चिर प्रणम्य यह पुष्य अहन, जय गाओ सुरगण,
आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन !
नव भारत, फिर चीर युगों का तिमिर-आवरण,
तरुण अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन !
सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,
आज खुले भारत के संग भू के जड़-बंधन !

- सुमित्रानंदन पंत


India Independence Day Speech: पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस शीर्षक की इस कविता के बोल अंदाज़ा दिलाते हैं नए और स्वतंत्र भारत का नियति से कैसा साक्षात्कार होने वाला था. यह तारीख़ स्वतंत्रता दिवस पर देश के लिए आजादी का उत्सव लेकर आई तो वहीं दूसरी तरफ हजारों की संख्या में भारत माता के उन वीर सपूतों को याद देती रही, जिन्होंने हंसते हुए देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी. इसी दिन भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में राष्ट्रीय झंडा फहराया था. लुइस माउंटबेटन उनके बगल में खड़े थे. तिरंगा झंडा फहराने के बाद राष्ट्रगान गाया गया और 31 तोपों की सलामी दी गई.


आजादी और बंटवारे के बाद नेहरू का भाषण आज भी प्रासंगिक


नेहरू ने कहा था- “कई साल पहले हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था और अब वो समय आ गया जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे. पूरी तरह से नहीं लेकिन ये महत्वपूर्ण है. आज रात 12 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी उस समय भारत स्वतंत्र जीवन के साथ नई शुरूआत करेगा.” नेहरू के भाषण ने भारत के लोगों के लिए एक नई, मुक्त सुबह की उम्मीद जगाई और देश को भौगोलिक और आंतरिक रूप से सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के बावजूद भी साहस को प्रेरित किया. 



'सालों से शोषित आत्मा कह सकती है अपनी बात'


नेहरू ने अपने भाषण में कहा- "ये ऐसा समय होगा जो इतिहास में बहुत कम देखने को मिलता है. पुराने से नए की ओर जाना, एक युग का अंत हो जाना, अब सालों से शोषित देश की आत्मा अपनी बात कह सकती है." उन्होंने कहा कि यह संयोग है कि हम पूरे समर्पण के साथ भारत और उसकी जनता की सेवा के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं. इतिहास की शुरुआत के साथ ही भारत ने अपनी खोज शुरू की और न जाने कितनी सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं.


उन्होंने कहा कि समय चाहे अच्छा हो या बुरा, भारत ने कभी इस खोज से नजर नहीं हटाई, कभी अपने उन आदर्शों को नहीं भुलाया जिसने आगे बढ़ने की शक्ति दी. आज एक युग का अंत कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ भारत खुद को खोज रहा है. आज जिस उपलब्धि की हम खुशियां मना रहे हैं, वो नए अवसरों के खुलने के लिए केवल एक कदम है. इससे भी बड़ी जीत और उपलब्धियां हमारा इंतजार कर रही हैं. क्या हममे इतनी समझदारी और शक्ति है जो हम इस अवसर को समझें और भविष्य में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करें? 




भविष्य में आराम नहीं करना


जवाहर लाल नेहरू ने अपने भाषण के दौरान कहा था कि भविष्य में हमें आराम नहीं करना है और न चैन से बैठना है बल्कि लगातार कोशिश करनी है. इससे हम जो बात कहते हैं या कह रहे हैं उसे पूरा कर सकें. भारत की सेवा का मतलब है करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना. इसका अर्थ है अज्ञानता और गरीबी को मिटाना, बीमारियों और अवसर की असमानता को खत्म करना. हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा रही है कि हर आंख से आंसू मिट जाएं.




उन्होंने कहा- शायद यह हमारे लिए पूरी तरह से संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं और वो पीड़ित हैं तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा और इसलिए हमें मेहनत करना होगा जिससे हम अपने सपनों को साकार कर सकें. ये सपने भारत के लिए हैं, साथ ही पूरे विश्व के लिए भी हैं. आज कोई खुद को बिलकुल अलग नहीं सोच सकता क्योंकि सभी राष्ट्र और लोग एक दूसरे से बड़ी निकटता से जुड़े हुए हैं. जिस तरह शांति को विभाजित नहीं किया जा सकता, उसी तरह स्वतंत्रता को भी विभाजित नहीं किया जा सकता. इस दुनिया को छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता है. हमें ऐसे आजाद महान भारत का निर्माण करना है जहां उसके सारे बच्चे रह सकें. 


एक ऐसा इतिहास शुरू हुआ जिसे हम लिखेंगे


नेहरू ने कहा था आज सही समय आ गया है, एक ऐसा दिन जिसे भाग्य ने तय किया था और एक बार फिर सालों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और आजाद खड़ा है. हमारा अतीत हमसे जुड़ा हुआ है, और हम अक्सर जो वचन लेते रहे हैं उसे निभाने से पहले बहुत कुछ करना है. लेकिन फिर भी निर्णायक बिंदु अतीत हो चुका है, और हमारे लिए एक नया इतिहास शुरू हो चुका है, एक ऐसा इतिहास जिसे हम बनाएंगे और जिसके बारे में और लोग लिखेंगे.




पंडित नेहरू ने कहा था कि ये हमारे लिए एक सौभाग्य का समय है, एक नए तारे का जन्म हुआ है, पूरब में आजादी का सितारा. एक नई उम्मीद का जन्म हुआ है, एक दूरदर्शिता अस्तित्व में आई है. काश ये तारा कभी अस्त न हो और ये उम्मीद कभी धूमिल न हो. हम हमेशा इस आजादी में खुश रहें. आने वाला भविष्य हमें बुला रहा है.


16 अगस्त को लाहौरी गेट पर फहराया गया तिरंगा


पंडित नेहरू ने 16 अगस्त 1947 को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को 17वीं शताब्दी के स्मारक के मुख्य द्वार लाहौर गेट ऊपर फहराया. इसे लाहौरी गेट इसलिए कहा गया क्योंकि इसका दरवाजा के सामने से सड़क उस वक्त लाहौर की ओर जाती थी. अब हम हर स्वतंत्रता दिवस पर गर्व के साथ देखते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री लाल किले के ऊपर तिरंगा फहराते हैं और उसके बाद बाद इसके प्राचीर से भाषण देते हैं.


जवाहर लाल नेहरू ने 16 अगस्त को तिरंगा झंडा फहराया था न कि 15 अगस्त को. उनका पहला भाषण हिंदी में दिया गया था. 1947 से लेकर 1963 तक नेहरू ने किले से 17 भाषण दिए थे. नेहरू ने 14 अगस्त की आधी रात को वायसराय लॉज जो मौजूदा राष्ट्रपति भवन है, वहां से ऐतिहासिक भाषण दिया था.




नेहरु की जीवन यात्रा: 15 साल की आयु में पढ़ाई के लिए गए इंग्लैंड


पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में 14 नवंबर 1889 को हुआ था. उन्होंने शुरुआती शिक्षा घर पर ही प्राइवेट ट्यूटर के मार्गदर्शन में की. 15 साल की आयु में वह इंग्लैंड चले गए और हैरो में दो साल के बाद कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और वहां से नेचुरल विज्ञान से डिग्री ली. साल 1912 में वह भारत लौट आए और सीधे राजनीति में आ गए. एक छात्र के रूप में भी, वह उन सभी राष्ट्रों के संघर्ष में रुचि रखते थे जो विदेशी प्रभुत्व के अधीन थे.


1912 में, उन्होंने एक प्रतिनिधि के रूप में बांकीपुर कांग्रेस में भाग लिया और 1919 में होम रूल लीग, इलाहाबाद के सचिव बने. साल 1916 में उनकी महात्मा गांधी के साथ पहली बैठक हुई थी और उनसे वह काफी प्रभावित हुए थे. 1920 में यूपी के प्रतापगढ़ जिले में उन्होंने पहला किसान मार्च आयोजित किया. 1920-22 के बीच असहयोग आंदोलन के लिए उन्हें दो बार जेल भेजा जाना पड़ा था. 




आजादी की लडाई में 9 बार जेल गए नेहरू


1923 के सितंबर महीने में पंडित नेहरू ऑल इंडिया कांग्रेस के महासचिव बने. उन्होंने इटली, स्वीटजरलैंड, इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी और रूस की 1926 में यात्राएं की. 19129 में नेहरू भारतीय नेशनल कांग्रेस के लाहौर सेशन के प्रसिडेंट चुने गए, जहां पर एक ही लक्ष्य निर्धारित किया गया- आजादी. 1930-35 के दौरान कांग्रेस की तरफ से शुरू किए गए नमक सत्याग्रह और अन्य आंदोलन के चलते उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा. उन्होंने 14 फरवरी 1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी जीवनी (Biography) पूरी की थी. 




7 अगस्त 1942 को नेहरू मुंबई के एआईसीसी सेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव लेकर आए. 8 अगस्त 1942 को उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किला ले जाया गया. यह उनकी सबसे लंबे समय तक और आखिरी जेल थी. कुल मिलाकर वह 9 बार जेल गए. 6 जुलाई 1946 को नेहरू को कांग्रेस का चौथी बार अध्यक्ष चुना गया और उसके बाद 1951 से 1954 तक तीन बार फिर चुने गए.


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