Success Story: कभी घर के खटाल में गोबर उठाती थी, अब जज बनकर दूधवाले की बेटी ने किया नाम रोशन
राजस्थान में एक दूधवाले की बेटी ने न्यायिक सेवा की परीक्षा पास कर कामयाबी की इबारत लिखी है. उन्होंने अनुशासन, कड़ी लगन और जज्बे के बल पर मंजिल की राह में बननेवाली रुकावटों को पार किया.
जिंदगी में जज्बा, सख्त मेहनत और अनुशासन से असंभव को संभव बनाया जा सकता है. इसे साबित किया है राजस्थान के दूधवाले की एक बेटी ने. 26 वर्षीय सोनल शर्मा राजस्थान न्यायिक सेवा की परीक्षा पास कर जज बनने जा रही हैं. 2017 में न्यायिक सेवा की भर्ती परीक्षा में मात्र तीन नंबरों से असफल रहीं सोनल ने हौसला नहीं छोड़ा. एक साल बाद फिर उन्होंने दूसरी बार परीक्षा दी मगर एक नंबर से पिछड़ गईं. आगे उनकी जिंदगी में किसी चमत्कार से कम नहीं हुआ.
दूधवाले की बेटी राजस्थान न्यायिक सेवा में चयनित
उन्होंने अपनी कामयाबी की कहानी के संघर्षों को बीबीसी से साझा करते हुए कहा, "मैंने पिता को लोगों से डांट खाते सुना है. गली-गली कचरा उठाते देखा है, हम भाई-बहनों की अच्छी पढ़ाई के लिए हर जगह अपमानित होते देखा. स्कूल के दिनों में शर्म आती थी बताने में कि हमारे पिता दूध बेचते हैं, लेकिन आज मुझे गर्व हो रहा है कि मैं इस परिवार की बेटी हूं." उदयपुर की सोनल ने राह में आई तमाम बाधाओं को पार करते हुए एलएलबी और एलएलएम की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर एक साल ट्रेनिंग की. उनकी तैनाती बतौर फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के राजस्थान के सेशंस कोर्ट में होने जा रही है.
परीक्षा के नतीजे 2019 के दिसंबर में एलान किए गए थे लेकिन सामान्य कैटेगरी में एक नंबर कम होने की वजह से सोनल का नाम वेटिंग लिस्ट में चला गया. मात्र एक अंक से चूक जाना किसी के भी हौसला को तोड़ने के लिए काफी था. लेकिन उनकी किस्मत ने उस वक्त साथ दिया जब चयनित कुछ उम्मीदवारों ने न्यायिक सेवा में शामिल नहीं हुए. इस तरह वेटिंग लिस्ट से उनके चयन का रास्ता साफ हुआ. सरकार ने आदेश दिया कि वेटिंग लिस्ट से भर्ती को पूरा किया जाए.
मंजिल की राह में आनेवाली बाधाओं को किया पार
क्लास शुरू होने से पहले सोनल साइकिल चलाकर अपने कॉलेज जाया करती थीं और लाइब्रेरी में पढ़ती थीं. इतना ही नहीं, उन्होंने खाली तेल के डिब्बे से टेबल बनाकर पढ़ाई में मदद हासिल की. उन्होंने बीबीसी को बताया, "ज्यादातर समय मेरे चप्पल गाय के गोबर से सने रहते थे. चौथी क्लास में सभी बच्चों की तरह मुझे भी पिता के साथ घूमने का शौक हुआ. उनके साथ दूध पहुंचाने मैं भी साथ जाने लगी. अक्सर लोग पापा को किसी न किसी बात पर डांट दिया करते थे, उन्हें अपमानित करते थे, लेकिन उनका जवाब हमेशा में मुस्कुराहट में रहता.
एक दिन पापा के साथ दूध देकर घर लौटते ही मैंने मम्मी को कहा, "मैं अब पापा के साथ नहीं जाउंगी क्योंकि मुझे शर्म आती है." शर्म इसलिए थी क्योंकि हमारे लिए पापा को बिना क़ुसूर भला बुरा सुनने को मिलता था. लेकिन, आज उनकी तपस्या पूरी हुई. पापा को मुश्किलों से भी मुस्कुराते हुए लड़ते देख हौसला बढ़ता रहा."
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