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ज्यादा स्मार्टफोन चलाना जरूरत या आदत? जानिए कितने घंटे फोन से चिपके रहते हैं हम, कितना गहरा है ये रिश्ता
याद है वो जमाना जब हमारा काम स्मार्टफोन के बिना भी चल जाता था? अब तो यकीन करना मुश्किल है! स्मार्टफोन हमारे जीवन से इतने जुड़ चुके हैं कि उन्हें खुद का एक हिस्सा ही मान लेना गलत नहीं होगा.
सुबह की पहली किरण के साथ आंखें खुलते ही सबसे पहले हाथ मोबाइल फोन की तरफ बढ़ता है. रात को सोने से पहले भी आखिरी नजर मोबाइल स्क्रीन पर ही पड़ती है. आज के समय में मोबाइल फोन मानवीय जीवन का अभिन्न अंग
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अनिल चमड़ियावरिष्ठ पत्रकार
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