Sikkim Assembly Election: लोकसभा चुनाव 2024 के एग्जिट पोल में मिली बंपर जीत का जश्न अभी बीजेपी मना ही रही थी कि पूर्वोत्तर के एक राज्य ने बीजेपी के माथे पर बल ला दिया. ये राज्य कोई और नहीं बल्कि सिक्किम है, जहां विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला है और 32 में से 31 सीटें जीतकर सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के प्रेम सिंह तमांग ने पूरे विपक्ष को एक सीट पर समेट कर रख दिया है.


तो आखिर कौन हैं ये प्रेम सिंह तमांग, कैसे उनकी पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की आंधी में बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां हवा हो गईं और कैसे एसकेएम की आंधी में भी सिर्फ एक शख्स डटकर खड़ा रहा और उसने जीत भी दर्ज कर ली.


सिक्किम की जीत का ‘नायक’


सिक्किम की जीत का कोई नायक है तो वो हैं प्रेम सिंह तमांग, जिन्होंने सिक्किम में विधानसभा की 32 सीटों में से 31 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है. सिक्किम के लोग उन्हें प्रेम सिंह गोले भी कहते हैं. प्रेम सिंह गोले किसी राजनीतिक परिवार से ताल्लुक नहीं रखते हैं. बल्कि उन्होंने तो अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के तौर पर की थी.


1993 में जब पवन कुमार चामलिंग सिक्किम में एक नई पार्टी बना रहे थे सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, एसडीएफ तो प्रेम सिंह तमांग नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति में उतर गए और पवन कुमार चामलिंग के साथ मिलकर पार्टी बनाने में भूमिका अदा की. तब उन्हें पार्टी का वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया. 1994 में प्रेम सिंह तमांग विधायक बन गए. फिर मंत्री बने. और चूंकि एसडीएफ सिक्किम के चुनावों में लगातार जीत दर्ज करती रही, तो पवन कुमार चामलिंग लगातार मुख्यमंत्री भी बनते रहे और 2009 तक प्रेम सिंह तमांग भी चामलिंग सरकार में मंत्री बनते रहे.


जब प्रेम सिंह गोले ने कर दी पवन सिंह से बगावत


लेकिन 21 दिसंबर 2009 की तारीख ने सिक्किम के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया. तब मुख्यमंत्री पवन सिंह चामलिंग ने प्रेम सिंह गोले को मंत्रीपद देने से इन्कार कर दिया और उन्हें इंडस्ट्री डिपार्टमेंट का चेयरपर्सन बनाने का ऑफर दिया. लेकिन प्रेम सिंह गोले ने इन्कार कर दिया और मुख्यमंत्री पवन सिंह चामलिंग के खिलाफ बगावत कर दी. उन्होंने चामलिंग सरकार पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद का आरोप लगाया और रोलू प्लेग्राउंड पर एक बड़ी रैली आयोजित कर दी. उसी दिन यानी कि 21 दिसंबर 2009 को प्रेम सिंह गोले ने बगावत का ऐलान कर दिया. इस कार्यक्रम को रोलू पिकनिक कहा गया, जिसके बाद पवन चामलिंग ने प्रेम सिंह गोले को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.


बनाया सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, मिली जीत


4 फरवरी 2013 को प्रेम सिंह गोले ने अपनी नई पार्टी बनाई और नाम दिया सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा. इसी पार्टी से गोले ने 2014 का चुनाव लड़ा. नई-नवेली पार्टी ने 32 में से 10 सीटों पर जीत दर्ज कर ली और प्रेम सिंह गोले नेता प्रतिपक्ष बन गए. हालांकि 2016 में प्रेम सिंह गोले को भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा. सजा हुई तो वो सिक्किम के पहले ऐसे नेता बन गए, जिन्हें सजा होने के बाद विधायक पद से अयोग्य घोषित किया गया.


प्रेम सिंह गोले ने विपक्ष को कर दिया धराशाई


लेकिन गोले ने वापसी की. 2019 के विधानसभा चुनाव में गोले की पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने 17 सीटें जीत लीं. गोले पहली बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने पवन चामलिंग की करीब 24 साल पुरानी सत्ता को उखाड़ दिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए. और अब जब 2024 के चुनाव हुए हैं, तो गोले ने 32 में से 31 सीटें जीतकर पूरे विपक्ष को ही नेस्तनाबूद कर दिया है. रही बात उस एक शख्स की, जो प्रेम सिंह गोले की इस आंधी में भी डटकर खड़ा रहा, तो उसका नाम है तेनजिंग नोरबू. वो सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता हैं, जो श्यारी विधानसभा से चुनाव लड़े थे. महज 1314 वोटों के अंतर से तेनजिंग नोरबू ने एसकेएम के नेता कुंगा नीमा लेप्चा को मात दी है.


प्रेम सिंह गोले का राजनीतिक सफर


तेनजिंग नोरबू भी उसी लीग से आते हैं, जिस लीग के प्रेम सिंह तमांग या कहिए कि प्रेम सिंह गोले हैं. तेनजिंग नोरबू भी सरकारी नौकरी में थे और सिक्किम सरकार में इंजीनियर थे. 2018 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और अब वो सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट से विधायक बन गए हैं. इकलौते विधायक, जो 32 सीटों वाली सिक्किम विधानसभा में विपक्ष की सीट पर बैठेंगे. रही बात बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों की, तो 2024 के विधानसभा चुनाव में उनका खाता भी नहीं खुल पाया है.


हालांकि ये कोई नई बात नहीं है. 2019 के विधानसभा चुनाव में भी न तो बीजेपी और न ही कांग्रेस सिक्किम में खाता खोल पाई थी. और अब भी बीजेपी-कांग्रेस के प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं हुआ है और उन्हें इस बार भी कोई सीट नहीं मिली है. क्योंकि 32 में से 31 सीटें जीतने वाला वो शिक्षक है, जिसने सरकारी नौकरी छोड़ी, विधायक बना, मंत्री बना, अपने ही नेता के खिलाफ बगावत की, पार्टी बनाई, जेल भी गया और वापस लौटा तो सीधे मुख्यमंत्री बन गया, जिसका नाम है प्रेम सिंह तमांग और जिसे उसके लोग प्रेम सिंह गोले कहते हैं.


ये भी पढ़ें: Arunachal Pradesh Elections: भगवामय हुआ अरुणाचल, 60 में से 46 सीटों पर बीजेपी का परचम, 1 सीट पर सिमटी कांग्रेस