अफगानिस्तान में तालिबान पर कब्जे के बाद से ही लगातार ये दावा किया जा रहा है कि अफगानिस्तान पर एलेक्जेंडर से लेकर रूस और अमेरिका तक कोई अपना परचम नहीं लहरा पाया है. लेकिन हम आज आपको भारतीय सेना की उस रेजीमेंट से मिलवाने जा रहे हैं जिसने एक-दो नहीं कई बार अफगानिस्तान के दांत खट्टे किए हैं. ये पलटन है सिख रेजीमेंट, जो इस महीने अपना 175वां स्थापना दिवस मना रही है. इस मौके पर एबीपी न्यूज पहुंचा है झारखंड के रामगढ़, जहां है सिख रेजीमेंटल सेंटर.‌


अमेरिका के अफगानिस्तान को छोड़ने और एक बार फिर से तालिबान के कब्जे से पूरी दुनिया ये मानने लगी है कि अफगानिस्तान पर आजतक कोई देश और कोई सेना काबू नहीं कर पाई है. लेकिन आज हम आपका ये भम्र तोड़ने जा रहे हैं. क्योंकि आज हम आपको ब्रेवेस्ट ऑफ द ब्रेवेस्ट यानि शूरवीरों के शूरवीर के नाम से जाने जानी वाली उस पलटन से मिलवाने जा रहे हैं जिसने एक नहीं कई बार अफगानिस्तान में अपनी विजय पताका को फहराया था. दो बार इस पलटन को अफगानिस्तान  में विजय के लिए 'बैटल ऑनर' के खिताब से नवाजा गया था. ये पलटन है भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट, जिसे 19वीं सदी में अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिह की खालसा-आर्मी के दम पर खडा किया था.‌ इसी महीने यानी जुलाई 2021 को सिख रेजीमेंट अपना 175वां स्थापना दिवस मना रही है. इसके लिए सिख रेजीमेंट के झारखंड स्थित रामगढ़ रेजीमेंटल सेंटर मे खास तरीके से जश्न मनाया जा रहा है. की


यही सिख रेजीमेंट मना रही है 175वां स्थापना दिवस
दरअसल, महाराज रणजीत सिंह की खालसा-आर्मी पहली और आखिरी फौज थी जिसने अफगानिस्तान में अपना परचम लहराया था. अफगानिस्तान के खिलाफ खालसा आर्मी की बहादुरी से अंग्रेज इतने प्रभावित हुए कि रणजीत सिंह की मौत के बाद ब्रिटिश सरकार ने 1846 में इसी खालसा आर्मी को भारतीय सेना में शामिल कर लिया, जो बाद में सिख रेजीमेंट के नाम से जानी गई. यही सिख रेजीमेंट इसी महीने अपना 175वां स्थापना दिवस मना रही है. 28 अगस्त यानि शनिवार को रामगढ़ स्थित सिख रेजीमेंट सेंटर में वरिष्ट सैन्य अधिकारी वॉर मेमोरियल पर वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे.


सिख रेजीमेंट के 175वें स्थापना दिवस के मायने सिर्फ डांस, भंगड़ा और हर्षोल्लास ही नहीं है. इ‌सके मायने ये है कि आने वाले खतरों के लिए अपनी पलटन और सैनिकों को तैयार करना. ये तैयारी शुरू होती है सिख पलटन के युद्धघोष, 'बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' से. इस युद्धघोष को पिछले 175 साल से अफगानिस्तान से लेकर अफ्रीका और चीन से लेकर करगिल युद्ध तक सुनाई पड़ता है.


एंग्लो-अफगान वॉर के बाद हुई थी स्थापना
सिख रेजीमेंट की स्थापना साल 1846 में अंग्रेजों ने पहले एंग्लो-अफगान वॉर यानि युद्ध के बाद की थी. इस युद्ध में ब्रिटिश सेना को हार का सामना करना पड़ा था. यही वजह है कि अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह की मौत को बाद उनकी खालसा-आर्मी को भारतीय सेना में शामिल कर लिया था. इसी खालसा आर्मी को आज सिख रेजीमेंट के नाम से जाना जाता है. पहली बार सिख रेजीमेंट ने वर्ष 1880 में अफगानिस्तान में जाकर कांधार और दूसरे इलाकों में अपना परचम लहराया था. उससे बाद प्रथम विश्व-युद्ध में. दोनों ही बार सिख रेजीमेंट को बैटल ऑनर के खिताब से नवाजा गया. 


ये वही सिख‌ रेजीमेंट है जिसने बहादुरी की पराकाष्ठा को लांघते हुए सारागढ़ी का युद्ध लड़ा था. एक चौकी के कब्जो को लेकर हुई लड़ाई में सिख रेजीमेंट के 21 शूरवीरों ने करीब दस हजार अफगानी लड़ाकों को धूल चटाई थी. क्योंकि सिख रेजीमेंट का आदर्श-वाक्य है, 'निश्चय कर अपनी जीत करूं'.


1962 के युद्ध में भी सिख‌ रेजीमेंट ने दिया था अपनी साहस का परिचय
सिख‌ रेजीमेंट की बहादुरी और शौर्य के किस्से सुनाना शुरू हो जाएं तो शायद सदियां बीत जाएं. लेकिन आपको इतना जरूर बता देंते है कि भारतीय सेना का 'इंफेंट्री-डे' सिख रेजीमेंट की एक पलटन के 1948 के पाकिस्तान युद्ध में श्रीनगर एयरपोर्ट पर लैंडिंग करने और दुश्मन के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए मनाया जाता है. यही नहीं जिस 1962 के युद्ध में भारतीय सेना को चीन के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था उस युद्ध में भी सिख रेजीमेंट ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था. सिख रेजीमेंट के सूबेदार जोगेंद्र सिंह को अरूणाचल प्रदेश में चीनी सैनिकों को धूल चटाने के लिए वीरता के सबसे बड़े मेडल, परमवीर चक्र से नवाजा गया था. इससे पहले चीन के बॉक्सर विद्रोह को दबाने के लिए भी ब्रिटिश राज ने सिख रेजीमेंट को भेजा था. आज भी चीन के शंघाई से लाई गए 'आर्टिफैक्टस' रामगढ़ स्थित सिख रेजीमेंटल सेंटर में सुशोभित हैं.


भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट सिर्फ अपने गौरवमयी इतिहास पर ही गर्व नहीं करती है. बल्कि निकट भविष्य में होने वाले खतरों से निपटने के लिए भी पूरी तैयारी कर रही है.  इसके लिए यहां एक युवा को कठिन परिश्रम के जरिए फौलाद बनाया जाता है. उसे आग की तपन से लेकर कटीले तारों तक को पार करना पड़ता है. अलग‌ अलग बाधाओं को पार कर दुश्मन पर विजय हासिल करनी पड़ती है.


चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानि ‌सीडीस जनरल बिपिन रावत ने हाल ही में साफ तौर से कहा था कि अगर अफगानिस्तान में मौजूदा तालिबान के चलते पैदा हुई परिस्थितियों का असर अगर भारत पर पड़ता है तो भारत उसके लिए पूरी तरह से तैयार है. उन परिस्थितियों को भारत आतंकवाद की तरह निपटेगा, ठीक वैसे ही जैसे कश्मीर में आतंक को कुचलता आया है. यही वजह है कि रामगढ़ स्थित रेजीमेंटल सेंटर में नए जवानों को काउंटर इनसर्जेसी एंड काउंटर टेरेरिज्म की खास ट्रेनिंग दी जाती है. 


मॉर्डन मिलिट्री गैजेट्स के जरिए दी जाती है ट्रैनिंग
सिख‌ रेजीमेंट के रामगढ़ स्थित सेंटर में आधुनिक हथियारों और मॉर्डन मिलिट्री गैजेट्स के जरिए भी सैनिकों को वैपन हैंडलिंग की ट्रैनिंग दी जाती है ताकि वे देश के अंदर हो या फिर बाहर कही भी दुश्मन से निपटने से लिए ना केवल तैयार हो बल्कि नेस्तानबूत करने के लिए भी तैयार हों. कहते हैं कि सिख रेजीमेंट के सैनिक अपने दुश्मनों पर शेर की तरह टूट पड़ते हैं. यही वजह है कि उन सैनिकों को यहां दहाड़ने से लेकर दुश्मन पर गुस्से से टूट पड़ने की ड्रिल भी सीखाई जाती है.


दुश्मन देश के इलाके में भी हमला बोलने के लिए सिख रेजीमेंट को खासी ट्रैनिंग दी जाती है. इसके लिए दुश्मन के बंकर और चौकी पर हमला करना सीखाया जाता है. लेकिन जिस तरह ट्रैनिंग की शुरुआत करने के दौरान खालसा सैनिक जो बोले सो निहाल का युद्धघोष करते हैं वो विजय हासिल करने के बाद भी करते हैं. 


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