(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
दिल्ली: रैन बसेरे में जाने से डर रहे हैं कुछ प्रवासी, सरकार को विश्वास दिलाने की है जरूरत
दिल्ली में रैन बसेरे में जाने से कुछ प्रवासी डर रहे हैं.सरकार को इन प्रवासियों को विश्वास दिलाने की जरूरत है.
नई दिल्ली: सोशल डिस्टेंसिंग की अहमियत पर गौर करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दोनों ने ही प्रवासियों से निवेदन किया था की कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए पलायन का सिलसिला रोक दें जहां हैं कृपया उधर ही रहें. पलायन पर रोक लगाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के अन्य स्कूलों और सार्वजनिक जगहों को रैन बसेरों में तब्दील करने की बात की.
गाजीपुर का बाल सर्वोदय विद्यालय उन अन्य स्कूलों में से एक है जहां दिल्ली सरकार ने पलायन कर रहे प्रवासियों के लिए इंतजाम किए हैं. पुलिस अन्य जगहों से पैदल चल रहे प्रवासियों को बसों में लाकर रैन बसेरों में ले जाने का काम कल से ही करने लगी है. लेकिन प्रवासियों में कई लोग ऐसे भी मिले जो रैन बसेरा जाने से कतरा रहे हैं.
पुलिस के अधिकारी और सिविल डिफेंस के बार-बार कहने पर भी कई लोग अडिग रहे. जब एबीपी न्यूज़ की टीम ने ऐसे ही कुछ लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें लॉकडाउन की कोई जानकारी नहीं थी. वह पास की ही जगहों से आए हैं और चलकर अपने-अपने घर जाना चाहते हैं. उनसे इसका कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि वह डर रहे हैं.
रैन बसरों में मिल रहा है तीन वक्त का खाना
इन लोगों में दिल्ली झांसी, और अन्य जगहों में काम कर रहे प्रवासी शामिल थे. लोगों का डर अपने आप में दर्शाता है की इतने नाजुक समय मे सरकार के लिए देशवासियों को विश्वास दिलाना कितना ही जरूरी है, जिसकी अभी लोगों में कमी नजर आ रही है. यह विश्वास सरकार की अच्छी नीतियों और कार्यों से ही हासिल हो पायेगा. दूसरी ओर वह लोग जिन्होंने देश मे लॉकडाउन की स्थिति को समझते हुए रैन बसेरों में रहने का फैसला किया उनसे बात करने पर हमने पाया कि रैन बसेरों में तीन वक्त का खाना दिया जा रहा है. चिकित्सा की व्यवस्था की गई है और सोने के लिए बिस्तर भी दिया गया है.
डॉक्टर्स लगा रहे हैं रैन बसेरों में राउंड
हरदोई के लिए अपने पति और डेढ़ साल की बेटी के साथ बस की खोज में निकली पूजा का कहना है की रैन बसेरों में तीन वक्त का खाना मिल रहा है. खाने में केले, बिस्कुट, चाय, आलू-पूरी जैसी चीजें दी जा रही हैं. डॉक्टर भी राउंड पर हैं. उन्होंने आकर सबका जाएजा लिया और हिदायत दी कि अगर किसी भी व्यक्ति में खासी जुखाम जैसे लक्षण दिखाई दें तो फौरन ही उन्हें बताएं. इस दौरान रैन बसेरे में रह रही पूजा ने बताया की उसकी डेढ़ साल की बेटी के लिए अभी तक दूध नहीं मिला है लेकिन उन्हें बताया गया कि व्यवस्था की जा रही है. पूजा कहती हैं, " घर से बाहर इसीलिए निकली थी क्योंकि मेरे पति सिलाई का काम करते हैं, लॉकडाउन के बाद कमाई नहीं हो रही थी इसीलिए हम गांव जा रहे थे. बस नहीं मिली इसीलिए यहां आ गए. जो लोग रैन बसेरे में आने से डर रहे हैं उन्हें डरना नहीं चाहिए. ''
कुछ रैन बसेरों में है कमी
जब हम गाजीपुर रैन बसेरे में गए तो खामियों से हमारा सामना जरूर हुआ. जैसे शौचालय में कई घंटे से बिना पानी के नल, नहाने के साबुनों की कमी, साफ सफाई में सुधार की कई गुंजाइशें आदि. हालांकि यह कहना भी गलत नही होगा कि महामारी के संकट ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है और इस संकट से जूझने के लिए सरकार प्रयास कर रही है.
यह भी सही है कि पलायन कर रहे प्रवासी काम की कमी के कारण, भूख और अनिश्चित भविष्य के भय से अपने गांवों की और प्रस्थान करने लगे थे. लेकिन इस संकट की घड़ी में नागरिकों को अब अपनी जिम्मेदारी समझने की जरूरत है.
ये भी पढ़ें-
वनडे में सेलेक्टर्स ने मेरा अच्छा इस्तेमाल नहीं किया: उमेश यादव
Lockdown: फरवरी से खत्म हो रहे ड्राइविंग लाइसेंस की वैलिडिटी जून अंत तक बढ़ाई गई, लोगों को राहत