नई दिल्ली: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी का सोमवार की सुबह कोलकाता में निधन हो गया. वयोवृद्ध नेता के चले जाने से आज राजनीति की दुनिया गमगीन है. क्या पक्ष, क्या विपक्ष, विरोधी... सब की आंखें नम है. माहौल में एक अजब से ही उदासी है. एक मनहूस सन्नाटा है.


विचारधारा की दीवारों को चीड़ती उदासी और मायूसी का पसरना, दरअसल सोमनाथ चटर्जी की शख्सियत की एक बानगी है. बात साल 2008 की है जब सोमनाथ चटर्जी ने अपनी विचारधारा से उठकर फैसला लेते हुए सभी को चौंका दिया था.


साल 2004 में लोकसभा चुनाव में वाजपेयी सरकार ही हार के साथ ही यूपीए बना और कांग्रेस सत्ता में आई. गठबंधन सरकार में कांग्रेस के बाद लेफ्ट सबसे बड़े घटक के तौर पर सरकार में शामिल हुआ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने और सोमनाथ चटर्जी जिन्हें बंगाल के लोग सोमनाथ दा बुलाते थे उन्हें लोकसभा का अध्यक्ष सर्वसम्मती से चुना गया.


सोमनाथ दा पर था इस्तीफे का दबाव


चार साल तक सब ठीक ठाक रहा, लेकिन 2008 आते-आते लेफ्ट और कांग्रेस के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर मतभेद उभरने लगे और मतभेद इतने बढ़े कि लेफ्ट सरकार से अलग हो गया, तब सोमनाथ दा पर भी इस्तीफे का दबाव था, लेकिन उन्होंने पार्टी के फैसले को दरकिनार करते हुए अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया.


अपने फैसले पर अंत कर अड़े रहे सोमनाथ चटर्जी


सोमनाथ चटर्जी ने साफ किया कि वो लोकसभा के स्पीकर पहले हैं बाद में किसी पार्टी के स्दस्य. ऐसे में उन्होंने इस बात का एलान कर दिया कि वो अपने पद से इस्तीफा नहीं देगें पार्टी चाहे तो उन्हें निकाल सकती है. हुआ भी ठीक ऐसा ही, सीपीएम ने अपने सांसद सोमनाथ चटर्जी को पार्टी से निकाल दिया. लेकिन सोमनाथ चटर्जी अपने फैसले पर अंत कर अड़े रहे और उन्होंने अपना कर्याकल 2009 तक पूरा किया.


सुमित्रा महाजन की आंखें  सोमनाथ को याद करते हुई नम


तब 10 बार के सांसद सोनाथ ने ये भी एलान कर दिया कि वो अब अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे. और आखिरी दम तक अपने फैसले पर अटल रहे. आज जब वो गए तो अपने ही क्या अपने विरोधियों को भी रुला गए. लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने जब सोमनाथ को याद किया तो आंखें नम हो गई.