Six years of demonetisation: नोटबंदी के 6 साल पूरे हो गए हैं. इतना वक्त बीतने के बावजूद आम लोग से लेकर तमाम अर्थशास्त्रियों के बीच अब भी इसके फायदे-नुकसान को लेकर चर्चाएं होती रहती हैं. छह साल पहले यानी 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने रात आठ बजे देश के नाम संबोधन में नोटबंदी का एलान किया था. प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि उसी रात 12 बजे से 500 और 1000 के नोटों को भारतीय अर्थव्यवस्था के चलन से बाहर कर दिया जाएगा. 


नोटबंदी के फैसले के पीछे का कारण


नोटबंदी का एलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस फैसले के पीछे तीन बड़े कारण गिनाए  थे ..


1. काले धन को समाप्त करना


2. जाली नोटों की समस्या को हल करना, और


3. आतंकवाद के आर्थिक स्रोतों को बंद करना


यह भारतीय इतिहास में अर्थव्यवस्था से जुड़े सबसे बड़े नीतिगत फैसलों में से एक था. नोटंबदी के फैसले के बाद सरकार को कई आर्थिक विशेषज्ञों, विपक्ष और पत्रकारिता से जुड़े लोगों की कड़ी आलोचना का भी सामना करना पड़ा लेकिन सरकार लगातार भरोसा जताती रही कि नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला आने वाले दिनों में एक नए भारत की इबारत लिखने जा रहा था. 


नोटबंदी के छह साल बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका असर चर्चा के केंद्र में है. आजादी के बाद से ही देश की जनता एक ऐसे फैसले और नीति की बाट जोह रही थी जो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए और एक साफ सुथरे तंत्र को विकसित करे. इन छह सालों में नोटबंदी के फैसले से सरकार लोगों की इसी आकांक्षा को पूरा करने का दावा करती रही है. सरकार का कहना है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था अधिक औपचारिक हुई, अधिक राजस्व मिला, गरीबों के लिए अधिक संसाधन मिले, बुनियादी ढांचा बेहतर हुआ और नागरिकों का जीवन स्तर भी बेहतर हुआ है.


नोटबंदी के दो साल पूरे होने के मौके पर तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फेसबुक पर बकायदा पोस्ट लिखकर इसके मकसद और उपलब्धियों की जानकारी दी थी. 'नोटबंदी का प्रभाव’ शीर्षक से लिखे इस लेख में अरुण जेटली ने नोटबंदी को अर्थव्यवस्था को औपचारिक या दुरुस्त करने की दिशा में सरकार की तरफ से उठाए गए महत्वपूर्ण फैसलों में से एक करार दिया था.


नोटबंदी से फायदा, बैंकों की कर्ज देने की क्षमता में सुधार


दरअसल  भारत शुरुआत से ही नकद वर्चस्व वाली अर्थव्यवस्था थी. नकद लेन-देन में, लेने वाले और देने वाले का पता नहीं लगाया जा सकता. इसमें बैंकिग प्रणाली की भूमिका पीछे छूट जाती है और साथ ही टैक्स सिस्टम भी बिगड़ता है. सरकार का दावा रहा है कि नोटबंदी ने नकद धारकों को सारा कैश बैंकों में जमा करने पर मजबूर किया.


बैकों में नकद जमा होने और किसने जमा किए, ये पता चलने से दो साल के भीतर ही 17 लाख 42 हजार संदिग्ध खाताधारकों की पहचान हो सकी. नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंड कार्रवाई का सामना करना पड़ा. बैकों में ज्यादा धन जमा होने से बैंकों की कर्ज देने की क्षमता में भी सुधार हुआ. आगे निवेश के लिए इस धन को म्यूचुअल फंड में बदल दिया गया. ये कैश भी औपचारिक प्रणाली का हिस्सा बन गया. 


सारा कैश बैंकों में जमा करना असली मकसद नहीं 


नोटबंदी के विरोध में ये तर्क दिया जता रहा है कि लगभग पूरा नकद बैंकों में जमा हो गया है. नोटबंदी के दो साल बाद ही 2018 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस तर्क को दुर्भाग्यपूर्ण आलोचना करार दिया था. उनका कहना था कि नोटबंदी का मकसद नकदी की जब्ती नहीं था. नोटबंदी का उद्देश्य था कैश को औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल कराना और कैशधारकों को टैक्स सिस्टम में लाना. भारत को नकदी अर्थव्यवस्था से डिजिटल लेन-देन में बदलने के लिए सिस्टम में बदलाव की ज़रूरत को भी नोटबंदी से मदद मिली.


डिजिटल भुगतान सिस्टम को मिला बूस्ट


नोटबंदी से लेन-देन की प्रक्रिया के डिजिटाइजेशन में भी मदद मिली. 11 अप्रैल 2016 में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (Unified Payment Interface) यानी यूपीआई की शुरुआत हुई थी. इसके बाद से ही लगातार इसकी उपयोगिता बहुत तेजी से बढ़ी है. आजकल हर कोई पेटीएम (Paytm), फोन-पे (Phonepe), गूगल पे (Google Pay), BHIM UPI के जरिए पेमेंट करना और लेना पसंद करता है.


इसके जरिए हुआ लेन-देन अक्टूबर 2016 के 50 करोड़ रुपये से बढ़कर सितंबर 2018 में 598 अरब रुपये पहुंच गया. नोटबंदी के बाद देश में डिजिटल भुगतान (Digital Payment) के इस्तेमाल में बहुत तेजी के साथ बढ़ोतरी हुई है. यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI) के जरिए डिजिटल भुगतान लेनदेन की संख्या सितंबर 2022 में  बढ़कर 6.78 अरब हो गई हैं और इनका मूल्य 11.16438 करोड़ रुपये है.


नोटबंदी के बाद Digital Payment को मिले बढ़ावा की वजह से ही इस साल जुलाई में पहली बार देश में UPI पेमेंट ने 6 अरब से अधिक ट्रांजैक्शन को क्रॉस किया था. आज हालात ऐसे हैं कि यूपीआई और रुपे कार्ड की स्वदेशी भुगतान प्रणाली के आगे वीजा और मास्टरकार्ड भारतीय बाजारों में अपनी हिस्सेदारी खो रहे हैं. डेबिट और क्रेडिट कार्ड से होने वाले भुगतान में यूपीआई और रुपे की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है.


नोटबंदी से Tax base बढ़ाने में मिली मदद


नोटबंदी से  कर का आधार बढ़ाने में भी मदद मिली है. नोटबंदी का प्रभाव व्यक्तिगत इनकम टैक्स कलेक्शन पर भी देखा गया है. नोटबंदी से दो साल पहले प्रत्यक्ष कर (Direct tax) कलेक्शन में 6.6% और 9% की सालाना वृद्धि हुई थी. वहीं नोटबंदी के बाद के दो वर्षों यानी 2016-17 में Direct tax कलेक्शन में 14.6% और 2017-18 में 18% की वृद्धि दर्ज हुई. प्रत्यक्ष कर  के साथ ही अप्रत्यक्ष कर (Indirect tax) से जुड़े करदाताओं की संख्या बढ़ी. नोटबंदी का ही असर था कि 2019 आते-आते करदाताओं की संख्या दोगुनी हो गई.


लोगों की आदतें बदलने से कोरोनो से जंग में मिली मदद


नोटबंदी के बाद  लोग Digital Payment को लेकर ज्यादा जागरूक हुए और यही आदत कोरोना महामारी से जंग में एक बड़ा हथियार बना. घरों में बंद लोगों के लिए Digital Payment के जरिए जरूरत का सामान मंगवाना आसान हो गया. बड़ी संख्या में मार्केट में जाकर खरीदारी करने से लोग बच गए.


इन सारे बिन्दुओं के बावजूद लोगों के बीच मौजूद करेंसी में लगातार इजाफा होता रहा है. चार नवंबर 2016 को देश के पब्लिक डोमेन में 17.7 लाख करोड़ रुपये की करेंसी मौजूद थी. वहीं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया RBI के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 21 अक्टूबर 2022 तक जनता के पास 30.88 लाख करोड़ रुपये की करेंसी थी. 


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