किन्नरों से सामाजिक भेदभाव का मामला, SC ने ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड के गठन पर केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब
वकील ने कहा कि किन्नरों से जुड़े मसलों को देखने के लिए हर राज्य में ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड के गठन से बड़ी मदद मिल सकती है. उन्होंने बताया कि विधानसभा को इस तरह के बोर्ड के गठन का कानून बनाने की शक्ति हासिल है.
नई दिल्ली: किन्नरों से सामाजिक भेदभाव और उनके उत्पीड़न का मसला उठाने वाली एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है. याचिका में मांग की गई है कि किन्नर समुदाय की समस्याओं को देखने के लिए कोर्ट सरकार को किन्नर वेलफेयर बोर्ड बनाने का आदेश दे.
किन्नर मां एकसामाजिक संस्था ट्रस्ट नाम की संगठन की तरफ से दाखिल याचिका में किन्नर वर्ग से जुड़ी कई समस्याओं को उठाया गया है. याचिकाकर्ता संगठन ने कहा है कि स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी तमाम सुविधाएं किन्नरों को आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं. उनके शोषण और यौन उत्पीड़न की घटनाओं को पुलिस गंभीरता से नहीं लेती. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद किन्नरों को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण नहीं दिया.
मामला आज चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगा. चीफ जस्टिस ने माना कि विषय संवेदनशील है. उन्होंने कहा, "मामला निश्चित रूप से संवेदनशील है. लेकिन क्या संसद ने किन्नर वर्ग की समस्याओं के समाधान के लिए एक कानून नहीं बना दिया है?" संगठन के वकील ने जवाब दिया कि संसद ने 2019 में 'द ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट बनाया है. लेकिन इसमें किन्नरों के संरक्षण के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किए गए हैं.
वकील ने कहा कि किन्नरों से जुड़े मसलों को देखने के लिए हर राज्य में ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड के गठन से बड़ी मदद मिल सकती है. उन्होंने बताया कि विधानसभा को इस तरह के बोर्ड के गठन का कानून बनाने की शक्ति हासिल है. तमिलनाडु, असम और यूपी ने इस तरह के बोर्ड का गठन किया है. इस दलील के बाद कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी कर दिया.