्जिद को यह कहते हुए हटाने का अनुरोध किया गया है कि इसे एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया था. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 1991 का अधिनियम धार्मिक चरित्र शब्द को परिभाषित नहीं करता है और विवादित स्थान का दोहरा धार्मिक चरित्र-एक मंदिर और एक मस्जिद, नहीं हो सकता है, जो एक-दूसरे के प्रतिकूल हैं. हाईकोर्ट के जज मयंक कुमार जैन ने कहा था, 'यह स्थान या तो मंदिर है या मस्जिद. इस तरह, मुझे लगता है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद विवादित स्थान का धार्मिक चरित्र दोनों पक्षों द्वारा पेश दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए.'

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