(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
लखीमपुर खीरी कांड : आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा आदेश
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना,जस्टिस सूर्य कांत और हिमा कोहली की बेंच ने लगभग 50 मिनट तक सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया.
लखीमपुर खीरी कांड के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. सुनवाई के दौरान घटना में मारे गए एक किसान के परिवार की तरफ से कहा गया कि हाई कोर्ट ने बिना मामले की गंभीरता देखें जमानत का आदेश दे दिया. वहीं आशीष मिश्रा ने अपना बचाव करते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द कर दी तो उसे कोई भी कोर्ट जमानत नहीं देगा.
क्या है मामला?
पिछले साल 3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में आंदोलनकारी किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ाए जाने की घटना हुई थी. इस घटना में और उसके बाद उग्र किसानों की तरफ से की गई आरोपियों की पिटाई में कुल 8 लोगों की जान गई थी. मामले का मुख्य आरोपी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा आशीष मिश्रा उर्फ मोनू है. 10 फरवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आशीष को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था.
SIT की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले मामले की जांच कर रही SIT ने रिपोर्ट दाखिल की. SIT ने बताया कि उसने आशीष की जमानत के बाद यूपी सरकार को 2 बार चिट्ठी लिखी थी. उसने सलाह दी थी कि राज्य सरकार आशीष की जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे. SIT ने यह भी बताया कि आशीष के घटनास्थल पर मौजूद होने और घटना में शामिल होने के सबूत हैं.
यूपी सरकार की दलील
यूपी सरकार के वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि राज्य सरकार ने जमानत याचिका का हाई कोर्ट में कड़ा विरोध किया था. उसका मानना है कि मामले की गंभीरता के आधार पर आरोपी को जमानत नहीं मिलनी चाहिए थी. लेकिन ज़मानत को चुनौती देने की SIT की सलाह इस तर्क पर आधारित थी कि आरोपी गवाहों को नुकसान पहुंचा सकता है. राज्य सरकार ने सबको पर्याप्त सुरक्षा दी है, इसलिए, हमें इस बात की आशंका नहीं लगी. यूपी के वकील ने यह भी कहा कि आशीष को जमानत मिलने की तारीख यानी 10 फरवरी के बाद से कोई भी अवांछित घटना नहीं हुई है. आरोपी के फरार होने का भी कोई खतरा नहीं है.
पीड़ित पक्ष ने किया विरोध
यूपी सरकार की दलील का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि 10 मार्च को एक गवाह पर हमला हुआ. उसे धमकी दी गई कि बीजेपी पावर में आ गई है, देखना क्या होगा तुम्हारे साथ. दवे ने यह भी कहा कि घटना के बाद पुलिस को रिपोर्ट दी गई थी कि किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी गई है. लेकिन हाई कोर्ट ने आशीष को जमानत देते समय आदेश में लिखा कि घटनास्थल पर गोली चलने के सबूत नहीं हैं. दुष्यंत दवे ने आगे कहा, "केंद्रीय मंत्री लंबे समय से आंदोलनकारियों को धमकी दे रहे थे. आंदोलन को देखते हुए घटना के दिन स्थानीय प्रशासन ने उपमुख्यमंत्री का यात्रा मार्ग बदल दिया था. फिर भी आशीष मिश्रा जान-बूझ कर किसानों वाले रास्ते पर गया."
आशीष ने की रियायत की गुहार
आरोपी के लिए पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने कहा कि वह घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं था. रंजीत कुमार ने कहा, "आशीष अपने गांव में हो रहे दंगल को देख रहा था. SIT सीसीटीवी के आधार पर कह रही है कि आशीष पैदल चलते हुए 7 मिनट में घटनास्थल से 2.8 किमी दूर अपने गांव पहुंच गया. क्या यह संभव है?"
आशीष मिश्रा के वकील ने आगे कहा, "पुलिस को किसानों की तरफ से दी गई रिपोर्ट में ही कहा गया था कि गोली से एक किसान मरा. यही वजह है कि हाई कोर्ट ने गोली चलने का सबूत न होने की बात को अपने आदेश में रिकॉर्ड किया. लोगों ने यह भी कहा था कि आशीष गन्ने के खेत में भाग गया. लेकिन घटनास्थल पर गन्ने का खेत था ही नहीं, धान का था." रंजीत कुमार ने गुहार लगाते हुए कहा, "अगर सुप्रीम कोर्ट आशीष की बेल रद्द करेगा तो फिर कौन देगा? इस तरह वह मुकदमा खत्म होने तक जेल में ही रहेगा."
जजों ने उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना,जस्टिस सूर्य कांत और हिमा कोहली की बेंच ने लगभग 50 मिनट तक सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया. सुनवाई के दौरान जजों ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि हाई कोर्ट ने जमानत याचिका को सुनते हुए पोस्टमार्टम रिपोर्ट समेत तमाम सबूतों पर इतने विस्तार से चर्चा क्यों की. जजों ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि पीड़ित पक्ष को अपनी बातें रखने का पूरा मौका हाई कोर्ट ने नहीं दिया.
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