Sonam Wangchuk Fast: लद्दाख में 21 दिन से भूख हड़ताल क्यों कर रहे सोनम वांगचुक, सरकार का क्या है रिएक्शन
Climate Fast: लद्दाख को राज्य का दर्जा दिए जाने और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग जोर पकड़ रही है. इसके लिए जलवायु कार्यकर्ता और स्थानीय संगठन मुहिम चला रहे हैं.
Sonam Wangchuk Climate Fast: एक तरफ देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सरगर्मी है तो दूसरी ओर लद्दाख में इस केंद्र शासित प्रदेश को राज्य का दिए जाने और छठी अनुसूची शामिल करने समेत कुछ मांगें जोर पकड़ रही हैं.
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लद्दाख के संबंध में अपनी मांगों को लेकर कई दिनों से लेह में भूख हड़ताल कर रहे हैं, जिसे उन्होंने क्लाइमेट फास्ट (जलवायु उपवास) नाम दिया है. उनके समर्थन में सैकड़ों लोग देखे जा रहे हैं.
मंगलवार (26 मार्च) को सोनम वांगचुक के अनशन का 21वां दिन है. जब 6 मार्च को उन्होंने अनशन शुरू किया था तो कहा था कि देश में चुनाव के कारण वह इसे 21-21 दिन के चरणों में करेंगे, जब तक सरकार लद्दाख की आवाज नहीं सुनती है.
वहीं, रविवार (24 मार्च) को करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) ने भी कारगिल के हुसैनी पार्क में तीन दिवसीय भूख हड़ताल शुरू की थी, जो मंगलवार शाम को समाप्त होगी. सोनम वांगचुक ने अपनी मुहिम को लेकर ताजा अपडेट देते हुए कहा है कि अभी तक सरकार की ओर से एक शब्द भी नहीं आया है.
सोनम वांगचुक के मुताबिक, 20 दिनों में लेह और कारगिल में लगभग 60 हजार लोग अनशन पर बैठे, जबकि लद्दाख की आबादी तीन लाख की है. उन्होंने कहा कि आप समझ सकते हैं कि संरक्षण और लोकतंत्र के इन मुद्दों पर लोगों में कितनी पीड़ा है.
सोमवार (25 मार्च) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जारी किए अपने वीडियो संदेश में सोनम वांगचुक ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान लद्दाख के लिए जारी किए गए बीजेपी के घोषणापत्र की तस्वीर भी साझा की. इसमें उन्होंने छठी अनुसूची के वादे को अंडरलाइन करते हुए दिखाया. उन्होंने लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद चुनाव 2020 के बीजेपी के घोषणापत्र को भी दिखाया, जिसमें छठी अनुसूची का वादा दिख रहा है.
आइये विस्तार से जानते हैं कि आखिर लद्दाख को लेकर सोनम वांगचुक और विरोध प्रदर्शन में शामिल संगठनों की क्या मागें हैं और सरकार का इस पर क्या प्रतिक्रिया है.
लद्दाख को लेकर क्या मांग कर रहे सोनम वांगचुक?
सोनम वांगचुक की मांग है कि लद्दाख को राज्य का दर्जा मिले और साथ ही इसे छठी अनुसूचि में शामिल किया जाए. वह लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीटों की मांग कर रहे हैं. उनकी मांग है कि लद्दाख में विशेष भूमि और स्थानीय लोगों को नौकरी का अधिकार मिले. वह पब्लिक सर्विस कमीशन की स्थापना की भी मांग कर रहे हैं.
उन्होंने वर्तमान में केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति के तहत होने वाले औद्योगिक शोषण के कारण लद्दाख के पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता पर चिंताएं व्यक्त की हैं.
बता दें कि एबीपी नेटवर्क के प्रमुख कार्यक्रम 'आइडियाज ऑफ इंडिया समिट 3.0' के पहले दिन सोनम वांगचुक ने पहाड़ों में खनन के खतरों के बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था कि प्रदूषण के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से पहाड़ों ही नहीं, बल्कि बड़े शहरों में भी लोगों का जीवन कठिन हो जाएगा क्योंकि दो अरब लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिमालय और हिंदू कुश के ग्लेशियरों पर रहते हैं.
उन्होंने कहा था कि जलस्रोतों की पवित्रता बनाए रखी जानी चाहिए. उन्होंने लोगों से अपील की थी कि बड़े शहरों में सरलता से जीवन जिएं ताकि पहाड़ों में भी लोग सरल जीवन जी सकें.
क्या है छठी अनुसूची, जिसमें लद्दाख को शामिल करने की उठ रही मांग
केद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था. लद्दाख को बिना विधायिका के केंद्र शासित प्रदेश के रूप में मान्यता दी गई है. नई दिल्ली और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की अपनी विधान सभाएं हैं.
लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही स्थानीय संगठनों ने मांग उठाई थी कि लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत शामिल किया जाए. इस अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान शामिल हैं.
अगर छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल किया जाता है तो उसे स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद (एडीसी और एआरसी) बनाने की अनुमति मिलेगी, जो जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन करने की शक्ति के साथ निर्वाचित निकाय होते हैं. इसमें वन प्रबंधन, कृषि, गांवों और कस्बों का प्रशासन, विरासत, विवाह, तलाक और सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे विषयों पर कानून बनाने की शक्ति शामिल होगी.
लद्दाख में ज्यादातर आबादी अनुसूचित जनजाति की है. एडीसी और एआरसी अनुसूचित जनजातियों के पक्षों के बीच विवादों का फैसला करने के लिए ग्राम परिषदों या अदालतों का भी गठन कर सकते हैं और उनकी ओर से बनाए गए कानूनों के प्रशासन की निगरानी के लिए अधिकारियों की नियुक्ति कर सकते हैं. ऐसे मामलों में जहां अपराध मौत की सजा या पांच साल से ज्यादा कारावास से दंडनीय हैं, राज्य के राज्यपाल एडीसी और एआरसी को देश के आपराधिक और नागरिक कानूनों के तहत मुकदमा चलाने की शक्ति प्रदान कर सकते हैं.
छठी अनुसूची एआरसी और एडीसी को भूमि राजस्व एकत्र करने, कर लगाने, धन उधार देने और व्यापार को रेगुलेट करने, अपने क्षेत्रों में खनिजों के निकास के लिए लाइसेंस या पट्टों से रॉयल्टी एकत्र करने और स्कूलों, बाजारों और सड़कों जैसी सार्वजनिक सुविधाएं स्थापित करने की शक्ति भी देती है.
सरकार की क्या प्रतिक्रिया है?
केंद्र सरकार ने लद्दाख की मांगों को संबोधित करने के लिए राज्य मंत्री (गृह मामले) नित्यानंद राय के नेतृत्व में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से एपेक्स बॉडी, लेह (एबीएल) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने 4 मार्च नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी.
गृह मंत्रालय ने अपने बयान में कहा था कि बैठक सौहार्दपूर्ण तरीके से हुई और लद्दाख के लोगों के लाभ के लिए भूमि, रोजगार और संवैधानिक सुरक्षा उपायों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर प्रगति हुई.
गृह मंत्रालय ने कहा था कि गृह मंत्री ने आश्वासन दिया कि एबीएल और केडीए की मांगों पर विचार करने के लिए लद्दाख को लेकर गठित पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति ऐसे संवैधानिक सुरक्षा उपाय प्रदान करने के तौर-तरीकों पर चर्चा कर रही है.
गृह मंत्रालय के मुताबिक, गृह मंत्री ने कहा था कि इस उच्चाधिकार प्राप्त समिति के माध्यम से स्थापित सलाहकार तंत्र को क्षेत्र की अनूठी संस्कृति और भाषा की रक्षा के उपाय, भूमि और रोजगार की सुरक्षा, समावेशी विकास और रोजगार सृजन, एलएएचडीसी का सशक्तिकरण और सकारात्मक परिणामों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की जांच जैसे मुद्दों पर संलग्न रहना जारी रखना चाहिए.
इससे पहले 24 फरवरी को लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के प्रतिनिधियों ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक की थी.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन चर्चाओं के दौरान, लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने संयुक्त रूप से लद्दाख को राज्य का दर्जा देने, आदिवासी दर्जा प्रदान करने के लिए इसे छठी अनुसूची में शामिल करने, स्थानीय निवासियों के लिए नौकरी में आरक्षण और लेह और कारगिल के लिए संसदीय सीटों के आवंटन के लिए जोर दिया था.
बीजेपी के पूर्व सांसद थुपस्तान छेवांग एलबीए के प्रमुख के रूप में भी कार्यरत हैं. उन्होंने क्षेत्र के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की वकालत करते हुए इन संवादों का नेतृत्व किया.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, रविवार (24 मार्च) को केडीए के सह-अध्यक्ष असगर अली करबलाई ने कहा था कि दुर्भाग्य से गृह मंत्रालय के साथ पांच दौर की बातचीत के बाद केंद्रीय गृहमंत्री (अमित शाह) ने चार मार्च को बताया था कि उन्हें कुछ संवैधानिक सुरक्षा उपाय दिए जाएंगे, लेकिन राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची का लाभ नहीं दिया जाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दिनों लद्दाख के प्रतिनिधियों के साथ बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस क्षेत्र में अनुच्छेद 371 जैसी सुरक्षा बढ़ाने की पेशकश की थी.
कथित तौर पर गृह मंत्री शाह ने लद्दाख प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया था कि सरकार पहाड़ी परिषदों के माध्यम से स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करेगी और सार्वजनिक रोजगार में 80 फीसद तक आरक्षण प्रदान करने को तैयार है.
अनुच्छेद 371 से क्या सुविधा मिलेगी?
अनुच्छेद 371 और 371-A से लेकर J में विशिष्ट राज्यों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जो अक्सर कुछ धार्मिक और सामाजिक समूहों को प्रतिनिधित्व देने के लिए और इन समूहों को राज्य और केंद्र सरकारों के हस्तक्षेप के बिना अपने मामलों पर स्वायत्तता का प्रयोग करने की अनुमति देते हैं.
छठी अनुसूची के तहत एडीसी और एआरसी को प्रदान की जाने वाली व्यापक स्वायत्तता में कमी करते हुए अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान लद्दाख की स्थानीय आबादी के लिए सुरक्षा बढ़ाने की अनुमति देंगे.
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