नई दिल्ली: ममता सरकार में परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने हुगली नदी आयुक्त पद से इस्तीफ़ा दिया. ममता से नाराज़ चल रहे शुभेंदु अधिकारी बग़ावती तेवर अपनाये हुए हैं. शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी, भाई दिब्येंदु अधिकारी भी लोकसभा सांसद हैं. नंदीग्राम आंदोलन के सूत्रधार शुभेंदु 65 सीटों पर असर रखते है. उधर कूचबिहार के टीएमसी विधायक ने भी इस्तीफ़ा दे दिया है. कूचबिहार के टीएमसी विधायक मिहिर गोस्वामी ने इस्तीफ़ा दे दिया है वे भी ममता बैनर्जी से नाराज़ बताए जा रहे हैं. मिहिर गोस्वामी रविवार या सोमवार को बीजेपी में शामिल होंग़े.


पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार में परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी के तेवर बगावती हो गए हैं. एक तरफ तृणमूल कांग्रेस शुभेंदु अधिकारी को मनाने की कवायद कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी शुभेंदु पर डोरे डाल रही है. ऐसी क्या बात है कि शुभेंदु अधिकारी को बंगाल की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां लुभाने की कोशिश में जुटी हुई है, लेकिन अब खबर आ रही है कि शुभेंदु अधिकारी जल्द ममता बैनर्जी केबिनेट से भी इस्तीफ़ा दे सकते हैं.


सबसे पहले आपको बताते हैं कि शुभेंदु अधिकारी कौन हैं? शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिशिर अधिकारी पश्चिम बंगाल की कांथी लोकसभा सीट से सांसद हैं. शुभेंदु अधिकारी के पिता 1982 से कांथी दक्षिण विधानसभा सीट से कांग्रेस से विधायक बने थे, लेकिन बाद में वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए और तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक शुभेंदु अधिकारी हैं.


2009 से इसी काथी दक्षिण सीट से 3 बार विधायक चुने जा चुके हैं, शुभेंदु अधिकारी के भाई जब बिंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल के तमलुक लोक सभा क्षेत्र से सांसद तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे भाई सुमेंदु अधिकारी, कांथी नगर पालिका अध्यक्ष हैं.


शुभेंदु अधिकारी 2007 में पूर्वी मिदनापुर से लेकर नंदीग्राम में एक इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के खिलाफ भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन के अगुआ थे. शुभेंदु अधिकारी ने "भूमि उछेड़ प्रतिरोध कमेटी" के बैनर तले आंदोलन खड़ा किया था, जिसका सीपीएम के कैडर के साथ खूनी संघर्ष भी हुआ. प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने फायरिंग की जिसमें 1 दर्जन से ज्यादा किसान मारे गए. इसके बाद आंदोलन और तेज हो गया, जिससे तत्कालीन वामपंथी सरकार को झुकना पड़ा.


हुगली जिले के सिंगुर में भी इसी तरह भूमि अधिग्रहण के विरोध में प्रदर्शन हुए इन दो घटनाओं ने सत्ता पर काबिज वाम दलों को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई.


नंदीग्राम के आंदोलन की सफलता से खुश ममता बनर्जी ने तब शुभेंदु को जंगलमहल इलाके का इंचार्ज बनाया. जिसमें पश्चिमी मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया जिले शामिल थे. यह जिले वामपंथ का गढ़ थे जो कि अति पिछड़े थे और माओवादी विद्रोह से जूझ रहे थे. यहां से शुभेंदु अधिकारी ने अपने प्रभाव और आभामंडल को बढ़ाना शुरू किया. शुभेंदु अधिकारी एक बड़े नेता के रूप में स्थापित होते चले गए, अब राज्य में शुभेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी का सबसे खास और दाहिना हाथ माना जाने लगा था.


साल 2006 में विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर 27 फ़ीसदी था, जो कि 5 साल बाद बढ़कर 39 फ़ीसदी हो गया. पूर्वी मिदनापुर और पश्चिम बर्दवान समेत पूरे जंगल महल में फैली 65 सीटें जिन पर अधिकारी परिवार का प्रभाव माना जाता है वहां तृणमूल का वोट शेयर 28 फ़ीसदी से बढ़कर 42 फ़ीसदी हो गया है. 2016 में तृणमूल कांग्रेस को इन सीटों पर करीब 48 फ़ीसदी वोट मिले उसके बाद वाममोर्चा को 27 फ़ीसदी और बीजेपी को 10 फ़ीसदी वोट मिले. हालांकि, पिछले साल राज्य में 18 संसदीय सीटें और 40 फीसदी वोट हासिल करने के बाद बीजेपी बंगाल में मुख्य विपक्ष के रूप में उभरी है और वामपंथियों का सफाया हो चुका है अब मुख्य मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच है.

शुभेंदु अधिकारी के पिता शिशिर अधिकारी की छवि एक जन नेता की है. शुभेंदु ने अपने पिता से राजनीति के गुण सीखे और जंगल महल और पूर्वी मिदनापुर में तृणमूल कांग्रेस के चुनावी सफलता से साफ है कि शुभेंदु अधिकारी जमीनी पकड़ रखने वाले नेता है. 2016 के विधानसभा चुनाव में अधिकारी परिवार के प्रभाव वाले 65 सीटों में से तृणमूल ने 36 सीटें जीत ली थी विधानसभा सीटों की संख्या 2011 के मुकाबले 8 विधानसभा सीटें ज्यादा थी. तृणमूल कांग्रेस ने इस पूरे इलाके में 2011 के मुकाबले अपना वोट शेयर भी 8 फ़ीसदी बढ़ाया था.


अब शुभेंदु अधिकारी जब तृणमूल कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं और पार्टी के झंडे का बहिष्कार कर राजनीतिक कार्यक्रम बिना ममता की तस्वीर और तृणमूल कांग्रेस के झंडे के कर रहे हैं. ऐसे साफ हो गया है कि शुभेंदु अधिकारी अब पार्टी से बगावत के मूड में है. माना जा रहा है कि शुभेंदु अधिकारी जल्द ही अपनी नई राजनीतिक राह तय कर लेंगे. इसके लिए उन्हें सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस से और सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देना होगा.