बीजेपी के खिलाफ अखिलेश यादव की नो कमेंट वाली रणनीति, जानें क्या है वजह
उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में मतदान की प्रक्रिया पूरी होनी है. अब तक राज्य में 3 चरणों की वोटिंग हो चुकी है और 23 फरवरी को चौथे चरण के लिए मतदान किया जाएगा.
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यूपी के चुनाव में अब आतंकवाद बीजेपी का सबसे बड़ा हथियार बन गया है. पार्टी को लगता है इस ब्रह्मास्त्र से अखिलेश यादव के साइकिल पर ब्रेक लग सकता है. इसीलिए पीएम नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न को आतंकवाद से जोड़ दिया. उन्होंने कहा कि साइकिल से बम फोड़े जाते है. जवाब में अखिलेश ने कहा कि साइकिल तो ग़रीबों की शान है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसी बात को आगे बढ़ाया. बीजेपी के नेताओं ने अहमदाबाद बम धमाकों के दोषी से अखिलेश यादव के तार जोड़ दिए हैं. इस केस में मौत की सजा पाए आज़मगढ़ के सैफ के पिता शादाब की अखिलेश के साथ वाली फ़ोटो ने आग में घी का काम किया है. कहा जा रहा है कि अखिलेश और उनकी पार्टी आतंकवादियों का साथ देती है.
कुल मिलाकर मामला हिंदू बनाम मुसलमान बनाने की तैयारी है. बीजेपी की कोशिश इसी बहाने पूर्वांचल में हिंदू वोटरों को एकजुट करने की है, जहां जातीय समीकरण हावी हो जाता है. जिसके लिए अखिलेश यादव ने ओम प्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल और संजय चौहान की पार्टियों से गठबंधन किया है. अखिलेश की रणनीति बीजेपी के अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंध लगाने की है.
अखिलेश यादव यूपी के चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को रोकने के लिए हर दांव आज़मा रहे है. आतंकवाद के साथ के ताज़ा हमले पर उनका पार्टी साइलेंट मोड में आ गई है. पार्टी के प्रवक्ताओं को इस मुद्दे पर ख़ामोश रहने के लिए कहा गया है. यूपी चुनाव में हिजाब की एंट्री के बाद से ही प्रवक्ताओं को इंटरव्यू देने या फिर किसी डिबेट में जाने पर रोक लगा दी गई है. असदुद्दीन ओवैसी खुलकर हिजाब के समर्थन में है. उन्होंने तो अखिलेश यादव को मंच से मुसलमान कहने की चुनौती तक दे डाली है.
अखिलेश जानते हैं कि इस चक्रव्यूह में फंसे तो पिछले चुनाव जैसा हाल हो सकता है. इसीलिए समाजवादी पार्टी ने तय किया है कि वे ग़रीबी, बेरोज़गारी, मंहगाई, किसान और नौजवान जैसे मुद्दों पर ही बने रहेंगे. पार्टी को लगता है कि इस रणनीति से अब तक हुए तीन राउंड के चुनाव में उसे फ़ायदा हुआ है. इसीलिए अखिलेश ने बीजेपी के बनाए ट्रैप में नहीं फंसने की क़सम खाई है.
कहावत है ग़लतियों से ही सीखने को मिलता है. पिछले चुनाव में शमशान बनाम क़ब्रिस्तान जैसे मुद्दे में समाजवादी पार्टी फंस कर रह गई थी. इसीलिए अखिलेश ने बड़े मुस्लिम चेहरों को प्रचार से दूर रखा. इमरान मसूद और क़ादिर राणा जैसे कई बड़े मुस्लिम नेताओं को टिकट नहीं दिया. मुख़्तार अंसारी को चुनाव लड़ने से रोका. सभा मुस्लिम नेताओं को भड़काऊ बयान देने से बचने को कहा गया है. हिजाब के सवाल पर अखिलेश यादव लगातार बचते रहे हैं. न तो उन्होंने इसका समर्थन किया और न ही विरोध किया.
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