नई दिल्ली: साल 2014 में दिल्ली में सत्ता का जो परिवर्तन हुआ और इन बीते चार सालों में केंद्र सरकार के शासन-प्रशासन की जो शैली रही है, उससे कांग्रेस के सीनियर लीडर और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद बेहद दुखी नजर आते हैं. बुधवार को गुलाम नबी लखनऊ में थे और यहीं उन्होंने अपना दर्द-ए-दिल बयान किया.
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता की शिकायत है कि अब वक्त बदल गया है और उन्हें अपने कार्यक्रम में बुलाने वाले हिंदू भाइयों और नेताओं की संख्या घट गई है. गुलाम नबी आजाद अपना दर्द कुछ यूं बयान करते हैं. वो कहते हैं, ''बीते चार सालों में मैंने पाया है कि अपने कार्यक्रमों में बुलाने वाले जो 95 फीसदी हिंदू भाई और नेता हुआ करते थे, अब उनकी संख्या घटकर महज 20 फीसदी रह गई है."
गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि वो जब यूथ कांग्रेस में थे, तब से ही अंडमान-निकोबार से लेकर लक्षद्वीप तक, देशभर के कोने-कोने में कैंपेन के लिए जाते रहे हैं और उन्हें बुलाने वालों में 95 फीसदी हिंदू भाई और नेता हुआ करते थे, जबकि सिर्फ 5 फीसदी ही मुसलमान उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाया करते थे.
अपना दुख व्यक्त करते हुए राज्यसभा में विपक्ष के नेता आजाद कहते हैं कि ऐसा होना ये बताता है कि कुछ गलत हो रहा है. वो कहते हैं, ''आज मुझे बुलाने से आदमी डरता है कि इसका वोटर पर क्या असर होगा?''
दरअसल, गुलाम नबी आजाद ने अपने बयान से उस सोच को बल देने की कोशिश की है कि केंद्र की मोदी सरकार के दौर में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ी हैं और सांप्रदायिक माहौल खराब हुए हैं. विपक्ष का आरोप है कि जब से मोदी सरकार आई है, तब से लव-जेहाद, गोरक्षा, असहिष्णुता और मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दे पर लोगों के बीच बहसें और नफरतें बढ़ी हैं.