भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट सिर्फ अपने गौरवमयी इतिहास पर ही गर्व नहीं करती है, बल्कि निकट भविष्य में होने वाले खतरों से निपटने के लिए भी पूरी तैयारी कर रही है. खास तौर से ऐसे समय में जब अफगानिस्तान में एक बार अशांति और युद्ध का माहौल बना हुआ है. खुद सीडीएस जनरल बिपिन रावत भी कह चुके हैं कि अगर अफगानिस्तान के हालात का असर भारत पर हुआ तो उसका ग्लोबल-टेरेरिज्म की तरह निपटा जाएगा.


शनिवार यानि 28 अगस्त को सिख रेजीमेंट ने अपना 175वां स्थापना दिवस मनाया. इस दौरान झारखंड के रामगढ़ स्थित सिख रेजीमेंटल सेंटर में खास पर्व का आयोजन किया गया. एबीपी न्यूज की टीम भी इस दौरान वहां मौजूद थी. इस मौके पर एबीपी न्यूज ने सिख रेजीमेंट के सैनिकों की खास ट्रेनिंग को खुद देखा और अपने कैमरे में भी कैद किया. क्योंकि, ये वही सिख पलटन है जिसने सबसे पहले 19वीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह के काल में और फिर दूसरे एंग्लो-अफगान वॉर (1878-80) के दौरान काबुल और कंधार में अपनी विजय पताका फहराई थी. इसके बाद 1919 में भी सिख रेजीमेंट ने अफगानिस्तान में दुश्मनों को धूल चटाई थी. दांत खट्टे किए थे. यहीं नहीं प्रसिद्ध सारागढ़ी की लड़ाई के दौरान इस रेजीमेंट के 21 शूरवीरों ने अफगानी कबीलाई के दांत खट्टे किए थे.


कठिन परिश्रम के जरिए फौलाद बनाया जाता है


सिख रेजीमेंटल सेंटर के डिप्टी कमांडेंट, कर्नल कुमार रणविजय ने एबीपी न्यूज को बताया कि खालसा-सैनिकों को एक 'संत-सिपाही' के तौर पर तैयार किया जाता है. इसके लिए यहां एक युवा को कठिन परिश्रम के जरिए फौलाद बनाया जाता है. उसे आग की तपन से लेकर कटीले तारों तक को पार करना पड़ता है. अलग‌ अलग बाधाओं को पार कर दुश्मन पर विजय हासिल करनी पड़ती है.


चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानि ‌सीडीस जनरल बिपिन रावत ने हाल ही में साफ तौर से कहा था कि अगर अफगानिस्तान में मौजूदा तालिबान के चलते पैदा हुई परिस्थितियों का असर अगर भारत पर पड़ता है तो भारत उसके लिए पूरी तरह से तैयार है. उन परिस्थितियों को भारत आतंकवाद की तरह निपटेगा, ठीक वैसे ही जैसे कश्मीर में आतंक को कुचलता आया है. यही वजह है कि रामगढ़ स्थित रेजीमेंटल सेंटर में नए जवानों को काउंटर इनसर्जेसी एंड काउंटर टेरेरिज्म की खास ट्रेनिंग दी जाती है.


वैपन हैंडलिंग की ट्रैनिंग दी जाती है


सिख‌ रेजीमेंट के रामगढ़ स्थित सेंटर में एमपी-9 और सिगसोर जैसे आधुनिक हथियारों और मॉर्डन मिलिट्री गैजेट्स के जरिए भी सैनिकों को वैपन हैंडलिंग की ट्रैनिंग दी जाती है ताकि वे देश के अंदर हो या फिर बाहर कही भी दुश्मन से निपटने से लिए ना केवल तैयार हो बल्कि नेस्तानबूत करने के लिए भी तैयार हों.


इसको अलावा मिलिट्री-टेक्टिक्स के दौरान मंदिर, मस्जिद, कब्रिस्तान और आसमान में तारों के समूह की मदद से युद्ध के मैदान में दिशा तय करना सीखाया जाता है. आतंकियों पर या फिर दुश्मन की सीमा में घुसकर 'एम्बुस' यानि घत लगाकर कैसे हमला किया जाता है उसका भी खास प्रशिक्षण दिया जाता है. एक बांस में गोला-बारूद भरकर या फिर मिट्टी के तेल के 'कॉकटेल' से दुश्मन के बंकर या फिर मोर्चे की छत को तबाह करना भी सिखाया जाता है.


सिख रेजीमेंट को खासी ट्रैनिंग दी जाती है


दुश्मन देश के इलाके में भी हमला बोलने के लिए सिख रेजीमेंट को खासी ट्रैनिंग दी जाती है. इसके लिए दुश्मन के बंकर और चौकी पर हमला करना सीखाया जाता है. लेकिन जिस तरह ट्रैनिंग की शुरूआत करने के दौरान खालसा सैनिक 'जो बोले सो निहाल' का युद्धघोष करते हैं वो विजय हासिल करने के बाद भी करते हैं.


अपना खास मिलिट्री ट्रेनिंग के जरिए ही खालसा-सैनिक अपने उस अदम्य साहस और शूरवीरता से भरे इतिहास को एक बार फिर से चरितार्थ कर सकते है जैसा कि कहा जाता है कि सिख रेजीमेंट का युद्धघोष, 'जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल' चीन से लेकर अफगानिस्तान, यूरोप और अफ्रीका से लेकर करगिल युद्ध तक सुनाई पड़ता है.


कहते है कि सिख रेजीमेंट के सैनिक अपने दुश्मनों पर शेर की तरह टूट पड़ते हैं. यही वजह है कि उन सैनिकों को रामगढ़ स्थित रेजीमेंटल सेंटर में दहाड़ने से लेकर दुश्मन पर गुस्से से टूट पड़ने की ड्रिल भी सीखाई जाती है.


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