नई संसद के पहले दिन 19 सितंबर को सभी सांसदों को भारत के संविधान की कॉपी गिफ्ट में दी गई. इसके बाद एक विवाद शुरू हो गया है. कांग्रेस इस बात पर बवाल मचा रही है कि संविधान की जो कॉपी दी गई, उसकी प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष (Secular) और समाजवाद (Socialism) शब्द गायब हैं. विवाद की शुरुआत कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी से हुई. इसके बाद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता विनय विश्वम समेत कई नेताओं ने भी इस पर आपत्ति जताई. इस बीच सरकार की तरफ से कहा गया कि सांसदों को संविधान की ऑरिजनल कॉपी दी गई थी.


कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कॉपी में संविधान की प्रस्तावना का मूल संस्करण है. उन्होंने कहा कि संविधान में इन शब्दों को बाद में जोड़ा गया था, ये पहले से उसमें मौजूद नहीं थे और सांसदों को संशोधन से पहले की यानि संविधान की ऑरिजनल कॉपी दी गई. हालांकि, विपक्ष अपनी बात पर अड़ा है और अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना की जो प्रति हम नए भवन में ले गए, उसमें धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द शामिल नहीं हैं. उन्हें चतुराई से हटा दिया गया है... यह एक गंभीर मामला है और हम इस मुद्दे को उठाएंगे.


संविधान और प्रस्तावना में संशोधन का प्रावधान
प्रस्तावना संविधान के दर्शन और उद्देश्य को दर्शाती है. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में संविधान को स्वीकार किया गया था. संविधान और इसकी प्रस्तावना में संशोधन का प्रावधान है, जिसके तहत संविधान में 100 से ज्यादा बार संशोधन किया जा चुका है. सरकार की ओर से महिला आरक्षण के लिए पेश किए गए नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल को लागू करने के लिए 128वां संशोधन किया जाएगा. बुधवार को लोकसभा में बिल पास हो चुका है और अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा. दोनों सदनों में पास होते ही 128वें संशोधन के बाद कानून बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. वहीं, संविधान के प्रस्तावना में सिर्फ 1 बार इमरजेंसी के दौरान संशोधन किया गया था.


पंथनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द संविधान में कब जोड़े गए
1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में संविधान के प्रस्तावना में यह संशोधन हुआ था और इसमें पंथनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को जोड़ा गया. इसके लिए 42वां संशोधन किया गया था. संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ने का मकसद देश में विभिन्न धार्मिक समुदायों में एकता को बढ़ाना था ताकि सभी धर्मों के साथ एक समान व्यवहार किया जाए और किसी विशेष धर्म का पक्ष न लिया जाए. समाजवाद के प्रति इंदिरा गांधी की प्रतिबद्धता के लिए संविधान में इस शब्द को जोड़ा गया था.


सेक्युलर और सोशलिज्म शब्दों को संविधान से हटाए जाने की उठती रही है मांग
संविधान में जोड़े गए इन शब्दों को लेकर इंदिरा गांधी की मंशा पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं. कई लोगों का ऐसा मानना है कि इंदिरा ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए पंथनिरपेक्ष और समाजवाद शब्दों को संविधान में जोड़ा था. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर संविधान से ये शब्द हटाने की मांग की थी. विरोधियों का कहना है कि इंदिरा गांधी सरकार ने वामपंथी ताकतों और रूस को रिझाने के लिए प्रस्तावना में समाजवाद शब्द जुड़वाया था. प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाए जाने के लिए यह भी दलील दी जाती है कि संविधानसभा ने इसकी जरूरत महसूस नहीं की थी. साल 2020 में बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा प्रस्तावना से समाजवाद शब्द हटाने के लिए प्रस्ताव लेकर आए थे.


प्रस्तावना का मतलब क्या होता है?
प्रस्तावना किसी भी दस्तावेज का प्रतिबिंब होता है. पूरे दस्तावेज में किस-किस चीज के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है, उसको संक्षिप्त रूप में दिखाना ही प्रस्तावना होता है. यह एक दस्तावेज के परिचय के रूप में काम करता है, जिसमें दस्तावेज के मूल सिद्धांत और लक्ष्य शामिल होते हैं. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को उद्देश्य प्रस्ताव से लिया गया है, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को संसदसभा में पेश किया था. भारतीय संविधान की प्रस्तावना दर्शाती है कि उसमें संविधान के बारे में सबकुछ मौजूद है. देश के नागरिकों के क्या-क्या अधिकार हैं, क्या कानून हैं और उन्हें क्या-क्या स्वतंत्रता और कौन-कौन सी समानता भारत में दी गई है, इसका जिक्र प्रस्तावना में शामिल है. इस वजह से प्रस्तावना को भारत के संविधान की आत्मा कहा जाता है.


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