आतंकवाद पर पाकिस्तान की आर्थिक नाकेबंदी, एफएटीएफ की बैठक पेरिस में शुरू
आतंकवादियों को पनाह देने और आतंक के खिलाफ लड़ाई में दोगलेपन को लेकर बेनकाब हो रहे पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का शिकंजा कसता जा रहा है.
नई दिल्ली: आतंकवादियों को पनाह देने और आतंक के खिलाफ लड़ाई में दोगलेपन को लेकर बेनकाब हो रहे पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई का शिकंजा कसता जा रहा है. दुनिया भर में आतंकवाद की आर्थिक रसद रोकने के लिए बनी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की अहम बैठक पेरिस में शुरु हुई जिसके एजेंडा में पाकिस्तान को निगरानी सूची में डालना भी है.
पाकिस्तान को ग्रे वॉच लिस्ट में डालने को लेकर अमेरिका एक प्रस्ताव इस छह दिनी बैठक से पहले ही एफएटीएफ में दे चुका है. इस प्रस्ताव पर ब्रिटेन और फ्रांस और जर्मनी भी उसके साथ हैं. किसी भी देश का नाम ग्रे-वॉच लिस्ट में तब डाला जाता है जब उसके द्वारा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के वादे पूरे ना किए जा रहे हों.
महत्वपूर्ण है कि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की परीक्षा में पाकिस्तान के खराब रिपोर्ट कार्ड पर खफा अमेरिका अपने स्तर पर उसकी आर्थिक और सैन्य मदद पहले ही रोक चुका है. इस साल के अपने पहले ट्वीट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान को धोखेबाज तक कह डाला था.
अमेरिका की तरफ से एफएटीएफ में रखे गए प्रस्ताव को पाकिस्तान को सबक सिखाने की कड़ी में उठाया गया कदम माना जा रहा है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय प्रवक्ता हीदर नुअर्ट ने कहा था कि अमेरिका लगातार आतंकवाद के आर्थिक स्रोत बंद करने को लेकर पाकिस्तान की कार्रवाई में कमी का मुद्दा उठाता रहा है. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267 पर पर्याप्त कदम न उठाए जाने का भी मामला है.
सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान के खिलाफ इस प्रस्ताव पर भारतीय खेमा भी नजरें जमाए है. भारत एफएटीएफ का सदस्य है और मतदान की नौबत आने पर वो भी अमेरिका समेत उन सभी देशों के साथ प्रस्ताव के समर्थन में मत देगा जो पाकिस्तान को ग्रे-वॉच लिस्ट में डाने जाने के पक्ष में हैं. इसके अलावा भारत की कोशिश इस प्रस्ताव को अधिकाधिक समर्थन दिलाने की भी होगी.
निगरानी सूची में डला नाम तो बढ़ेंगी मुश्किलें
अमेरिकी प्रस्ताव और एफएटीएफ की संभावित कार्रवाई को लेकर पाकिस्तान में खासी घबराहट है. क्योंकि अगर 35 सदस्य देशों वाली संस्था एफएटीएफ ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाला तो उसके उसकी पहले से खस्ताहाल अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी. निगरानी सूची में डाले जाने पर पाकिस्तान के लिए आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं से आर्थिक मदद हासिल करना भी मुश्किल हो सकता है. इसके अलावा उसके लिए निवेश जुटाने की मुश्किलें भी बढ़ जाएंगी.
इस बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने बीते हफ्ते अपने आर्थिक सलाहकार मिफ्ताफ इस्माइल को अमेरिकी प्रस्ताव से बचने और पक्ष में लामबंधी के लिए जर्मनी, नीदरलैंड व बेल्जियम भेजा था. पाकिस्तान के ऊर्जा मंत्री अवैस लेघारी भी इस कड़ी में मलेशिया का दौरा किया था. इसके अलावा पाकिस्तान सरकार अमेरिका और ब्रिटेन से भी इस प्रस्ताव से नाम हटवाने को लेकर कोशिश में जुटी है. बचाव की कवायद में ही पाक ने गत सप्ताह अपने आतंक निरोधक कानून में संशोधन कर आतंकी हाफिज सईद और उसके संगठनों के खिलाफ कार्रवाई का दिखावा भी किया.
केवल चीन का सहारा एफएटीएफ में पेश होने वाले प्रस्ताव के विरोध को लेकर पाकिस्तान को सबसे ज्यादा भरोसा अपने हर-मौसम दोस्त चीन पर है. उम्मीद की जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का सबसे बड़ा हिमायती बनकर खड़े होने वाला चीन बैठक में पाक को ग्रे-वॉच लिस्ट में डाले जाने का विरोध कर सकता है.
क्या है एफएटीएफ एफएटीएफ एक अंतर-सरकारी संस्था है जिसे 1989 में जी-7 मुल्कों द्वारा बनाया गया था जिसका उद्द्ेश्य आतंकवाद के आर्थिक स्रोतों को बंद करना और मनी-लॉड्रिंग की नकेल कसना है. एफएटीएफ में 35 देशों के साथ ही दो क्षेत्रीय वित्तीय संगठन भी हैं. इसके अलावा विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष. एशियाई विकास बैंक जैसी अनेक संस्थाएं एफएटीएफ में पर्यवेक्षक हैं.