केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज नारायण शुक्ला और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ नया केस दर्ज किया है. ये केस 2014 और 2019 के बीच आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में दर्ज हुआ है. सीबीआई की जांच में ये पाया गया कि जस्टिस शुक्ला के काले धन को दो ट्रस्टों, एक संस्था और रियल एस्टेट कंपनियों के जरिए सफेद किया गया.
जस्टिस शुक्ला पर 2.5 करोड़ रुपये से ज्यादा इनकम के कई सबूत हाथ लगे हैं. पूर्व न्यायाधीश ने 1 अप्रैल, 2014 से 6 दिसंबर, 2019 तक 4.07 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित की और खर्च किया. हालांकि, इसी अवधि में आय के सभी ज्ञात स्रोतों से शुक्ला की आय सिर्फ 1.53 करोड़ रुपये थी.
सीबीआई ने कहा कि सबसे पहले लखनऊ के गोल्फ सिटी इलाके में पूर्व न्यायाधीश और उनकी दूसरी पत्नी के घर और अमेठी में उनके बहनोई के आवास पर तलाशी ली गई. मामले की जांच के दौरान शुक्ला के मोबाइल फोन डेटा निकालने से सुचिता तिवारी से उसके संबंध का पता चला. यह सामने आया कि पूर्व न्यायाधीश ने पहली पत्नी सैदीन के नाम पर संपत्ति भी अर्जित की. बता दें कि शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार का ये दूसरा आरोप है.
2021 में शुक्ला के खिलाफ जांच एजेंसी ने लखनऊ के प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (पीआईएमएस) से जुड़े न्यायिक भ्रष्टाचार की जांच में आरोप पत्र दायर किया था.
रिटायर जज ने अपनी पत्नियों के नाम पर कमाया काला धन
सीबीआई ने बुधवार को दर्ज FIR में कहा कि " इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एसएन शुक्ला ने सुचिता तिवारी (उनकी दूसरी पत्नी, जैसा कि सुचिता तिवारी ने सीबीआई अदालत में दायर अपने आवेदन में दावा किया है) और सैदीन तिवारी (शुक्ला की पहली पत्नी ) के नाम पर धोखे से बहुत सारा अवैध धन कमाया .
जांच एजेंसी ने एफआईआर में लिखा है कि अप्रैल 2014 और दिसंबर 2019 के बीच शुक्ला ने कुल 2,54,56,786 रुपये की आय से ज्यादा संपत्ति अर्जित की है. दिलचस्प बात यह है कि पीआईएमएस रिश्वतखोरी कांड भी इसी दौरान हुआ था.
मेडिकल कॉलेज के पक्ष में आदेश पारित करने का है इल्जाम
जुलाई 2020 में रिटायर हुए जज शुक्ला पर लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज के पक्ष में एक आदेश पारित करने के लिए रिश्वत लेने का आरोप है. इस रिश्वतखोरी मामले में शुक्ला के अलावा ओडिशा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आईएम कुद्दुसी, भगवान प्रसाद यादव और प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के पलाश यादव के अलावा एक मध्यस्थ भावना पांडे और एक बिचौलिये सुधीर गिरि पर जांच चल रही थी.
कुल मिलाकर, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले में दो मामले दर्ज किए गए थे . पहला सितंबर 2017 में कुद्दुसी और बिचौलियों के नाम, और दूसरा दिसंबर 2019 में शुक्ला और दूसरे संदिग्धों के नाम.
पीआईएमएस रिश्वतखोरी कांड क्या है
सीबीआई ने 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री नारायण शुक्ला के खिलाफ एक निजी मेडिकल कॉलेज को लेकर कथित तौर पर रिश्वत लेने के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था.
शुक्ला के अलावा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आई एम कुद्दुसी और तीन और व्यक्तियों के खिलाफ भी मामले में आरोपपत्र दाखिल किया गया था. मामले पर सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा था कि, 'प्राथमिकी में जिन आरोपों का जिक्र किया गया है, उनकी पुख्ता सबूतों के जरिए पुष्टि हुई है. इसे लेकर साल 2021 में एजेंसी को शुक्ला के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी.
यह मामला 2017 के एक मामले से जुड़ा है . इसमें जांच एजेंसी ने कुद्दुसी को भी गिरफ्तार किया था. मामला दर्ज करने के समय मौजूदा न्यायाधीश शुक्ला को चार दिसंबर, 2019 को दर्ज प्राथमिकी में छह अन्य लोगों के साथ आरोपी बताया गया .
कुद्दुसी के अलावा उनकी सहयोगी भावना पांडे, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट (पीईटी) की तरफ से संचालित लखनऊ स्थित मेडिकल कॉलेज प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के मालिक बीपी यादव और प्रसाद यादव और मेरठ में वेंकटेश्वर मेडिकल कॉलेज के मालिक सुधीर गिरि आरोपी ठहराए गए थे.
सीबीआई की प्राथमिकी के मुताबिक, प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज उन 46 कॉलेजों में से एक था, जिन्हें सरकार ने 2017 में सुविधाओं की कमी की वजह से छात्रों को प्रवेश देने से रोक दिया था. ये रोक 2 साल के लिए लगी थी.
एमसीआई के फैसले को प्रसाद इंस्टीट्यूट ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. मामले पर सीबीआई ने कहा था कि एक साजिश के तौर पर इस मामले को हाईकोर्ट में पेश किया गया था. सीबीआई ने बताया था कि प्रसाद ट्रस्ट के कुद्दुसी और बीपी यादव ने 25 अगस्त, 2017 की सुबह लखनऊ में जज शुक्ला से उनके आवास पर मुलाकात की थी.
सीबीआई ने आरोप लगाया कि याचिका पर उसी दिन जज एसएन शुक्ला की पीठ ने सुनवाई की थी और उसके पक्ष में आदेश पारित किया. इसके बदले शुक्ला ने रिश्वत ली थी. ये रिश्वत 2 करोड़ की थी.
पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की शिकायत पर शुक्ला के खिलाफ जांच का आदेश दिया था. तीन सदस्यीय समिति में मद्रास उच्च न्यायालय की तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी, सिक्किम उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसके अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पीके जायसवाल शामिल थे.
शुक्ला को जनवरी 2018 में न्यायिक अनियमितताओं का दोषी पाया गया था, जिसके बाद भारत के राष्ट्रपति से उनके महाभियोग की सिफारिश की गई थी.
क्या होता है महाभियोग
महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है. इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है. महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों.
इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के मौजूदा न्यायाधीश शुक्ला को अदालत परिसर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था और उनसे सभी न्यायिक और प्रशासनिक कार्य छीन लिए गए थे.
जुलाई 2019 में पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने सीबीआई को इस मामले में केस दर्ज करने की इजाजत दी थी. गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखकर शुक्ला को हटाने की सिफारिश की थी. शुक्ला आखिरकार जुलाई 2020 में सेवानिवृत्त हुए.
नई जांच में सीबीआई के हाथ क्या लगा
नया मामला आय से ज्यादा संपत्ति का है. जिसमें अभी जांच एजेंसी अमेठी की शिव शक्ति धाम ट्रस्ट, फैजाबाद की अदद्भूत इंडिया अकादमिक फाउंडेशन ट्रस्ट व एंजेल ग्रुप ऑफ एजूकेशन ट्रेनिंग समाज सेवी संस्थान के साथ एसएन शुक्ला के संबधों की पड़ताल कर रही है. पता चला है कि शुक्ला की दो रियल एस्टेट कंपनियों के जरिए कई बेनामी संपत्तियां भी खरीदी थी.
एक नजर में शुक्ला पर लगे आरोपों की फेहरिस्त
- शिव शक्ति धाम ट्रस्ट से लाखों रुपये उनकी दूसरी पत्नी बताई जा रही सुचिता तिवारी को भजे गए.
- फैजाबाद अदद्भूत इंडिया अकादमिक फाउंडेशन ट्रस्ट से शुचिता तिवारी 2015 से 2017 के दौरान 2.84 लाख रूपये दिए गए.
- एंजेल ग्रुप ने भी 2015 से 2020 के दौरान शुचिता को 8, 62, 362 रुपये दिए.
- सीबीआई को शक है कि रकम शुक्ला की अवैध तरीके से कमाई गई रकम थी.