नई दिल्ली: कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म मानने की सिफारिश की है. बीजेपी ने इस फैसले का विरोध करते हुए वोटों के लिए बंटवारे का आरोप लगाया है. वहीं शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने केदारनाथ मंदिर से लिंगायत पुजारियों को हटाए जाने की बात कही है.


इस बीच गृहमंत्रालय के बड़े अधिकारी ने खुलासा किया है कि लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने के बारे में कर्नाटक का प्रस्ताव अभी केंद्र को नहीं मिला है. अधिकारी के मुताबिक प्रस्ताव मिलने के बाद होगा इस पर विचार होगा, तत्काल कोई फैसला संभव नहीं है.


अधिकारी ने ये भी बताया कि ऐसे किसी प्रस्ताव को मंजूरी देने का अधिकार गृहमंत्रालय मंत्रालय को नहीं है. प्रस्ताव मिलने पर सरकार लंबी कानूनी प्रक्रिया का पालन करेगी.


अधिकारी के मुताबिक प्रक्रिया के तहत गृहमंत्रालय प्रस्ताव को रजिस्ट्रार जनरल और जनसंख्या कमिश्नर को भेजेगी. वहां क़ानून के मुताबिक फैसला होगा जिसमें राज्य के प्रस्ताव पर पहले लिए गए फैसले को आधार बना कर फैसला होगा.


कर्नाटक में लिंगायत का बड़ा असर
राज्य में लिंगायत समुदाय की आबादी करीब 17 फीसदी है. राज्य की 56 विधानसभा सीटों पर लिंगायत का असर माना जाता है. इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी ख़ासी आबादी है.


कर्नाटक में लिंगायत को बीजेपी का बड़ा वोट बैंक माना जाता है. बीजेपी के सीएम कैंडिडेट येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय के हैं. 2008 में बीजेपी की जीत में लिगायत समुदाय का बड़ा योगदान था. लिंगायत वोट के दम पर ही दक्षिण भारत में बीजेपी की पहली सरकार बनी.


जानकारों के मुताबिक अब कांग्रेस ने लिंगायत कार्ड खेलकर बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. बीजेपी को ये डर सता रहा होगा कि कहीं लिंगायत वोटर कांग्रेस के पाले में ना चले जाएं. कांग्रेस भी दम ठोंककर इसका क्रेडिट लेने के मूड में दिख रही है.