नई दिल्ली: एबीपी न्यूज की खबर का बड़ा असर हुआ है. डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री एफेयर्स (डीएमए) ने दिव्यांग-कैडेट्स को पूर्व सैनिकों का दर्जा देना का प्रस्ताव दिया है. इस प्रस्ताव के तहत दिव्यांग कैडेट्स को लेफ्टिनेंट रैंक के अधिकारी की पेंशन दी जा सकती है.


इसके अलावा पूर्व सैनिकों को मिलने वाली मेडिकल सुविधाएं भी मिल सकती हैं. सीडीएस, जनरल बिपिन रावत के अंतर्गत आने वाले डीएमए डिपार्टमेंट के इस प्रपोजल पर रक्षा मंत्रालय का एक्स सर्विसमैन वेलफेयर डिपार्डटमेंट गहनता से विचार कर रहा है.


पूर्व सैनिक का दर्जा ना मिलने के कारण सरकारी नौकरी मिलने में दिक्कत


दरअसल, 30 जून को एबीपी न्यूज ने अपनी स्पेशल कवरेज़ ('मातृभूमि') में डिसेबल्ड यानि दिव्यांग-कैडेट्स की सेना और सरकार द्वारा की जा रही अनदेखी और भेदभाव को दिखाया था. कवरेज के दौरान एबीपी न्यूज ने दिखाया था कि नेशनल डिफेंस एकेडमी यानि एनडीए, इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) और ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी यानि ओटीए जैसे सैन्य संस्थानों में ट्रैनिंग के दौरान गंभीर रूप से घायल कैडेट्स को फिलहाल मेडिकल ग्राउंड्स पर 'बोर्ड-आउट' यानि बाहर कर दिया जाता है.



ना तो घायल कैडेट्स को सेना के किसी अस्पताल में इलाज किया जाता है और ना ही पूर्व सैनिक का दर्जा दिया जाता है. पूर्व सैनिक का दर्जा ना मिलने के कारण इन दिव्यांग-कैडेट्स (ऑफिसर-कैडेट्स) को सरकारी नौकरी मिलने में भी खास दिक्कत आती है. पिछले लंबे संमय से ये दिव्यांग-कैडेट्स इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं.


जहां दिव्यांग-कैडेट्स यानि ऑफिसर्स को बोर्ड-आउट होने पर पूर्व सैनिक का दर्जा नहीं दिया जाता, वहीं 'रिक्रूटी' यानी जवानों को ट्रैनिंग के दौरान डिसेबल्ड यानि दिव्यांग होने पर पूर्व सैनिक का दर्जा दिया जाता था. पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी में आरक्षण होता है.


रिटायरमेंट पर सैलरी का करीब आधे के बराबर पेंशन मिलती है


सूत्रों ने एबीपी न्यूज को बताया कि डिसेबल्ड कैडेट्स को पूर्व-सैनिक का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव एक्स-सर्विसमैन वेल्फेयर डिपार्टमेंट के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय के फाइनेंस विभाग के पास भेजा गया है ताकि  इससे सरकार को होने वाले वित्तीय-भार का सही आंकलन किया जा सके. सूत्रों की मानें तो सेना के एक लेफ्टिनेंट की सैलरी करीब 56 हजार है और रिटायरमेंट पर करीब आधे के बराबर पेंशन मिलती है.


रक्षा मंत्रालय यानि सरकारी आंकडों के मुताबिक, 1985 से लेकर अबतक करीब 450 ऐसे दिव्यांग कैडेट्स हैं. यानि, हर साल करीब 8-10 कैडेट्स सेना की अलग-अलग एकेडमी में दिव्यांग होने के चलते बोर्ड-आउट कर दिए जाते हैं. ऐसा नहीं है कि इन दिव्यांग-कैडेट्स के बारे में पहली कोई सुध नहीं ली गई. वर्ष 2015 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने लेफ्टिनेंट जनरल मुकेश सबरवाल के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था.


डिसेबल्ड कैडेट्स को इंसाफ की किरण दिखाई देने लगी


कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा था कि डिसेबल्ड कैडेट्स को पूर्व-सैनिक का दर्जा दिया जा सकता है. यहां तक की सेना की जैग (जेएजी) यानि जज-एडवोकेट जनरल ब्रांच तक उन्हें पूर्व-सैनिक का दर्जा देने के पक्ष में है. बावजूद इसके रक्षा मंत्रालय इन 448 कैडेट्स को पूर्व-सैनिक का दर्जा नहीं देना चाहता. ऐसा ना करने से इन दिव्यांग कैडेट्स को सेना की ट्रेनिंग के दौरान मिली चोट से ज्यादा भेदभाव का दर्द ज्यादा सताता है.


दिव्यांग कैडेट्स का ये भी मानना है कि जब वे यूपीएससी और एसएसबी जैसी परीक्षाएं पास कर ग्रेड-ए ऑफिसर बनने के लिए एनडीए और आईएमए में जाते हैं. लेकिन दिव्यांग होने के बाद उन्हें ग्रुप डी के कर्मचारियों के बराबर एक्स-ग्रेशिया स्टाईपेंड दिया जाता है. जो पूरी तरह से उनके साथ भेदभाव है. ऐसे में अगर सेना उन्हें नहीं ले सकती है तो रक्षा मंत्रालय के अधीन डिफेंस-एस्टेट या फिर किसी दूसरी सिविल-डिफेंस विभाग में डेस्क-जॉब दी जा सकती है. वहीं एबीपी न्यूज की कवरेज और सीडीएस जनरल बिपिन रावत की पहल से डिसेबल्ड कैडेट्स को इंसाफ की किरण दिखाई देने लगी है.


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