Climate Change: 'जलवायु परिवर्तन दुनिया की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा' सिपरी की रिपोर्ट ने चेताया
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के ग्लोबल लीडर्स शांति के लिए नए काल से लड़ने की तैयारी में विफल रहे हैं. क्योंकि पर्यावरण पर मंडरा रहे बड़े खतरे और सिक्योरिटी-क्राइसिस एक साथ बेहद तेजी से आते हैं.
SIPRI Warns Of A Global Emergency: जापान में होने जा रही क्वाड देशों (Quad Countries) के राष्ट्राध्यक्षों की अहम बैठक से पहले ग्लोबल थिंक टैंक, सिपरी की एक खास रिपोर्ट सामने आई है जिसमें जलवायु परिवर्तन को दुनिया की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बताया है. रिपोर्ट में पर्यावरण पर मंडरा रहे संकट को दुनिया के सुरक्षा-वातावरण से जोड़कर पूरी दुनिया को आगाह किया गया है.
सोमवार को स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट यानि सिपरी ने बेहद ही महत्वपूर्ण रिपोर्ट 'एनवायरमेंट ऑफ पीस--सिक्योरिटी इन ए न्यू एरा ऑफ रिस्क' जारी की. रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के ग्लोबल लीडर्स शांति के लिए जटिल और अप्रत्याशित खतरों के एक नए काल से लड़ने की तैयारी में विफल रहे हैं क्योंकि पर्यावरण पर मंडरा रहे बड़े खतरे और सिक्योरिटी-क्राइसिस एक साथ बेहद तेजी से आते हैं.
क्या कहती है रिपोर्ट ?
सोमालिया, मध्य-अमेरिका और अरब-स्प्रिंग जैसी बड़ी घटनाओं का हवाले देते हुए सिपरी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन, सामूहिक-विलुप्त और संसाधनों की कमी जैसे पर्यावरण संकट के मुद्दे आज के काले गहरे सुरक्षा-क्षितिज और कोरोना महामारी जैसी बड़ी घटनाओं के साथ-साथ चल रहे हैं. यही वजह है कि पर्यावरण में बदलाव दुनिया की शांति और सुरक्षा के लिए भी खतरा है. ये रिपोर्ट 2010-2020 के बीच दुनियाभर में पर्यावरण बदलाव और शांति-सुरक्षा परिस्थितियों पर आधारित हैं. रिपोर्ट में यूक्रेन-रूस जंग को फिलहाल शामिल नहीं किया गया है.
पर्यावरण का क्या पड़ रहा है प्रभाव ?
रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह अफ्रीकी देश सोमालिया में जलवायु परिवर्तन, गरीबी और कमजोर सरकार के चलते लोग आतंकी संगठन अल-शबाब के हाथों में पड़ रहे हैं. अफ्रीका के ही सहेल रीजन में सूखा और खेती की जमीन को बढ़ाने के लिए हिंसा हो रही है. सेंट्रल अमेरिका में जलवायु परिवर्तन के चलते हिंसा और भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. इसके चलते लोग बेहद ही सुरक्षित यूएस (अमेरिका) में निर्वासित होना चाहते हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि रूस में गर्मी के चलते अनाज की कम पैदावार और यूएस की बायोफ्यूल पॉलिसी के चलते मिडिल-ईस्ट और नॉर्थ-अफ्रीका में ब्रेड के दाम बढ़े और जिससे अरब-स्प्रिंग जैसा आंदोलन हुआ.
कोविड को लेकर क्या टिप्पणी की गई है ?
सिपरी के मुताबिक, ये रिपोर्ट दुनियाभर के नेताओं के लिए एक चेतावनी तो है ही साथ ही रिपोर्ट में पॉलिसी-मेकर्स के लिए इस दोहरे संकट से निपटने के लिए पांच-सूत्रीय सलाह भी दी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में दुनिया भर की सरकारें हर साल 5-7 ट्रिलियन डॉलर प्राकृतिक पर्यावरण को खराब करने पर खर्च करती हैं. इसमें विनाशकारी फिशिंग यानी मछली पकड़ना, फोसिल-फ्यूल पर सब्सिडी और जंगलों की कटाई शामिल है.
रिपोर्ट में कोरोना महामारी जैसी अप्रत्याशित घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा गया कि मौजूदा वैश्विक-संकट के समय में कोई भी सरकार अपने दम पर अपने नागरिकों का भला नहीं कर सकती है. इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय-सहयोग बेहद जरुरी है और आपसी सहयोग से ही बेहद तनावपूर्ण जियो-पॉलिटिक्स और विवादों के बीच दुनिया का भला हो सकेगा. रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग को जल्द काबू में करने पर जोर दिया गया है.
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