नई दिल्ली: सरकार टेलिकॉम कंपनियों को बड़ी राहत देने की तैयारी में है. इसका ऐलान जल्द ही एक विशेष पैकेज के रुप में किया जाएगा. पैकेज की वजह से वित्तीय स्थिति बेहतर हुई तो ग्राहकों को जल्द से जल्द कम कीमत पर नयी तकनीक आधारित सेवाएं मिलेंगी. हालांकि इससे मौजूदा सेवाओं की फीस पर कोई असर नहीं पड़ेगा. यही नहीं पैकेज लागू होने के बाद टेलिकॉम सेक्टर में हो रही भारी छंटनी पर रोक लगाना संभव हो सकेगा.
पैकेज के तहत तीन बातों पर जोर रहेगा:
- स्पैक्ट्रम के लिए बकाया चुकाने के लिए 16 साल का समय मिलेगा, जबकि अभी 12 साल का समय दिए जाने का प्रावधान है.
- स्पैक्ट्रम बकाये के भुगतान में देरी पर ब्याज दर के आंकलन का नया तरीका अपनाया जाएगा. मौजूदा प्रावधान के तहत ब्याज का आंकलन प्राइम लैंडिंग रेट यानी पीएलआर के तहत होता है. चूंकि रिजर्व बैंक ने पीएलआर की जगह मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ट लेंडिंग रेट यानी एमसीएलआर 1 अप्रैल 2016 से लागू किया है. लिहाजा स्पैक्ट्रम बकाये के भुगतान में देरी पर ब्याज के आंकलन के लिए एमसीएलआर को आधार बनाया जाएगा. ये पहली अप्रैल 2016 से ही लागू माना जाएगा. पीएलआर की जगह एमसीएलआर को अपनाये जाने से कुलब्याज में चार फीसदी तक की बचत होगी.
- एक टेलिकॉम कंपनी या समूह के पास कितना स्पैक्ट्रम हो, इसकी सीमा 25 से बढ़ाकर 35 फीसदी की जा सकती है. इससे रिलायंस जियो और वोडाफोन को फायदा होगा. रिलायंस जियो ने हाल ही में रिलायंस कम्युनिकेशन के स्पैक्ट्रम को खरीदने का ऐलान किया, वहीं वोडाफोन और आइडिया का विलय होने वाला है. ऐसे में दोनों के पास ही स्पैक्ट्रम बढ़ेगा जिसकी वजह से स्पैक्ट्रम होल्डिंग की ऊपरी सीमा बढ़ाए जाने का विचार बना.
- बीते कुछ समय के दौरान टेलिकॉम कंपनियों की माली हालत बिगड़ी. कंपनियों पर देनदारी बढ़ती जा रही थी, लेकिन आमदनी में उस अनुपात में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही थी. यही नहीं स्पैक्ट्रम की बढ़ती कीमत ने भी इन कंपनियों की देनदारी बढ़ा दी. नतीजा ये आशंका गहराने लगी कि क्या इस क्षेत्र में दिया गया बैंकों का कर्ज का बड़ा हिस्सा कहीं फंसा कर्ज यानी एनपीए तो नहीं बन जाएगा.. ऐसे में सरकार ने एक अंतर मंत्रालयी समूह यानी आईएमजी का गठन किया. आईएमजी की रिपोर्ट के हवाले से सरकार ने माना इस क्षेत्र के कुछ भागों में वित्तीय संकट है. हालांकि हर कंपनी की वित्तीय स्थिति और कर्ज की स्थिति अलग-अलग है और उनके कर्ज चुकाने की क्षमता का स्तर भी अलग-अलग है.
वैसे तो आईएमजी की रिपोर्ट ने पूरे क्षेत्र को वित्तीय संकट में नहीं होने को माना है, फिर भी इसने कुछ भाग की वित्तीय परेशानियों को दूर करने के लिए कई सिफारिशें दी. संचार मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, इन्ही सिफारिशों के आधार पर तैयार प्रस्ताव पर पहले टेलिकॉम कमीशन और फिर कैबिनेट की मंजूरी लेनेन की प्रक्रिया चल रही है और जल्द ही इसका ऐलान कर दिया जाएगा. सूत्रों का ये भी कहना है कि बीती तिमाही के वित्तीय नतीजों के आधार पर कंपनियों की स्थिति बेहतर होती दिख रही है और उम्मीद है कि पैकेज पर अमल के बाद हालात और बेहतर होंगे.
टेबल- टेलिकॉम सेक्टर की देनदारी (करोड़ रु में)
टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर | टॉवर कंपनी | कुल | |
घरेलू बैंक/वित्तीय संस्थाओं का कर्ज | 159675 | 18049 | 17724 |
विदेशी कर्ज | 83918 | - | 83918 |
बैंक/वित्तीय संस्थों का कर्ज | 24593 | 18049 | 261642 |
बैंक गारंटी | 50000 | - | 50000 |
स्पैक्ट्रम के लिए टाला गया भुगतान | 295864 | - | 295864 |
दूसरी देनदारी | 175464 | 4763 | 180227 |
कुल बकाया | 764922 | 22812 | 787734 |