नई दिल्ली: कोरोना की दूसरी लहर की रफ्तार भले ही आहिस्ता-आहिस्ता धीमी पड़ रही है लेकिन देश के 10 राज्य अभी भी ऐसे हैं, जो खतरे के निशान से ऊपर हैं. लिहाजा सरकार को इन राज्यों पर न सिर्फ खास ध्यान देने की जरूरत है बल्कि यहां बरती गई थोड़ी-सी ढिलाई भी भारी पड़ सकती है.
15 मई तक देश में कोरोना के 36 लाख 73 हजार से ज्यादा एक्टिव मामले थे, जिनमें से 85 फीसदी यानी तकरीबन 31 लाख मामले सिर्फ इन दस राज्यों में है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि संक्रमण की दूसरी लहर ने अब वहां अपना असली असर दिखाना शुरू किया है. पहली लहर का असर पहाड़ी राज्यों में न के बराबर ही देखने को मिला था लेकिन अब दूसरी लहर वहां जिस तरह से कहर बरपा रही है, वह चिंता का विषय है.
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में नए मामलों के साथ ही मौतों का आंकड़ा भी बेहद तेजी से बढ़ रहा है. लिहाजा, इन राज्यों में टीकाकरण के अभियान को और तेजी से चलाने की जरूरत है. साथ ही जिन राज्यों ने टेस्टिंग, ट्रेसिंग और माइक्रो कंटेन्मेंट जोन बनाकर संक्रमण की चेन तोड़ने की जो कोशिशें कीं, उनके अनुभवों का इस्तेमाल भी इन राज्यों में सख्ती से होना चाहिए.
उपचाराधीन मामले
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक फिलहाल 11 राज्यों में संक्रमण के एक-एक लाख से अधिक उपचाराधीन मामले हैं, जबकि आठ राज्यों में 50 हजार से एक लाख के बीच उपचाराधीन रोगी हैं. लेकिन 24 राज्यों में संक्रमण दर 15 फीसदी से अधिक है, जिसे सामान्य स्थिति नहीं कहा जा सकता. हालांकि देश में सक्रिय मामलों में कमी देखी जा रही है. तीन मई को रिकवरी रेट 81.3 फीसदी थी, जिसके बाद रिकवरी में सुधार हुआ है. अब रिकवरी रेट 83.83 फीसदी तक जा पहुंचा है.
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ ,दिल्ली और गुजरात में पिछले एक हफ्ते में सक्रिय मामलों में कमी आई है. लेकिन वहीं तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल में पिछले एक सप्ताह में सक्रिय मामलों में बढ़ोतरी हुई है. सरकार में बैठे नीति-निर्माता महामारी के कारण होने वाली मृत्यु दर में आए ठहराव को भले ही शुभ संकेत मानें लेकिन वैज्ञानिकों के नजरिए से देखें तो वे शरीर से हर्ड इम्यूनिटी या एंटी बॉडी के जल्द खत्म हो जाने को चिंताजनक मानते हैं और इसे ही दूसरी लहर के घातक होने की वजह भी बताते हैं.
हर्ड इम्यूनिटी
वैज्ञानिकों के मुताबिक हर्ड इम्यूनिटी को लेकर यही मान्यता बनी थी कि ये छह महीने तक बनी रहेगी लेकिन यह महज तीन महीने में ही खत्म हो गई. ICMR की एक स्टडी में भी यही नतीजे सामने आए थे कि छह महीने तक लोगों के शरीर में यह बनी रहेगी और तब तक ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण हो जाएगा, लिहाजा जब दूसरी लहर आएगी तो उसका इतना खतरनाक असर नहीं होगा. लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट न शरीर में हर्ड इम्यूनिटी रही और न ही तब तक एक चौथाई आबादी को भी टीका लग पाया.
वक्त का तकाजा है कि अब टीकाकरण अभियान को युद्ध स्तर पर चलाया जाए और इसके लिए जरूरी है कि हमारे पास वैक्सीन का पर्याप्त भंडार हो. हालांकि वैक्सीन के उत्पादन को लेकर नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल के मुताबिक फिलहाल हर महीने कोवैक्सीन की डेढ़ करोड़ डोज का उत्पादन हो रहा है. सरकार की योजना इसे बढ़ाकर हर महीने 10 करोड़ डोज करने की है.
कोविशील्ड की दो डोज के बीच के अंतराल को बढ़ाने के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि ऐसा कहा जा रहा है कि वैक्सीन कम पड़ रही है और ये फैसला दबाव में आ कर लिया गया है, लेकिन ये दुख की बात है. मंत्रालय ने सफाई दी है कि ये फैसला पूरी तरह वैज्ञानिक आधार पर किया गया है और वैज्ञानिकों के समूह की राय पर ही लिया गया है.