Sikkim Flood: तीस्ता नदी में आई बाढ़ से बाल-बाल बचे 150 मजदूर, शिविर में सो रहे थे, सामान छोड़कर भागना पड़ा
Sikkim Flash Floods: ये सभी मजदूर रेल सुरंग निर्माण के कार्य में जुटे थे. जैसे ही सभी मजदूर शिविर से निकले तभी पानी के तेज बहाव में पूरा शिविर डूब गया.
Sikkim Flood Update: सिक्किम-पश्चिम बंगाल सीमा के पास रेल सुरंग निर्माण करने के कार्य में जुटे करीब 150 मजदूर तीस्ता नदी में बुधवार (4 अक्टूबर) सुबह अचानक आई बाढ़ में बाल-बाल बचे. दरअसल बाढ़ का पानी प्रवेश करने और उनका शिविर बहा ले जाने से कुछ मिनट पहले उन्हें वहां से निकाल लिया गया था.
ये लोग जिस निजी कंपनी के लिए काम कर रहे थे, उसके अधिकारी बाढ़ आने की सूचना मिलते ही समय रहते वाहनों के साथ उनकी कॉलोनी में पहुंचे और सो रहे मजदूरों को वहां से निकाला.
शिविर में सो रहे थे मजदूर
पश्चिम बंगाल के कलिमपोंग जिले के राम्बी बाजार से करीब दो किलोमीटर दूर जीरो मील के नजदीक स्थित शिविर को तीस्ता नदी ने पूरी तरह से तबाह कर दिया और पूरे इलाके में कई फुट कीचड़ जमा हो गया है. शिविर में सो रहे मजदूरों को फोन कर जगाते हुए अधिकारियों ने उनसे जल्द से जल्द अपना सामान समेटने और नदी तट पर स्थित शिविर को खाली करने का आदेश दिया.
जलमग्न हो गया शिविर
इन मजदूरों के पास समय बिल्कुल कम था, इसलिए उन्हें एक सुरक्षा गार्ड की मदद से दूसरे रास्ते से शिविर से निकाला गया. वे लगभग 20 मिनट पैदल चलने के बाद निकटतम सड़क तक पहुंचे. सड़क पर सुरक्षित पहुंचने पर जब मजदूरों ने पीछे मुड़कर शिविर की ओर देखा तो उन्हें अपना शिविर डूबता हुआ दिखा. सब कुछ जलमग्न हो गया था.
मजदूर प्रकृति के विनाश और जीवित बचने की राहत के मिश्रित भाव से रो पड़े. वहां काम करने वाले शिबयेंदु दास (32) ने बताया, ‘‘जब हमने अपने शिविर को जलमग्न होते देखा, तो हमारा दिल रो पड़ा. यह विश्वास करना मुश्किल था कि महज 15-20 मिनट पहले हम उसी स्थान पर सो रहे थे. ईश्वर की कृपा से हम सबकी जान बच गई.’’ दास उन 150 मजदूरों में हैं, जिन्हें बचाया गया है.
सामान छोड़कर भागना पड़ा
बचाये गए मजदूर असम, बिहार, पंजाब और पश्चिम बंगाल के निवासी हैं और भारतीय रेलवे के सेवोके-रंगपो परियोजना के तहत पांच सुरंगों का निर्माण कार्य कर रहे थे. यह रेलवे लाइन सिक्किम को पूरे देश से रेल नेटवर्क से जोड़ेगी.
पश्चिम बंगाल में 24 परगना जिले के बशीरहाट इलाके के रहने वाले मजदूर ने बताया, ‘‘हमने अपना भोजन, उपकरण, गैस सिलेंडर, निजी सामान सब कुछ खो दिया. हम अपने साथ केवल पैसे, महत्वपूर्ण कागजात और कुछ कपड़े लाने में ही कामयाब रहे. मैं उस स्थान पर करीब दो साल से काम कर रहा था, लेकिन कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा.’’
सभी मजदूर सरक्षित जगह पर पहुंचे
सुरक्षा गार्ड एकमात्र व्यक्ति था जो उन्हें बचाने के लिए तीन अक्टूबर को तड़के शिविर आया था. दास के परिवार में उनकी पत्नी और बेटी है. दास ने कहा, ‘‘हमारे आश्चर्य की तब सीमा नहीं रही जब हमने देखा कि सड़क पर कुछ अधिकारी दो ट्रक के साथ हमारा इंतजार कर रहे थे.’’
मजदूरों के बचाव कार्य में शामिल एक अधिकारी ने बताया, ‘‘हमें देर रात दो बजे (रम्बी बाजार के नजदीक के) रेयांग गांव निवासी एक परिचित का फोन आया, जिसने बताया कि पुलिस बचाव कार्य के लिए गई है क्योंकि तीस्ता का जलस्तर बढ़ रहा है. हमने मजदूरों को बचाने का फैसला किया क्योंकि उनका शिविर नदी के किनारे था. चार अधिकारी और सुरक्षा गार्ड मजूदरों को बचाने के लिए दो ट्रक के साथ उनके शिविर तक गए थे."
अधिकारी ने बताया, ‘‘सभी 150 मजदूरों को रम्बी बाजार स्थित खाली गोदाम तक पहुंचाने में ट्रक ने सात फेरे लगाए. वे लोग घबराए हुए थे और शारीरिक रूप से थके हुए थे. हमने उनका मनोबल बढ़ाया और हिम्मत दी.’’
उस रात बचाव अभियान के दौरान मौजूद रहे एक इंजीनियर ने कहा, "सभी 150 मजदूरों को बाद में रेयांग गांव के पास एक सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया, जहां परियोजना के तहत बन रही सुरंगों में से एक का निर्माण किया जा रहा है.
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