हैदराबाद: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) में सीताराम येचुरी और प्रकाश करात के बीच लड़ाई में जीत येचुरी की हुई है. आज माकपा (सीपीआईएम) ने बताया कि सीताराम येचुरी को दोबारा महासचिव चुन लिया गया है. त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने पार्टी की 22वीं कांग्रेस के अंतिम दिन कहा कि 65 वर्षीय येचुरी को 95 सदस्यीय नई केंद्रीय समिति ने निर्वाचित किया. पार्टी ने 17 सदस्यीय नए पोलित ब्यूरो को भी चुना.
येचुरी ने 2015 में विशाखापत्तनम में हुई 21 वीं पार्टी कांग्रेस में महासचिव पद पर प्रकाश करात की जगह ली थी. पार्टी कांग्रेस के समापन सत्र को संबोधित करते हुए येचुरी ने कहा , ‘‘हमारी कांग्रेस असरकारी रही , विस्तृत चर्चा हुई और हमने इस कांग्रेस में अहम फैसले लिए. हमारे नेताओं - कार्यकर्ताओं एवं हमारे वर्ग शत्रु में यदि कोई संदेश जाना चाहिए तो वह यह है कि माकपा एक एकजुट पार्टी के तौर पर उभरी है.’’
बीते 18 अप्रैल से शुरू हुई पार्टी कांग्रेस में येचुरी के उत्तराधिकारी के लिए कई नामों पर चर्चा हुई. पार्टी सूत्रों ने बताया कि त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार, पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात और सचिव बी वी राघवुलु संभावित दावेदारों में शामिल थे. प्रकाश करात , बृंदा करात , केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन, केरल में सीपीआईएम के नेता एस रामचंद्रन पिल्लई और पश्चिम बंगाल के नेता बिमान बसु केंद्रीय कमेटी के सदस्यों में शामिल हैं.
येचुरी की इस राजनीतिक लाइन को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है कि बीजेपी से मुकाबले के लिए सीपीआईएम को कांग्रेस के साथ गठबंधन या तालमेल करना चाहिए कि नहीं.
आपको बता दें कि सीताराम येचुरी और प्रकाश करात के बीच इस मसले पर मतभेद रहा है. करात पार्टी के कमजोर होते आधार के बावजूद कांग्रेस से गठबंधन के पक्ष में नहीं थे. जबकि येचुरी का मानना है कि बीजेपी से मुकाबला के लिए उन्हें 'धर्मनिरपेक्ष दलों' से हाथ मिलाना होगा.
कल पार्टी नेतृत्व ने इस बाबत बीच का रास्ता चुना. पार्टी ने तय किया कि वह कांग्रेस के साथ ‘‘कोई तालमेल नहीं’’ वाले हिस्से को हटाकर इस मुद्दे पर अपने आधिकारिक मसौदे में संशोधन करेगी. पार्टी के इस फैसले को येचुरी खेमे की जीत की तरह देखा जा रहा है.
प्रकाश करात द्वारा समर्थित आधिकारिक मसौदे में कहा गया था कि पार्टी को ‘‘कांग्रेस पार्टी के साथ किसी तालमेल या चुनावी गठबंधन के बगैर’’ सभी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट करना चाहिए.
ध्यान रहे की बीजेपी के खिलाफ बने गठबंधन को हाल ही में सफलताएं मिली है. बिहार और उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा उपचुनाव में गठबंधन ने जीत दर्ज की है. ऐसे में करात के रुख से पार्टी को और अधिक नुकसान उठाना पड़ा. पिछले दिनों सीपीआईएम का गढ़ माने जाने वाली त्रिपुरा में बीजेपी को बड़ी हार मिली.