India Independence Day Speech: अटल बिहार वाजपेयी ने लाल किले की प्राचीर से देश को छह बार संबोधित किया. वह पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने लाल किले से इतनी बार भाषण दिया. उनके भाषण में नाटकीयता और लंबे अंतराल के बीच कविताओं की पंक्ति उसे शानदार बना देती थी. जब पहली बार लाल किले से वाजपेयी का भाषण हुआ था उस वक्त उनके सुनने वालों को वहां पर तांता लग गया था. वाजपेयी से देश को बहुत सारी उम्मीदें थीं. 15 अगस्त 1998 को वाजपेयी ने पहली बार लाल किले की प्राचीर से अपना भाषण दिया था. 11 और 13 मई को पोखरण में हुए परमाणु परीक्षण धमक उनके भाषण में साफ सुनाई पड़ी थी. वाजपेयी ने अपने पहले ही भाषण में भारत के बदलते हुए तेवर की झलक दे दी थी.
पहले भाषण में पोखरण परीक्षण का जिक्र
वाजपेयी ने कहा था- “हमें अपनी सेना को अत्याधुनिक बनाना पड़ेगा. किसी भी संकट का डटकर मुकाबला कर सकें. हमारी स्वतंत्रता और अखंडता अक्षुण रख सकें. इसी उद्देश्य से हमने 11 और 13 मई को पोखरण में परमाणु विस्फोट किया था. पोखरण परमाणु विस्फोट एक रात का खेल नहीं था. हमारे वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, टेक्नीशियनों और सुरक्षाबलों को वर्षों का यह फल था.”
उनके भाषण की विरोधी भी तारीफ करते हुए नजर आते थे. अटल बिहारी वाजपेयी को उनके कई ऐतिहासिक कदमों के लिए याद किया जाता है, चाहे वो बात परमाणु परीक्षण की हो या फिर कश्मीर पर उनकी पॉलिसी की. स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भाषण के दौरान वह इसे जोरदार तरीके से रखते थे. वाजपेयी ने 1999 में कहा था- “मैंने एक ऐसे भारत की कल्पना की है, जो भूखा, डर और अशिक्षा से मुक्त हो. मैंने ऐसे भारत का सपना देखा है जो खुशहाल और मजबूत हो. एक भारत, जो महान राष्ट्रों के समूह में सम्मान का स्थान प्राप्त करता हो.”
वाजपेयी ने कहा- भारत के लिए कश्मीर एक जमीन का टुकड़ा भर नहीं
वाजपेयी ने तीन साल में एक बार अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हार का सामना किया तो वहीं एक आम चुनाव में जीत मिली. उन्होंने कश्मीर पर बोलते हुए कहा- “भारत के लिए कश्मीर सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा भर नहीं है बल्कि यह सर्व धर्म समभाव धर्मनिरपेक्षता की परीक्षा है.” वाजपेयी ने कहा- “भारत हमेशा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परीक्षा के लिए खड़ा रहा है. जम्मू और कश्मीर इसका सबसे जीता-जागता हुआ उदाहरण है. और वह है कश्मीरियत. ”
करगिल में जीत के बाद वाजपेयी का भाषण
1999 वाजपेयी ने अपने भाषण में कहा- "आओ, हम भारत को हर क्षेत्र में उच्च उपलब्धि हासिल करने वालों का देश बनाएं. व्यापार और अर्थव्यवस्था में, शिक्षा में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में, कला और संस्कृति में, और खेल में भी. आइए हम भारत को ‘उपलब्धि’ का पर्याय बनाएं, उस तरह की उपलब्धि जिसे विश्व स्तर पर बेंचमार्क किया जा सकता है,"
भारत ने करगिल में पाकिस्तान से युद्ध जीता ही था, जब वाजपेयी ने आर्थिक तरक्की पर फोकस करते हुए यह भाषण दिया था. उन्होंने कहा- "आज, एक आत्मविश्वासी भारत से बात करते हुए, मैं घोषणा करता हूं: प्रतिबंधों ने अपना प्रभाव खो दिया है. वे गुजरे जमाने की बात हो गए हैं. हमने उनसे इस तरह से निपटा है कि शायद ही उनका हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई असर पड़ा हो. हमने दक्षिण-पूर्व एशियाई आर्थिक संकट को दूर रखा.”
उन्होंने आगे कहा- "हां, सरकार गिराई गई, लेकिन देश नहीं गिरा. यह चारैवेती, चरैवेती (आगे बढ़ो, आगे बढ़ो) के मंत्र को पूरा करते हुए आगे बढ़ता रहा. सरकार अपने कर्तव्य का निर्वहन करती रही."
वाजपेयी का पाकिस्तान को पैगाम
वाजपेयी जानते थे कि पड़ोसियों को कभी नहीं बदला जा सकता है. इसलिए उन्होंने लाल किले से जब भी मौका मिला दोस्ती का हाथ बढ़ाया. 15 अगस्त 2003 को उन्होंने लाल किले से कहा था- “पाकिस्तान के मित्रों से मैं कहता रहा हूं कि हमें लड़ते-लड़ते 50 साल हो गए और कितना खून बहाना बाकी है. लाहौर से 2 वर्ष की बच्ची को नूर को हिनदुस्तान में जो प्यार मिला, उसमें एक ऐसा पैगाम है जिसे पाकिस्तान के हमारे मित्र समझें. दोनों देशों के स्वाधीनता दिवस के अवसर पर पाकिस्तान को भारत के साथ मैं अमन के रास्ते पर चलने का दावत देता हूं.”
अटल दोस्ती की बस लेकर पाकिस्तान गए तो करगिल हो गया. करगिल और कंधार के बावजूद वाजपेयी ने तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुशर्रफ को बुलाया. मुशर्रफ बातचीत के लिए आगरा आए लेकिन रात के अंधेरे में चुपके से भारत से निकल गए.
देश के विकास की नई छवि गढ़ी
वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान ही आतंकियों ने नेपाल से आ रहे विमान का अपहरण कर कंधार लेकर चला गया था. उनके शासनकाल के दौरान कभी पाकिस्तान के साथ दोस्ती तो कभी उसके चोट में ही गुजरा. वाजपेयी कट्टरता की छवि को बदलकर एक नई विकास की छवि गढ़ना चाहते थे.
उनकी ही सरकार के दौरान 13 दिसंबर 2001 को संसद पर आतंकी हमला हो गया. उसके बावजूद वायपेयी ने धैर्य रखा. वाजपेयी ने अपने कार्यकाल के दौरान कई कार्य किए. देशभर में सड़कों के साथ-साथ नदियों को जोड़ने की पहल की. देशभर में शाइनिंग इंडिया का माहौल था. लेकिन जब बीजेपी चुनाव में गई तो उसे सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस के सामने करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था.
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